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रास्ते और मंज़िलें’ - रविन्द्र यादव,पलेरा(टीकमगढ़)

19 दिसम्बर 2023

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पुस्तक समीक्षा:-रास्ते और मंज़िलें’ 
                             समीक्षक-राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’

युवा कवि रविन्द्र यादव एक नये उभरते हुए कवि है जो कि अच्छा लिख रहे है उनकी कविताओं में भाव पक्ष बहुत विस्तृत है उनकी सोच युवा है उनका यह पहला कविता संग्रह ‘रास्ते और मंज़िलें’ प्रकाषित होकर आ रहा है इसमें उन्होंने ने काव्य के विविध रंगों व षटरसों का समावेष किया है। लगभग सभी प्रमुख विषय पर अपनी कलम बखूबी चलायी है। उनकी कुछ रचनाओं की कुछ पँक्तियाँ बानगी के तौर पर यहाँ हम प्रस्तुत कर रहे है लेकिन पूरा आनंद तो उनकी पूरी कविताएँ पढ़कर की मिलेगा।
वे अपनी कविताओं के माध्यम से युवाओं को आगे बढ़ने का हौसला देते कहते है-
बेसहारे नहीं तुम, बेचारे नहीं हो।
युवा हो किसी के सहारे नहीं हो।।

रविन्द्र जी एक रचना में कहते है कि ग़म किसे नहीं है फिर भी हमें सदा मुस्कुराते रहना चाहिए-
जिन्दगी में गम किसे नहीं मिले,।
रोज हँसना मुस्कुराना चाहिये ।।

वे कहते है कि वतन पर शहीद होना की सच्ची इबादत है-
वतन के वास्ते जीना जरूरी है मगर,
वतन के वास्ते मरना इबादत हैं।।

माता-पिता के लिए समर्पण और स्नेह बनाये रखने के  लिए वे कहते है कि-
यही सोचकर के हमने हँसती फोटो भेज दी,
मम्मी को लगेगा कि बेटा खुश तो है, चलो।।

रविन्द्र जी के कुछ मुक्तक भी मुझे बहुत अच्छे लगे है जैसे-
जो कुछ भी मामला है सारा आपसी का है।
सच पूछिये तो ये सफर इक बापसी का है।।

कहने को तो दुनियाँ में, सारे एक हैं लेकिन,
इस जमाने में क्या, कोई किसी का है?
रविन्द्र जी के कुछ मुक्तक भे देखे-
ये कैसी महक दिल की फिजाओं में घुल गई।
जैसे कि जिस्मों रूह की तबीयत बदल  गई।

मैं सोच  रहा  था कि किसे सोच कर लिखूँ,
फिर  गैलरी  में  आपकी  तस्वीर मिल गई।।

ऐसी अनेक रचनाएँ इस पुस्तक में है जो भावनाओं को समंदर अपने भीतर समेटे हुए हैं कवि की कल्पना और भावों का विस्तार बहुत अधिक है उनकी नयी सोच कविताओं को नया रूप देती है। रविन्द्र का यह पहला कविता संग्रह है आगे और अधिक उनकी कविताओं में निखार आता जायेगा। उनका यह पहल कविता संग्रह पठनीय है जहाँ आज का युवा साहित्य से दूर भागता जा रहा है ऐसे में श्री रविन्द्र जी का यह कविता संग्रह ‘रास्ते और मंज़िलें ’सराहनीय है। आज की युवा पीढ़ी क्या सोचती है, उनके मन में क्या चला रहा है और दिल में क्या हैै इन सभी विचारों को कविता के रूप में बहुत खूबसूरती के साथ श्री रविन्द्र जी पेश किया है।
              हम निदेशक महोदय आदरणीय श्री विकास दवे जी एवं मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी भोपाल के हृदय तल से बहुत-बहुत धन्यबाद देते है कि उन्होंने हमारे टीकमगढ़ जिले के एक उभरते हुए होनहार युवा कवि की रचनाओं का प्रकाशन हेतु आर्थिक सहयोग प्रदान कर उन्हें साहित्य जगत आगे बढ़ाने की सराहनीय पहल की है।
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समीक्षक-राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’
संपादक आकांक्षा पत्रिका
संपादक ‘अनुश्रुति’ बुंदेली त्रैमासिक ई पत्रिका
अध्यक्ष म.प्र.लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
 E Mail-   ranalidhori@gmail.com
      Blog - rajeevranalidhori.blogspot.com
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रचनाएँ
पुस्तक समीक्षा राना लिधौरी गौरव ग्रंथ
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समीक्षा-राना लिधौरी: गौरव ग्रंथ- संपादक -रामगोपाल रैकवार’ प्रकाशक- म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़ समीक्षक -एन.डी. सोनी, टीकमगढ़ मूल्य-1200/सजिल्द, पेज-426 सन्-2023 गौरव ग्रंथ या अभिनंदन गं्रथ लेखन की परम्परा साहित्य जगत में काफी समय से प्रचलित है,लेकिन हाल के कुछ बर्षो में इस परम्परा में बहुत तेजी से विकास हुआ है। पहले अच्छे स्थापित साहित्यकारों की संख्या कम होती थी और बर्षों में कोई सम्पादक अभिनंदन ग्रंथ लेखन की हिम्मत जुटा पाता था। आज साहित्य लेखन का विकास बहुत तेजी से हो रहा है और साहित्यकार कम समये में अधिक लेखन कर पुस्तकों का प्रकाशन कर रहे हैं और साधनों की सुलभता से उनका काम और नाम सबके सामने आ रहा है। मीडिया के माध्यम से उनकी ख्याति में चार चाँद लग रहे हैं। हर जिले में ऐसे साहित्यकार उभर कर सामने आ रहे हैं। इसी कड़ी में टीकमगढ़ जिले के मध्यप्रदेश लेखक संघ के जिलाध्यक्ष राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’ ने कम समय में अधिक लेखन कर ख्याति अर्जित की हैं वे गद्य एवं पद्य दोनों विधाओं में विभिन्न प्रकार से लेखन कर  रहे हैं । वे ‘आंकाक्षा’ पत्रिका का विगत 18 वर्षों से सफल संपादन करते आ रहे है और ई-बुक्स लेखन में तो उन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नए-नए रिकार्ड बनाए है। उन्होंने मात्र दो साल की अल्प अबधि में ही 133 ई बुक्स का ई प्रकाशन कर एक कीर्तिमान स्थापित कर दिया है। राना लिधौरी के इक्यावनवें जन्मदिन पर उनके निकटतम सहयोगी और घनिष्ट मित्र रामगोपाल रैकवार ने उन्हें गौरव ग्रंथ समर्पित कर एक बहुमूल्य तोहफा भेंट किया है। यह ग्रंथ राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’ के जीवन की ऐसी निधि है जो उन्हें आत्म संतोष के साथ प्रेरणा स्रोत का काम करेगी और वे अधिक लेखक का प्रयास करेंगे। यह गौरव ग्रंथ चार सौ छब्बीस पृष्ठों का है जिसे सम्पादक ने आठ खण्डांे में विभक्त किया है। म.प्र.लेखक के प्रदेशाध्यक्ष डाॅ. राम बल्लभ आचार्य ने ग्रंथ की भ्ूामिका लिखकर ‘राना लिधौरी’ और ग्रंथ का गौरव बढ़ाया हैं प्रथम खण्ड में राना लिधौरी पर केन्द्रित आलेख है जो उनकी प्रतिभा को उजागर करते हैं। इस खण्ड में उनके जीवन से जुड़े मित्रों और साथी साहित्यकारों ने उनके लेखन के विविध आयामों पर प्रकाश डाला है। डाॅ. बहादुर सिंह परमार,छत्रसाल विश्व विद्यालय(छतरपुर) और संतोष सिंह परिहार (बुरहानपुर)जैसे प्रतिष्ठित साहित्यकारों ने भी राना लिधौरी
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