हम भाग्य के भरोसे नहीं,मेहनत के दम पर बढ़ते है।हम भाग्य के भरोसे नहीं,मेहनत के दम पर बढ़ते है।
हम लिफ्ट के आदी कहां,हर रोज सीढियां चढ़ते है।
बंद कमरों में हमने हरदम,मेहनत के बीज बोए है।
यार हम कहां कभी वक्त की, ठोकरों पर रोए है।
हमने पानी नही सिर्फ,आंखो की रोशनी को सीचा है।
हमने स्वंम ही प्रतिबिंब अपना, हर दिशा से,खींचा है।
जब मैंने ही खुद को खुद से,गढ़ गढ़ कर निर्माण किया।
रोज परिस्थियो से लड़कर, उनको हर दम प्रमाण दिया।
पहले मैं हूं,फिर पीछे मेरे, बड़े बड़े हालात खड़े।
तो उन हालातो से कहदो,लाखो तेरे पाथ पड़े।
चल लगा दाव तूं अपने सारे,पीछे करके दिखा मुझे।
जरा मैं भी देखूं तूं कैसा है,आगे बढ़ने से रूका मुझे।
अरे ये कर्मवीर का कारवां है, कर्तव्य जहां है सारथी।
मुझे कोई फर्क नहीं पड़ेगा, तूं कायर हो या महारथी।
✍️राजा आदर्श गर्ग✍️