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सीमांचल सेट (३)

14 अक्टूबर 2022

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1
खुशी की उड़ान
बुलंद हौसलों से संकल्प ले
और सिद्धि का आगाज़ कर
फड़फड़ाते सपनों को नया आयाम दे
और खुला आकाश कर
जब तक हलक में साँस बाकी है
तब तक अनंत आसमां में मेरी उड़ान बाकी है
चलो चलें मेरे मितवा खुशी की उड़ान बाकी है..!
ख़ुदा है या नहीं कह नहीं सकता
पर मेरे जोशीले जज्बातों में उसके निशान बाकी है
चलो चलें मेरे मितवा खुशी की उड़ान बाकी है..!
जब भी सूरज ढल जाए और रात घिर आए
मत डरना मेरे मीत …
मेरे भीतर भी जलते हुए झिलमिलाता चिराग़ बाकी है
चलो चलें मेरे…!
नदी, गांव, पर्वत, पहाड़ों में
जब तक हरियाली के निशाँ बाकी हैं
बागबाँ खिला मेरे मन में
अब तरुणाई की फनकार बाकी है
चलो चलें मेरे …!
निःशब्द लबों पर तराने छेड़ दूँ
प्यासी आँखों में रसधार भर दूँ
फड़फड़ाते आशाओं में विश्वास भर दूँ
नव गति और नव लय का ताल भर दूँ
सच में निराहार जन की कई फ़रियाद बाकी है
सो ख़ुदा तक इबादतों की पोटली पहुँचाने
चलो चलें जिम्मेदारियाँ निभाने अपनी उफ़ान बाकी है
चलो चलें मेरे …!
गोले - बारूद के ढेर पर बैठी दुनिया
जल रही अहं के आग में इस कदर कि
टूटते - बिखरते रिश्तों में संजोना सद्भाव बाकी है
चलो चलें बादलों संग प्यार बरसाने
हममें भी रिमझिम फुहार बाकी है..!
काल के भाल पर लिखा है
राम, कृष्ण, महावीर, बुद्ध के इस धरा का नाम
संस्कृति के चारों अध्याय का
जहाँ आख्यान गाये ऋग - यजुर - अथर्व - साम
सोई उस देश की मिट्टी में लानी जान बाकी है
चलो चलें हमारी खुशी की उड़ान बाकी है..!
2
फूल तेरे प्यार खातिर टूट गए डाल से,
बिक गए सरेबाज़ार, तेरे प्यार वास्ते।
खिलने थे जिसे कभी फ़िज़ा में गुल खिलाने को,
चटक नहीं सकी कली वो तेरे प्यार वास्ते।
ढूँढती रही उसे वो बेक़रार तितलियाँ,
पराग झड़ सके नहीं वो तेरे प्यार वास्ते।
3
शहर की मिट्टी
जैसे - जैसे पत्थर हो गयी
वैसे - वैसे ही शहर स्मार्ट हो गया।
4
प्रेमनगर
श्रद्धा का दामन थाम कर
तम का दरिया पार कर
आये हैं उस जग से हम
जहाँ रहते सब अंजान बन।
प्रेमनगर से न्योता आया था
कि चलो बुलावा आया है,
मन के डोर उसे थमा कर
हो जाओ भव के पार गर
आनंद की मदिरा पियोगे
मद में तुम भी झुमोगे,
परिचित होंगे सभी तेरे
काली, रहीम, रसखान, मीरा
ईसा, नानक, तुलसी, कबीरा।
क्यों हो भ्रम के आग में झुलसे
देखोगे वहां सभी हैं सुलझे,
ना ही कोई जाति - पांति,
ना ही धरम का भेद वहां
चलो - चलो संसार के बन्दे
जाते और कहाँ..!
5
अपना - पराया
' मैं ' और ' आप ' तक सीमित है जमाना
' हम ' है कहाँ..
अगर हमदर्दी होती तो
दिली कशिश जो होते
सुख - दुख के अमन - चैन के
पराये की भी हमारी होती
हर हमदर्द होता हमारा
पर ' हम ' है कहाँ ?
क्या भूल चुका है वो याराना
दो दिलों के मेल का
क्या उसे भी
जो हुआ करता था कभी
पुत्र पिता का
मां बेटे का
भाई भाई का यूं मुस्कुराना
और क्या उसे भी
जो स्वप्निल प्यारा सा घरौंदा
अगर हो तो सुन ले
ओ बेदर्द हो जमाना
वक्त ने पुकारा पीछे मुड़कर कि
सुन मूक धड़कनों की आवाज
पहचान नमी आंखों की
जो सुख के हैं या दुख के
वह त्रुटि ढूंढ ऐ मुसाफिर कि
क्यों हमसफर भी दूर हो रहे हैं
ऐसा भी तो नहीं जो मिल ना सके
अगर मिले तो
अस्तित्व ही ना रहे
जैसा कि
नदी के पार का वो किनारा…
6
बनावटी
दिल के अधूरे पन के साथ
न जाने कैसे जी लेते हैं लोग
जो ना चाहते हुए भी
बंदिशों में रहते हैं कर परिधि के बाहर यदि झांक ले तो उसको लेपन से न जाने क्यों नजर मोड़ लेते हैं लोग खुलकर अच्छा क्या बुरा भी नहीं बन पाते हैं लोग अपनी ईमानदारी को दिखाने के लिए बेईमानी भी करते हैं बड़ी ईमानदारी से लोग पर उस परिधि के बीच में ही न जाने कैसे जी लेते हैं लोग
7
मंजिल की डगर
जब लगी ठोकरे राह में चलते हुए तो संभलना बड़ा भारी लगा फिर मंजिल ने कहा बेटे साथ ही दिखा रहा था दिल नहीं जो उसको तब आखिरी ऐसी भारी की मानव कह रही हो कंठ की लुगाइयों को मिटा ले मेरी घूंट से फिर चल के दिखा जरा रुत कुछ अलग होगा तकदीर की लकीर चाहे जैसे भी हो वह चलना कुछ अलग होगा फिर चाहे डगर भी जैसी हो उसे नापना भी अलग होगा।
8
मानसून के बदरा
मानसून के बदरा
बरसे होले होले
रिमझिम बूंदाबांदी
संग हवा के डोले
सन सन हवा की लहरों में
बूंदे झूला झूले
इस बारिश में भीग भीग के
सरस जरा तू होले !
मानसून के बदरा
पानी लेकर आते
गरम से प्यासी धरती को
खूब-खूब नहलाते
प्यास बुझा कर धरती की
हरियाली फैलाते !!
मानसून के बदरा
आसमान में छाते
आसमान में छाकर ये
पर्वत से टकराते
पर्वत से टकराकर ये
गुपचुप हैं बतियाते
बात-बात में ही देखो
झरना तेज बहाते !!
मानसून के बदरा
देखकर मेंढक आते
टर्र - टर्र करते मेंढक मानो
झिंगुर को बुलाते
झिंगुर मेंढक बोल - बोल कर
बदरे को फुसलाते !!
9
बच्चे बोले
आधी दुनिया औरत की
आधी दुनिया मर्दों की
इस दुनिया में आकर सोचूं
बच्चों की दुनिया कहां गई .?
भोलू हाथी कहां गया ?
शेरू राजा कहां गए ?
जंगल के किरदार ये सारे
जंगल छोड़ के कहां गए ?
फूल और तितली कहां गए ?
बूढ़ा बरगद कहां गया ?
चिड़ियों के चुनमुन से चह चह
बड़का पीपल कहां गया ?
मेरा इंद्रधनुष लौटा दो
बाग बगीचे खूब लगा दो
मेरी पोथी जो कुछ कहती
वैसी दुनिया मुझको ला दो..!!
10
बत्तीस दांतो के संग जिह्वा
सोचो कैसे जी लेती है …
अकड़े दांतो के बीच अपनी
जगह बना कर रह लेती है।
यही एक जिह्वा ही हमको
जीवन रस से भर देती है।
जन्म से आती
मरण तक रहती
आजीवन यह देती साथ
दांतों का तो हाल देख लो
मौत से पहले खुद बेहाल।
जीभ लचीली होती है,
इसीलिए संग जीती है।
काट डालने और पीस डालने
के गुमान में दांत हैं रहते
पर कटवाने और पिसवाने का तो
असल काम जिह्वा करती है।
खूब मुलायम होकर वह तो
भोजन रस का पान करती है
जब हो बात बात करने की
दाँत उपकरण बन जाते हैं
जीव लचक लचक कर देखो
मीठी छुरी चलाती है।
वैसे
बिन दातों की बात तोतली
हमको खूब लुभाती है
बुढ़ापे की बात पोपली
हमको राह दिखाती हैं
बेमिसाल वृतांत जिह्वा का
अक्खड़ दाँतों की कम पूछ
अकड़ दिखा कर काम ना होते
जीवा देती है यह सूझ..!
11
जब एक मर्द
किसी औरत पर हाथ उठाता है,
तब उस के बाद वह मर्द नहीं रह जाता है
अहंकारी तानाशाह बन जाता है
जब एक मर्द
किसी लड़की को भूखी नजरों से देखता है
उस समय वह मर्द नहीं रह जाता है
भेड़िया बन जाता है।
जब एक मर्द
किसी अबला की अस्मत से खेल रहा होता है,
उस समय वह मर्द तो कतई नहीं रह जाता है
बल्कि अंधा राक्षस बनकर
अपने ही चुल्लू भर वीर्य में डूब कर मर जाता है।
12
कभी सत्याग्रही लोग
सीना तान कर चलते थे,
उनकी गरबीली मुस्कान मोहती थी,
समाज उनके सम्मुख नतमस्तक था,
तब बच्चे बड़े होकर
उनके जैसा बनने का ख्वाब देखा करते थे।
अब शरीफ लोग रीढ़ झुका कर चलते हैं
कंधे उनके अधिकतर झुके होते हैं,
मुस्कान में फिसफिसाहट - सी कुछ होती है
उनके सामने ' मनबढू ' बेबाक हैं,
मनचले उनसे बात करते हुए
जरा भी लहजे से संयम नहीं बरतते,
कुछ मनचले तो
सिगरेट के छल्ले तक उड़ाते हैं सामने ही
अक्सर अपराध होते हैं
और शरीफ बिना बोले बगल से बच निकलते हैं
अब अपराधी सीना तान कर घूमते हैं
तबाही के हर मुकाम से
अपराधी का कद लगातार ऊंचा होता जाता है
और वह आम लोगों के बीच
अतिमानव समझा जाने लगता है
लोगों के बीच किसी शरीफ से ज्यादा
उसकी चर्चाएं होने लगती है
बच्चे अक्सर उसकी तरह बन कर
तमाम दबी कुचली लालसाओं को
पूरा करने का ख्वाब देखने लगते हैं
देखो न जरा पूछ कर किसी बच्चे से
आज कौन बच्चा क्या बनना चाहता है
बस इन्हीं बातों से
तुम समझ जाओगे
हमारा भविष्य कैसा होने वाला है …
13
मेरे आगे की
नई पीढ़ी के
बहुत प्यारे और मासूम बच्चे
अपने नाम के आगे या पीछे
जाति सूचक शब्द लगाए जा रहे हैं…
और पुरानी पीढ़ी से मिले
कुसंस्कार को दोहराए जा रहे हैं..!
उनके सामने जो दुनिया
अंतरिक्ष तक फैली थी
उस से बेखबर वे
जातिवादी सांप्रदायिक झगड़ों में
किसी प्यादे के भाँति बनाए जा रहे हैं
मुझसे आगे जाने वाले ये मासूम बच्चे
जात , धर्म, क्षेत्र, भाषा, लिंग, नस्ल आदि के
कई कई सीमाओं में बांधे जा रहे हैं…
हाय…ये मेरे बच्चे…
क्या वही खूनी इतिहास दोहराएंगे
फिर किसे कहूंगा नई पौध
जिसे मैंने अपने खून से सींचा है…!!
वे ऐसे भला क्यों बिगाड़े जा रहे हैं..?
यह जो दर्द है मेरा वह इसलिए कि
मैंने तो उनसे
ताजगी भरे लम्हों की खुमारी पाई थी
पर वे मेरे दौर के बांसी विचारों में
जाने कैसे खोए जा रहे हैं …?
मुझे दुख है कि मेरे मासूम बच्चे
शायद अनजाने में
काले इतिहास को
दुहराने के लिए दोहराए जा रहे हैं…!!
14
छल से तोता पकड़ के लाया
डाल के पिंजरे में उससे बोला
राम नाम का रट्टा मार
कृपा करेंगे तारणहार
जन्म - मरण से मुक्ति मिलेगी
भव - भय टारन युक्ति मिलेगी
बंधन से छूटेगी काया
मोक्ष मिलेगा छटेगी माया
बोलो बेटा राम - राम
सधेंगे सारे काम - धाम..
तोता बोला पिंजरा खोलो
अपने को फिर मुझसे तौलो…
सीमांचल सेट (४)

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