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राजा और सितार

31 जुलाई 2016

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राजा ने कहा - " सितार मंगवाओ ! " दरबार में सितार लाया गया । राजा का अगला आदेश था - " जो इस सितार को बिना स्पर्श किए बजा देगा , उसे सबसे बड़े संगीतकार का ओहदा मिलेगा ।" तमाम संगीतकार दरबार में आये । सबने अपना - अपना हुनर आजमाया । पर, कोई भी बिना स्पर्श किए सितार को नहीं बजा पाया । राजा थोडा सनकी था । उसने राज्य भर में मुनादी करवा दी कि इस राज्य में कोई भी संगीतकार कहलाने के लायक नहीं है । समूचे राज्य के संगीतकारों में हलचल मच गयी । अब बात उनकी प्रतिष्ठा पर आ गयी थी । कलाकार सबकुछ सह सकता है लेकिन अपमान नहीं ! संगीतकारों की बैठक हुई । और बैठक का नतीजा भी निकला ! अगले दिन दरबार में एक साधू आ पहुंचा । उसने राजा से कहा - " राजन् ! मैं तुम्हारा सितार बिना स्पर्श किए बजा दूंगा । पर, मेरी एक शर्त है ! " " कैसी शर्त ? " - राजा ने पूछा । " मैं जो गीत गाऊंगा उसे सुनकर यह सितार बजने लगेगा । पर, यह तभी बजेगा जब राजा गीत सुनकर नाचे नहीं ।" " ऐ साधू ! तू पागल है क्या ? तेरे गीत को सुनकर मैं क्यों नाचूँगा ? " " हाँ ! महाराज ! मैं भी कुछ ऐसा ही सोचता हूँ की मेरे गीत को सुनकर आप नहीं नाचेंगे । तब यह सितार अपने आप बजने लगेगा । किन्तु, अगर आप नाचने लगे तो यह सितार नहीं बजेगा । " " लगता है तुम्हारी मानसिक स्थिति ठीक नहीं है । मैं क्यों नाचूँगा ? खैर , छोड़ो इस बात को । अपना गीत सुनाओ । " दरबार में कानाफूसी होने लगी । फिर , साधू ने गीत गाना शुरू किया । उसके कंठ में जादू था । उसके गीत को सुनकर आकाश में काले बादल छाने लगे । वन में मयूर थिरकने लगे । और आश्चर्य की बात ! जैसा कि साधू ने कहा था - राजा के मस्तिष्क का नियंत्रण शरीर से हटने लगा । और देखते ही देखते राजा भरे दरबार में झूम - झूम कर नाचने लगा । पूरी सभा स्तब्ध हो गयी । सामने राजा मतवाला होकर नाच रहा था । सितार नहीं बजा ! साधू ने धीरे - धीरे गीत गाना बंद कर दिया । राजा के पाँव भी धीरे - धीरे शांत हो गए । उसे होश आया । उसे बहुत ही शर्मिंदगी महसूस हो रही थी । लेकिन राजा ने हार नहीं मानी । उसने एक बार फिर से साधू को गीत गाने को कहा । राजा ने ठान लिया था कि इस बार वह नहीं नाचेगा । साधू ने एक बार फिर से गीत गाना शुरू किया । फिर से आकाश में काले बादल छाने लगे । वन में मयूर थिरक उठे । और राजा के मस्तिष्क का नियंत्रण शरीर से हटने लगा । देखते ही देखते फिर से राजा भरे दरबार में झूम - झूम कर नाचने लगा । सभा स्तब्ध ! सितार नहीं बजा ! साधू ने धीरे - धीरे संगीत के स्वर को विराम दिया । राजा के पाँव धीरे - धीरे शांत हो गए । उसे होश आया । फिर से एक बार राजा शर्मिन्दा था । तब से लेकर आज तक गीत सुनकर राजा नाचने लगते हैं और सितार नहीं बजता ! जिस दिन राजा नहीं नाचेगा, सितार बज उठेगा !  गल्पकथा Galpkatha: राजा और सितार

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