और फिर जंगल में क्रांति हुई ! जानवरों का कहना था कि शेर अब निरंकुश हो गया है और सिर्फ अपनी मनमानी करता है। उसकी सबसे खराब आदत यह थी कि ऊँचे टीले पर बैठते ही अपने ऊपर काबू नहीं रख पाता था । एक लंबी छलांग और धर दबोचता कोई शिकार ! हाँ ! तो फिर जंगल में क्रांति हुई ! भेड़िये, कुत्ते, हाथी, लोमड़ी और ना जाने कौन - कौन से जानवर । सबने मिलकर शेर को गद्दी से उतार दिया । एक अकेला शेर भला पूरे जंगल से कैसे लड़ता । नया राजा चुना गया । नया राजा था भेड़िया । भेड़िया वाकई जानवरों की उम्मीदों पर खरा उतरा । जंगल में सब कुछ अच्छा होने लगा । एक दिन भेड़िया ऊँचे टीले के पास से गुजर रहा था । टीले में गजब का आकर्षण था । भेड़िया उधर खिंचता चला गया । और जा बैठा उस ऊँचे टीले पर । टीले से जंगल की दुनिया अलग ही दिख रही थी । खरगोश, हिरण, नीलगाय - सब एकदम स्पष्ट दिख रहे थे । अचानक, एक हिरण उसे आता दिखा । उसकी खाल धूप में सोने जैसी चमक रही थी । और फिर धीरे -धीरे भेड़िये पर टीले का जादू चढ़ने लगा । आँखों में नशा , नसों में नशा और न जाने कब उसने छलांग लगा दी उस हिरण पर । अब जब भी शेर उस टीले के पास से गुजरता है तो भेड़िये को देखकर मुस्कुराता है । सुना है ! फिर से जंगल में क्रान्ति होने वाली है । लेखक - राजू रंजन