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प्रस्तावना

14 अक्टूबर 2022

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मै शायद पहली बार चन्दन जी से अभय जी के किराया के घर में मिला था I वह एक मेघावी छात्र कि तरह अभय जी का व्याख्यान सुन रहे थे I बात समाजिक न्याय और धार्मिक उलझाओ की पेचीदा गलियों से गुज़रती हुई जीवन की दिशा और दशा तक पहुँच गयी थी और चन्दन जी के कई पर्शनों को अभय जी काट चुके थे I यह अभय जी का स्टाइल है या ज़िद है या फिर अनेकों पुस्तकों से हासिल किये गए ज्ञान हैँ कि वह सामने बैठे लोगों को मुक दर्शक के रूप में ही देखना पसंद करते है. चन्दन जी के अंदर शांत सौभाव का व्यक्तित्व बैठा है I वह बोलने से ज़्यादा मुस्कराते हैँ और मुस्कराते रहने वाला आदमी पुरकाशीष होता है I उन्हें अधिक बोलते तो मै ने अब तक नहीं देखा है I मगर एक प्रोग्राम मे जब मैं ने उनसे विभिन्न कवियों और शायरों कि बेहतरीन शायरी सुनी तो मुझे यक़ीन हो गया कि यह आदमी कुछ हो ना हो आदमी तो ज़रूर होगा I मेरा मानना है कि जो लोग literature पढ़ते है या जो लोग literature समझते हैँ या फिर literature से दिलचस्पी रखते हैँ बस वहीँ लोग आदमी बन पाए हैँ क्योंकि लिटरेचर वालों का दो ही असासा होता है I एक प्रेम और दूसरा आँसू I और दोनों के तार मनुष्य के दिमाग़ से नहीं दिल से जुड़े होते है I और जो दिल से सोचते हैँ वो किसी का दिल नहीं तोड़ते है I जब मेरा यह मज़बूती से मानना है कि जहाँ दिल का राज होता है वहीँ भगवान वास होता हैI
चन्दन जी के बारे मे जो मेरा विचार था वह आज अधिक प्रबल हो गया जब स्टाफ रूम मे उन का सीमांचल नज़र से गुज़रा I पहली नज़र मे तो लगा कि यह बिहार के जुगराफिये छेत्र कि कोई राजनीती कीर्ति होंगी लेकिन जब हाथ मे लिए तो यह कविता का संग्रह था I मेरी मुस्कराहट चन्दन जैसी तो नहीं मगर फिर भी मे मुस्कराये बिना नहीं रह सका कि आखिर उन्होंने ने अपना दिल काग़ज़ के पन्नों पर रख ही दिया I मे नहीं जानता कि इस से पहले उन्होंने ने कोई कविता संग्रह बाजार मे लाया है या नहीं मगर इस संग्रह मे मौजूद कुछ कविता बिलकुल निराली लगी I पन्ने पलटते पालटते यह एहसास हो चूका था कि चन्दन जी को प्रकृति से अथाह प्रेम है और उस के बर्बाद होते दृश्य से वह काफी उदास हैँ I वह गांव कि पगदण्डियों मे अपने पैर के निशान को मिटते देख रहे हैँ I उन्हें पेड़ों और चहचाहाती चिडियो कि आवाज़न के लुप्त हो जाने का सदमा हैI उन्हें प्रकृति के क़ातिलों से नफरत है I प्रकृति से उनका प्रेम इतना बढ़ा हुआ है कि उन के शब्द भी पौधों की तरह बिखर रहे हैँ और कराह रहे है I
मेरे शब्दों के हर पौधे देखो
खून से सिंचे जाते हैँ
यह आह वाह कर के ही बस
फसल उड़ाए जाते हैँ
चन्दन जी का दुख यह नहीं है की प्रकृति नाष्ट हो रही है उन की उदासी यह की जब पेड काट जायेंगे तो कहानियां ख़तम हो जाएंगी I पेड़ो के जंगलों मे कहानियां बस्ती हैँ जो शहरों मे आ कर धर्म बन जाती हैI पेड़ों का धर्म अलग होता है और शहरों का अलगI उन्हें पेड़ो का धर्म खतरे मे लग रहा हैI इस लिए तो वह कहते हैँ कि
पत्ता पत्ता हरा हरा हरा
हर डाली से है टूट रहा
चलती साँसों का तो पता नहीं
हम प्यार के दम तो ख़ूब भरते हैँ
यह मिट्टी पानी त्याग के
मरता जब भी होरी है
तब नेम धर्म गोदान करा के
फिर झूनिया क़र्ज़ मे मरती है
चन्दन ने समाज और धर्म के ठेकेदारों पर कड़ा प्रहार किया हैI इसी लिए मे कहता हूँ कि दिलवाले जब अपनी पर आ जाते है तो दिमाग़वालों कि नसे फट पडती हैँ I
मै एक अभागा बेटा हूँ
बस अपनी स्वार्थ मै जीता हूँ
मा मेरी देखो रूठी है
धुएं के घर मे बैठी है
कौन कहता है चन्दन जी कि आप एक अभागा बेटा है जिस कि माँ रूठी हैI आप कि माँ तो हज़ारों मे एक है जिन्हें आप पर गर्व है और गर्वनित माँ का रूठ जाना प्यार कि इन्तहा है I माँ के प्यार कि कोई सीमा नहीं होतीI और हाँ सीमा से याद आया कि आप के इस संग्रह का नाम सीमांचल किसी छेत्र विशेष कि राजनितिक गाथा कहाँ थी यह तो उस अंचल कि उनकही प्रेम कथा थी जिस कि कोई सीमा ही नहीं होती और मज़ा तो तब है जब सीमा से ही प्रेम हो जायेI सीमा से प्यार करने वाले युद्ध नहीं हारा करते I आप इस माने मे शूरवीर हैँ कि शायद ही किसी ने अपने पत्नी के परिपाक्ष्य या उस की तारीफ़ मे कविताएं लिखने का जिगर दिखाया हो अपने तो अपने इस संग्रह को ही उन्हें सौंप दियाI
पता चला कि आज उनका वर्षगांठ है I उन्हें ढेरों मुबारक बादI
यह बेखुदी यह लबों कि ख़ुशी मुबारक हो
तुम्हे यह सालगिरह की ख़ुशी मुबारक हो I
ज़ैन शमसी
भूमिका

डॉ. चन्दन कुमार की अन्य किताबें

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रचनाएँ
सीमांचल
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मेरी इस पहली कृति का नाम 'सीमांचल' है। 'सीमांचल' शब्द का अर्थ सीमा के आसपास के भूखंड या अंचल से जुड़ता है। पहले यह स्पष्ट कर दूं कि इस कृति का नामकरण 'सीमांचल' करते हुए मेरे मन में कहीं भी कोई राजनीतिक नक्शा नहीं रहा है, बल्कि इस कृति के लिए यह नाम मेरे रचनात्मक व्यक्तित्व के भूगोल की अलग-अलग सीमाओं को लगातार विस्तार देने की कोशिशों का परिचायक है।
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प्रस्तावना

14 अक्टूबर 2022
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मै शायद पहली बार चन्दन जी से अभय जी के किराया के घर में मिला था I वह एक मेघावी छात्र कि तरह अभय जी का व्याख्यान सुन रहे थे I बात समाजिक न्याय और धार्मिक उलझाओ की पेचीदा गलियों से गुज़रती हुई जीवन की द

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14 अक्टूबर 2022
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मेरी इस पहली कृति का नाम 'सीमांचल' है। 'सीमांचल' शब्द का अर्थ सीमा के आसपास के भूखंड या अंचल से जुड़ता है। पहले यह स्पष्ट कर दूं कि इस कृति का नामकरण 'सीमांचल' करते हुए मेरे मन में कहीं भी कोई राजनीत

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सीमांचल सेट (१)

14 अक्टूबर 2022
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1किससे दिल की बात कहें जब अपने ही लूट गए,लोकतंत्र में लोक को जिंदा लाश बना कर छोड़ गए।2इतिहास ही ऐसा रहा है ,इश्क़ के समंदर का किहर डूबने वाले आशिक़ कोलहरें किनारे लगा देती है2 aपसीना पोछने की भी जिन्हें

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सीमांचल सेट (२)

14 अक्टूबर 2022
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1इतना खाली हो गया किआकाश हो गया हूँमेरे भीतर ही सब कुछ है..सूरज, चांद, तारे और ग्रहशब्द भी और शब्द के बीज भी2यक़ीनन तुम खुद को सबसे ज्यादा प्यार करते होवरना आईने और सेल्फियों मेंखुद को ऐसे नहीं खींचा

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सीमांचल सेट (३)

14 अक्टूबर 2022
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1खुशी की उड़ानबुलंद हौसलों से संकल्प लेऔर सिद्धि का आगाज़ करफड़फड़ाते सपनों को नया आयाम देऔर खुला आकाश करजब तक हलक में साँस बाकी हैतब तक अनंत आसमां में मेरी उड़ान बाकी हैचलो चलें मेरे मितवा खुशी की उड़ान बा

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सीमांचल सेट (४)

14 अक्टूबर 2022
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1सुनो ना..जहाँ सिर्फ हम तुम होंऐसी रेडीमेड जगह कभी भी नहीं होगी। प्रेम करने वालों को खुद अपनी जगह बनानी होती है।बने बनाए रस्तों और जगहों परप्रेम का आडंबर हनकोटीैप्रेम नहीं होता है।जिस समाज में ही प्र

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