छोड़कर कर कर्म का,बैठा है भाग्य भोगने।
अपनी ही गलतियों को,किस्मत पर थोपने।
पढ़ाई गरीबी से नि कर सका, ये बहाना अच्छा है।
रोज रोज गढ़ कर कहानी,क्या? सुनना अच्छा है।
छोड़दी पुस्तके पैसे की खातिर, इसमें के लाखो मिले
छोड़ा हो नशा पैसे की खातिर,तो बताना अच्छा है।
जिंदा हो भी अपना, अस्तित्व तो दिखाइए।
जख्म पर मरहम नहीं, नमक ही लगाइए।।
पढ़कर भी गा रहे गर,गीत बेरोजगार का तो।
आज सारी अंकसूचियो को,आग में जलाइए।।
छोड़कर के सुख का आंचल,आंच मैं जलाइए।
अरे भाई नोकर नही खुद को,मालिक बनाइए।।
चलते है सैकड़ों जिस, रास्ते पर आज भी।
छोड़कर वो रास्ता, खुद रास्ता बनाइए।।
✍️राजा आदर्श गर्ग✍️