मैं निर्मल गुप्ता, एक नवीन लेखक अपने जीवन के अनुभवों को शब्द रुपी मोतियों में निखार कर कुछ सुन्दर कविता रुपी मालाओं का सृजन कर ,अपने प्रिय पाठकों के ह्रदय पर विराजमान करना चाहता हूं,जहां उनकी धड़कनें बसती है । ताकि वे एक नयी चेतना को प्राप्त कर मानवीय दुख-दर्द को समझ सके और सभी के साथ एक मानवतापूर्ण आचरण को अपनी दिनचर्या में शामिल कर सके । जीवन की विषम परिस्थितियों के अनुभवों को कविता रुपी मोतियों में सृजन कर सहानुभूति रुपी धागों में पिरोकर एक उचित वातावरण की सृजनता का प्रयास किया है। मुझे पूर्ण विश्वास है,कि आप सभी पाठकों का सहयोग हमारे प्रयास को अवश्य सार्थक बनायेगा । पुस्तक का आवरण पृष्ठ,इस बात का प्रतीक है कि जिस प्रकार द्रोपदी को भरी हुई सभा में दुर्योधन के द्वारा निर्वस्त्र किये जाने पर ,वह एक असहाय दम तोड़ती हुई, अबला स्त्री के रुप में अपनी लाज व प्राणों को बचाने की याचना भगवान श्री कृष्ण जी से करती है।और भगवान श्री कृष्णजी द्रोपदी के चीर को बढ़ा कर दुर्योधन को हताश कर, द्रोपदी की रक्षा करते हैं। भगवान श्री कृष्ण जी की सहानुभूति और भक्त-वत्सलता, द्रोपदी के लिए "चेतना- अमृतांजलि" के समान प्रतीत हुई। इसी प्रकार असहाय व दुखी लोगों को मेरी काव्य रचनाएं, एक "चेतना- अमृतांजलि" के समान एक नयी चेतना का सृजन कर, नया जीवन प्रदान कर सकती है। इसीलिए मैंने अपनी नयी पुस्तक को शीर्षक "निर्मल काव्य चेतना-अमृतांजलि" प्रदान किया है ।
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