माँ चूल्हे पे
रोटी नहीं पका सकी ,,
बेटी भूख से तिलमिलाती
स्कूल से आयी
रसोई में बर्तन खाली पड़े थे
बेटी छोटी थी
स्कूल में रोटी नहीं थी
उसे भूख बर्दाश्त नहीं थी
माँ से पुछा -
तूने रोटी क्यूँ नहीं पकाई
माँ बोली तेरे बाबा को
अभी पैसे नहीं मिले ,,,
बेटी बोली
क्या बाबा काम नहीं करते .. ?
माँ को गुस्सा आ गया ,,
बोली - चुप कर के
नमक पानी पी कर सो जा ,,
बेटी को
क्रोध आ गया
ज़ोर से चिल्ला कर
माँ को खरी कोटि सुनाने लगी ,,
अगर अपनी
संतान को
रोटी नहीं दे सकते थे ..
तो ब्याह क्यूँ किया था ,
क्यूँ मौज मस्ती की ,
क्यूँ बच्चे पैदा किये ........
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मैं दूर से खड़ा
ये कष्टदायक दृश्य देख रहा था
मैं देख रहा था
एक निर्बल गरीब माँ
भौचक्की अपनी आँखों के
आसुओं को
पौंछती हुई बेटी के कड़वे
किन्तु सच्चे शब्दों को सुन रही थी ...
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जवान होती
बेटी को भूख ने
और एक रोटी की ललक ने ..
तीन बातें समझा दी -
ब्याह , मौज मस्ती , बच्चे ---
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मैंने भी घर आ कर चूल्हा नहीं जलाया रोटी नहीं पकाई ...
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