और फिर उस अँधेरी रात में एक चमकते हुए तारे ने दूसरे तारे से पूछा - " इस ठंडी रात में वो इंसान खुले मैदान में क्यों बैठा है ? " दूसरे तारे ने टिमटिमाते हुए कहा " वो इंसान सच जानना चाहता है - इस जगत का सत्य ! " "तो क्या इस तरह शरीर को दुःख पहुँचाने से वो सच जान जाएगा ? ' " कहते हैं पहले कई इंसानो ने ऐसे ही सच को पाया है । " ऐसे ही कई रात गुजरती गईं । दोनों तारे हर रात उस इंसान को ऐसे ही ठण्ड में ठिठुरते देखते और ईश्वर से प्रार्थना करते कि इस इंसान को जल्दी ही सच मिल जाए। एक दिन यूँ ही वो इंसान ठण्ड में ठिठुर रहा था । उसके बगल से कोई भला आदमी गुजरा । उससे देखा न गया तो वह अपना कम्बल उसके ऊपर डालकर आगे बढ़ गया । पर वो इंसान जिद्दी था । उसने कम्बल उतारकर रख दिया और फिर से ठिठुरने लगा । सर्दियां बढ़ती जा रही थीँ और उसे सच का पता अभी भी नहीं चला था । अब ठण्ड इतनी बढ़ चुकी थी कि सारी रात ठण्ड में बैठना मौत का कारण भी बन सकता था । पर वो इंसान तो जिद्दी था । बैठा रहा यूँ ही ठिठुरता हुआ । आज की सर्दी जानलेवा थी । उसका शरीर ठंडा पड़ने लगा । धीरे - धीरे उसकी साँसे थमने लगीं । और न जाने कब वो बेहोश हो गया । पर उसकी किस्मत में मौत नहीं थी । वही भला आदमी फिर से उधर से गुजरा । उसने अपना कम्बल उस बेहोश इंसान के ऊपर ओढ़ा दिया और आगे बढ़ गया । कम्बल की गर्माहट ने धीरे - धीरे असर दिखाया और उसकी जान बच गयी । अगले दिन दोनों तारे फिर से आकाश में टिमटिमाते हुए उस जिद्दी इंसान को ढूंढ रहे थे । पर, वो इंसान आज मैदान में नहीं दिखा । कई रातें गुजरीं पर, वो इंसान नहो दिखा । तब पहले तारे ने कहा - " लगता है उस इंसान को सच मिल गया ! " " हाँ ! पर वो सच है क्या ? " - दूसरे ने पूछा । " यह तो वो इंसान ही बता सकता है । " ऐसा बोलकर पहला तारा दूसरे तारे को लेकर उस इंसान के घर के आँगन में पहुंचा । वो इंसान वही कम्बल ओढ़े लेटा था । उसकी आँखों में आंसू थे । तारे ने टिमटिमाते हुए उससे पूछा - " क्या तुझे सच का पता चला ? " इंसान बोला - " हाँ ! सच इस कम्बल में छुपा है ।" बेचारा तारा समझा नहीं "मतलब ? जरा ठीक से समझाओ । " " उस रात जब मैं मरने ही वाला था एक भले आदमी ने मुझे कम्बल ओढ़ा दिया था । जब मैं सुबह सोकर उठा तो घर जाने के रास्ते में मुझे एक ठण्ड से मरे हुए आदमी की लाश मिली । यह उसी आदमी की लाश थी जिसने मुझे कम्बल दिया था । " उस इंसान ने अपने सर को भी कम्बल में छुपा लिया और जोर - जोर से रोने लगा । तारे वहां से हँसते हुए भागे - " एक और इंसान को सच का पता चल गया । " लेखक - राजू रंजन