*पुस्तक समीक्षा:-‘‘लोक देवता-राजा जगदेव’’ (महाकाव्य)*
लेखक:- डाॅ. एम.एल. प्रभाकर
प्रकाशन वर्षः- 2023 मूल्यः-1100रु. पेज-376
प्रकाशक-आशा प्रकाशन कानपुर-208002
*समीक्षक:- राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’(टीकमगढ़)*
*अदभुद् चरित महाकाव्य-‘लोक देवता-राजा जगदेव’
-राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’
लोक देवता दरदौल, लोकदेवता कारस देव,रतनगढ़ माता,माडुॅल, लोक कवि ईसुरी, हनुमानायन आदि जैसे बडे़-बडे़ महाकाव्यों का सृजन करने वाले विद्वान लेखक डाॅ. एम.एल. प्रभाकर जी बड़े-बड़े ग्रंथ लिखने में सद्धिहस्त रहे उन्होंने हाल ही में एक नया महाकाव्य ‘लोकदेवता राजा जगदेव’ की रचना की है। जो कि प्रकाशित होकर आया है। बुन्देलखण्ड में लोक देवताओं का बहुत महत्व है खासकर ग्रामीण अंचलों में विभिन्न लोक देवता रहे है लोग उनका बहुत सम्मान करते हैं एवं उन्हें समय-समय पर पूजते है।
इन्हीं लोक देवताओं में एक है लोक देवता-राजा जगदेव है जो कि धार मालवा क्षेत्र के परमार क्षत्रिय कुल में राजा भोज परामर बहुत प्रतापवान हुए इन्हीं राजा भोज परमार के वंश में उदयादित्य परमार के पुत्र राजा जगदेव हुए। उदयादित्य परामर की दो रानियाँ थी सेलंकिनी रानी एवं बघेली रानी। सोलंकिनी रानी के पुत्र राजा जगदेव हुए। इन्हीं राजा जगदेव पर केन्द्रित यह महाकाव्य है जिसे ‘चरित महाकाव्य’ कहा जा सकता है।
इस महाकाव्य में लेखक ने 8 भागों (सोपान में विभाजित करके उसमें 41 उप शीर्षकों के अंतर्गत विस्तार से रजा जगदेव में चरितका वर्णन किया है। उन्हें जन्म से लेकर अंत तक कि सारी घटनाओं को काव्य के रूप में बहुत ही सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया गया है।
प्रथम सोपान में जिसे लेखन ने ‘धार्मिक सर्ग’ नाम दिया है उसमें उन्होंने विनायक वंदन शारद वंदन,अंबे वंदन, सर्व-वंदन आदि में अपने इष्ट देवों का स्मरण किया है। प्रारंभ में विनायक -वंदन में उनका प्रथम दोहा उल्लेखनीय है-
*शिव गौरा सुत लाडले, गण नायक सिरमौर।*
*सिद्धि विनायक गजवदन,कवि कोविद हिय ठौर।।*
*द्वितीय सोपान में ‘पारिवारिक सर्ग’* के अंतर्गत डाॅ. प्रभाकर जी ने जगदेव के जन्म, उनकी प्रतिभा, बिहार, उनके विवाह, वीरमती से मिलन आदि का काव्यमय वर्णन किया है।
द्वितीय सोपान में यह दोेहे दृष्टव्य है-
*भोज बाद जयसिंह सुत, गद्दी को अपनाय।*
*दस्यु दल मिलकर लड़ै, अंत अमर पद पाय।।*
शांतिमय शासन चला, पुनरुद्धार कराय।
राजधानी खुशीयाँरमीं कर्ण हरा सुख पाय।।
*तृतीय सोपान में ‘प्रवास सर्ग*’ के अंतर्गत लेखक ने जगदेव के विभन्न स्थानों में प्रवासों का जैसे उनके वनवास,माता मन्तव्य,सुसुराल गमन, वीरमती वन गमन, वीरमती का पाटन पहुँचना एवं वीरमती की वीरता के समय घटी प्रमुख घटनाओं आदि का बहुत सुंदर काव्यमय चित्रण किया है। कुछ घटनाओं पर दो दोहे देखिए-
नारि हित पथभ्रष्ट जन, फिर भी नाहिं सचेत।
भाव रूपसी पाल मन, बीज पाप तन खेत।।
जगदेव बाहर जावहिं, हो सूना दरवार।
सकत समस्याएँ पनप, नाहीं पारावार।।
*चतुर्थ सोपान में ‘कर्तव्यनिष्ठा-सर्ग’* के अंतर्गत जगदेव-वीरमती का पाटन नरेश के महल पहुँचना, वीरांगना वीरमती-कमोला, फलमती सम्भाषण, शक्ति-भैरव पावन स्थल चित्रण,जगदेव-जयसिंह सम्भाष्य, जग देव भैरवः संघर्ष ,भैरव-अंतद्र्वन्द आदि घटनाओं का वर्णन किया है।
ये दोहा दृष्टव्य है- जगदेव भतीजा जान, रिश्ता परम निभाय।
महल रहहिं हिय भावना, फूल करहि हरियाय।।
इसी सर्ग में श्रृंगारिक दोहा देखे- मैं हूँ प्रेम पूजारी, बात रूपसी भाय। और नहीं कुछ चाहता, दियो प्यास बुझाय।।
*पंचम सोपान में ‘परोपकारिता-सर्ग’* के अंतर्गत देवी माँ का पाटन शुभागमन, देवी द्वारा दान माँगना, जगदवे-शीशदान, जगदेव को जागीर एवं वधुएँ मिलना,जगदेव द्वारा जागीदारी प्रबंधन, एवं जगदेव-संतानोत्पत्ति आदि के विषय में काव्यमय विवरण दिया गया है।
पाटन पर कलम चलाते लेखक लिखते हैं-सारी गाथा रच कहीं,पाटन अति रमणीक।
मैं विचरण कर लौटता, नहीं घटा कदफ ठीक।।
देवी भैरव सुन वचन, नहीं मानता बैन।
पाटन हित कर त्यारी,माता मन सुख दैन।।
*षष्ठ सोपान में ‘शौर्य-सर्ग’* के अंतर्गत जगदेव का धार प्रत्यागमन,राजा जगदेव पिता-माता स्वर्गारोहण, साम्राज्य-विस्तार,सुता श्यामली देवी विवाह-युद्ध, जगदेव पुत्रियों का विवाह, राजा जगदेव-राज्य प्रबंधन आदि विषयों पर विस्तृत उल्लेख किया गया है। जगदेव के शौर्य का वर्णन करते हुए लेखक लिखतें हैं- पितु सम लक्षण सब अहै, रूप तेज बलधाम।
धरनी पग जहँ-जहँ परहिं, पाय विजय शुभ काम।।
*सप्तम सोपान में ‘भक्ति-सर्ग’* के अंतर्गत जगदेव की दुर्गा भक्ति एवं राजा देव का सपत्नीक-स्वर्गारोहण आदि के विषय के बताया गया है। कि किस प्रकार से प्रतिदिन राजा जगदेवदुर्गा मंदिर जाया करते थे-
आजीवन जगदेव नित,दुर्गा मंदिर जाय।
पूजन अर्चन बाद ही, नीर असन अपनाय।।
राजा जगदेव रानी, दुर्गाचरण पखार।
तपहि रसोई हाथ नित, सेवा भाव उदार।।
*अष्ठम सोपान में ‘उत्तरवर्ती-सर्ग’* में राजा जगदेव के पश्चातवर्ती शासक एवं अंत में तात्विक विवेचन दिया गया है। जगदेव के बारे में एक दोहा में लेखक लिखता है कि-
लोक देवता नाम से,गाँव प्रसिद्धि पाय।
बुन्देलखण्ड खासकर,जन पूजहि हरषाय।।
अंत में लेखक लिखता है कि यदि मुझसे लिखने में कोई भूल हो गयी हो तो मुझे क्षमा करे।
अमित बड़ा भण्डार है, वर्णन वंश पँवार।
अल्पबुद्धि से लिख दिया, भूल लेव संभार।।
इस प्रकार से पूरे आठ सर्ग में 41 विषयों में बहुत ही विस्तार से राजा जगदेव के बारे में बहुत ही सूक्ष्म वर्णन किया गया है। उनके जीवन कि लगभग सभी प्रमुख घटनाओं को बहुत ही सुंदर ढंग से काव्य मय प्रस्तुत किया गया है जो कि पठनीय है काव्य मे दोहों का बहुत बढ़िया प्रयोग किया गया है जिससे इस महाकाव्य को गाया भी जा सकता है।
लेखक डाॅ. एम.एल. प्रभाकार जी ने इसे रचते समय निसंदेह बहुत अथक श्रम किया है राजा जगदेव के विषय में इतनी अधिक जानकारी एकत्रित कर फिर उसे अपने काव्य कौशल से काव्य मय बनाने का कार्य स्तुत्य है।
----0000----
*समीक्षक-राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’*
संपादक ‘आकांक्षा’ (हिन्दी) पत्रिका
संपादक ‘अनुश्रुति’ (बुन्देली) पत्रिका
अध्यक्ष-म.प्र लेखक संघ,टीकमगढ़
अध्यक्ष- वनमाली सृजन पीठ, टीकमगढ़
कोषाध्यक्ष-श्री वीरेन्द्र केशव साहित्य परिषद्
शिवनगर कालौनी,टीकमगढ़ (म.प्र.)
पिनः472001 मोबाइल-9893520965
E Mail- ranalidhori@gmail.com
Blog - rajeevranalidhori.blogspot.com