कवि
कठनाई रास्ते का कांटा नहीं,अपितु अवसर होता है,कुछ कर दिखाने का
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बोल कम और कर अधिक। राह चल और बन पथिक। पथ पर चलना आगे बढ़ना बढ़ते रहना तब तलक राह के कांटे हट ना जाये ना पा लो मंजिल तब तलक लोग हसेंगे कहेंगे पागल फिकर नही करना तुमको बस चलते रहना बढ़ते रहना
छोड़कर कर कर्म का,बैठा है भाग्य भोगने। अपनी ही गलतियों को,किस्मत पर थोपने। पढ़ाई गरीबी से नि कर सका, ये बहाना अच्छा है। रोज रोज गढ़ कर कहानी,क्या? सुनना अच्छा है। छोड़दी पुस्तके पैसे की खा
उठो चलो चले चॉद के ऊपर,संसय पीछे छोड चलें राह के सूल रोंध बढ़ आगे, सूर्य से रिश्ता जोड़ चलें कर कर्तव्य कठिन कार्य,हम उसको सरल बना लेगे अपने भुजदंडो के बलबर,रस्ता स्वमं बना देगे नही रूके है न
जाना कहा था,और किधर बढ़ रहा हूं। लिखनी थी दूसरो, की किस्मत पर खुद की लकीरें पढ़ रहा हूं। गुस्सा आ रहा है सब पर पर खुद से लड़ रहा हूं। हकीकत में कुछ नहीं अभी बस कुछ सपने मढ़ रहा हूं। और आगे ब
मैं किसी कहानी का,किरदार नही हो सकता हूं। मेरी जीत सुनिश्चित है, मैं हार नहीं हो सकता हूं। मैं खुद ही अपनी फिल्मों का, हीरो और खलनायक हूं। मैं ही खुद का राह प्रदर्शक,ओ मैं ही पथ परिचायक हूं।
हम भाग्य के भरोसे नहीं,मेहनत के दम पर बढ़ते है।हम भाग्य के भरोसे नहीं,मेहनत के दम पर बढ़ते है। हम लिफ्ट के आदी कहां,हर रोज सीढियां चढ़ते है। बंद कमरों में हमने हरदम,मेहनत के बीज बोए है। यार हम
हम प्रणय सूत्र में,अब बंधेगे मगरतुम किसी और से,में किसी और सेहल्दी लग जायेगी,मांग भर जाएगीफेरे पड़ जाएंगे,पर किसी और सेसिर पे सहरा सजा, मुझको देगा सजागहरी मेंहदी का रंग, न तुम्हे भायेगाकैसे लिख पाओगी
<p><em><strong>आज हमारे चारो तरफ़ एक घमंड रूपी अंधकार फ़ैला हुआ है, ओर हम इस तिमिर मै कुछ इस तरह लिप्त