जाना कहा था,और किधर बढ़ रहा हूं।
लिखनी थी दूसरो, की किस्मत पर
खुद की लकीरें पढ़ रहा हूं।
गुस्सा आ रहा है सब पर
पर खुद से लड़ रहा हूं।
हकीकत में कुछ नहीं अभी
बस कुछ सपने मढ़ रहा हूं।
और आगे बढ़ने को
कठनाइयो के पर्वत चढ़ रहा हूं।
विश्वास है मुझे,सब ठीक होगा
कुछ न करने से बेहतर,कुछ तो कर रहा हूं।
जब हासिल अभी कुछ किया ही नहीं
तो फिर क्यों खोने से डर रहा हु।
✍️राजा आदर्श गर्ग✍️