रोज कॉलेज से आने-जाने का यही रास्ता है पिछले कई वर्षों से इसी एक रास्ते से कॉलेज आती-जाती हूँ आज घर आते समय हवा के तेज झोंके के साथ रजनीगंधा फूलों की सुगंध मेरी साँसों में आयी और रोम-रोम तरोताजा हो गया...... अचानक ही मेरा ध्यान उस छोटी सी दुकान की तरफ गया जहाँ से यह सुगंध आ रही थीं।
रजनीगंधा फूल की सुगंध ने जहाँ मेरे मन को तरोताजा कर दिया वही पुरानी यादों को भी ताज़ा कर दिया.... यह बात आज से बाईस साल पुरानी है उस समय मैंने स्नातक की डिग्री के लिए विश्वविद्यालय में दाखिला लिया था। अभी तक की पूरी पढ़ाई मैंने गर्ल्स कॉलेज में की थी इसलिए विश्वविद्यालय जाने में एक अजीब सी हिचक और एक अजीब सा डर मन में समाया हुआ था कि क्या मैं विश्वविद्यालय के माहौल के हिसाब से अपने आप को ढाल पाऊँगी?
किसी तरह हिम्मत जुटाकर आज मैं विश्वविद्यालय गई, मेरे अंदर के छिपे डर और हिचक के भाव मेरे चेहरे पर साफ झलक रहे थे। अंदर प्रवेश करने के पश्चात मैं अपनी कक्षा की ओर बढीं तभी मेरी नज़र एक ग्रुप की तरफ गई उस ग्रुप में तकरीबन दस - बारह लड़के- लड़कियां होंगे जो कि सीढ़ी पर बैठे हुए थे उन लोगों को देखकर अनायास ही मेरी चाल तेज हो गई मुश्किल से तीन-चार कदम आगे बढ़ा पायीं ही थी कि पीछे से एक आवाज़ आई.. ओ मैडम जरा एक मिनट सुनिए। मैंने पीछे पलट कर देखा तो उसी ग्रुप से एक लड़की की आवाज़ थी अपनी उंगली से इशारा कर के मुझे अपनी ओर बुलाया और कहा "अपना इंट्रोडक्शन दो। " घबराई हुई तो पहले से ही थी उनके बुलाने पर पसीने - पसीने भी हो गई। थोड़ी हिम्मत जुटाकर अपना नाम बताया राशि अवस्थी बी. ए. फर्स्ट ईयर। आगे कुछ कहती तब तक उसी में से एक लड़की बोली- गाना सुनाओ कुछ सेकंड शांत रहने के बाद मैंने बोला मुझे गाना नहीं आता। इसी बीच एक लडका बोला - लेट हो रहा है क्लास के लिए चलो आज फर्स्ट डे है क्लास का और अगर कोई सीनियर हमलोगों को रैगिंग लेते हुए देख लेगा तो प्रोब्लम हो जाएगी।
उसका नाम शिखर था नाम तो बाद में मालूम हुआ था पर यह हमारी पहली मुलाकात थी। साँवला रंग, तीखे नैन-नक्श सामान्य सी कद-काठी एक बार को लगा था कि कोई सीनियर होगा पर वह हमारा बैच मेट निकला। कुछ तो खास था उसमें जो पहली बार देखकर और कुछ मिनटों की मुलाकात के बाद भी वह मेरे मस्तिष्क के किसी कोने में अपनी छाप छोड़ गया था। उसके बाद सामान्य सी कई मुलाक़ाते हुईं जैसे - लाइब्रेरी, कैंटीन, क्लासेज आदि में जब भी मेरा और शिखर का आमना-सामना होता तो हम एक दूसरे को स्माइल पास कर देते बस। धीरे-धीरे हम लोगों के बीच औपचारिक बातें भी होने लगी अब हम लोगों में अच्छी मित्रता हो गई थी। इतने दिनों में उसके स्वभाव का भी पता चल गया था। उसको स्वतंत्रता पसंद थी, बहुत अधिक व्यवहार कुशल, मस्त-मौला, सबकी मदद के लिए हमेशा तैयार रहने वाला और पढ़ाई को कभी भी सीरियसली नहीं लेता था इसका कारण एक यह भी हो सकता है कि उसके पिता शहर के मशहूर बिजनेस मैन थे और साथ ही रूलिंग पार्टी के नेता थे।
मेरा स्वभाव उससे बिल्कुल विपरीत था मैं मध्यम वर्ग से आती जहाँ पढाई को बहुत अधिक महत्व दिया जाता था मेरा स्वभाव उसकी तुलना में काफी शांत मेरी मित्रता भी सीमित ही लोगों तक थी। धीरे-धीरे हम दोनों को साथ-साथ रहते हुए तीन साल गुजर गए इन तीन सालों में न उसने कभी भी अपने मन की कोई बात मुझसे की और न ही मुझसे मेरे मन की बात पूछी बस एक खास बात थी कि इधर एक डेढ़ साल से मेरे लिए अक्सर रजनीगंधा के फूल लाता और जब मैं पूछती यह किस लिए तो बोलता " तुम्हारे जैसे फूल तुम्हारे लिए। " तुम्हें पसंद है यह फूल मुझे रास्ते में मिले मैं ले आया।
धीरे-धीरे तीन साल हो गए और अब हम लोग ग्रेजुएट हो गए आगे की पढ़ाई के लिए हम दोनों ने एक ही सब्जेक्ट से पी. जी. के लिए एडमिशन लिया। अब तक हम दोनों के बीच दोस्ती से कुछ ज्यादा और भी कुछ था पर न वो कुछ कहता और न ही मैं कुछ कहती। धीरे-धीरे एक साल और बीत गया हम लोगों के बीच एक खास बात थी हमलोगों में कभी भी मतभेद नहीं हुए शायद इसलिए क्योंकि हम दोनों ने एक दूसरे को पूरा स्पेस दे रखा था। अब हमारा पी. जी. का फाइनल ईयर था अब वह मेरा ध्यान पहले से ज्यादा रखने लगा था। धीरे-धीरे हम अपने मन के भावों को व्यक्त भी करने लगे पर अभी भी हमने अपने मध्य हुए प्रेम को एक दूसरे से नहीं कहा।
समय को मानो पंख से लग गये हमारा पी. जी. भी पूरा होने को आया। इसी बीच हमारे विभाग से एक एजुकेशनल टूर जाने का प्रोग्राम बना जिसमें बाहर जाना था मैं जाने के लिए बहुत उत्साहित थी मगर घर में मेरे इस टूर पर जाने की इच्छा को एक सिरे से नकार दिया गया। दूसरे दिन मैंने अपने न जा पाने की बात शिखर को बताई तो उसने अपना जाने का प्रोग्राम कैंसिल कर दिया मैंने पूछा तुम क्यों नहीं जा रहे हो तो वह बोला "जहाँ राशि नहीं वहां शिखर जाकर क्या करेगा ।" मैं अवाक् सी रह गई क्योंकि आज पहली बार उसने मुझसे ऐसा कुछ कहा। मन ही मन मै बहुत खुश थी।
कुछ ही दिनों बाद.... आज हमारी फेयरवेल पार्टी थी मुझे पूरी उम्मीद थी कि वह अपने मन की हर बात मुझसे कहेगा.... पर वह वहां आया ही नहीं मुझे बहुत खराब लगा मै भी बीच पार्टी में से निकल गई वह मुझे बाहर मेन गेट पर खड़ा मिला मैं उस से गुस्सा थी और उसे एवाइड कर के आगे बढ़ना चाहती थी पर उसने मुझे बीच में रोकते हुए कहा "हो गई पार्टी मेरे बिना। " मैंने कोई जवाब नहीं दिया उसने पूछा गुस्सा हो? मैंने कहा- नहीं। तो मुझे एव्वाइड क्यों कर रही थी अभी? मैंने कहा क्यों एव्वाइड भी नहीं कर सकती क्या मैं अब। तुम पार्टी में न आओ तो सही और मैं गुस्से में एव्वाइड भी नहीं कर सकती..... यह कह कर मैं रोने लगी आज इतने सालों में पहली बार मैंने उससे इस तरह से बात की थी।
उसने मेरे हाथों को अपने हाथ में लेकर मुझसे कहा - "राशि क्या तुम्हें भी मेरी कमी महसूस होती है, क्या तुम भी मुझे हर समय अपने साथ चाहती हो?" इन सवालों में उसने अपने मन के भावों को खोलकर मेरे सामने रख दिया था मैंनें हां में सहमति देकर अपने मन के भावों को उसके सामने खोल कर रख दिया। अब हम बाहर भी मिलने लगे क्योंकि हमारी पढ़ाई पूरी हो चुकी थी और मैंने आगे पी. एच. डी. में प्रवेश ले लिया था और वह अपने पिता का बिजनेस संभालने लगा था।
हमारे बाहर मिलना रोज की बात हो गई थी इधर मेरे घर में मेरे शादी की बातों ने जोर पकड़ लिया था पर मैंने शिखर पर शादी का कोई दवाब नहीं डाला क्योंकि उसने मुझसे कभी शादी के बारे में कहा ही नहीं था। उसे आजादी पसंद थी और मुझे लगता था कि शादी को वह बंधन न समझ बैठे वैसे भी हमारे प्रेम में न कसमें थी, न वादे थे, था तो सिर्फ समर्पण। सब कुछ अच्छा चल रहा था कि अचानक एक दिन सुबह-सुबह मेरे फोन की घंटी बजी हमारी कॉमन फ्रेंड की काॅल आयी- राशि क्या तुम्हें पता चला? मैंने पूछा क्या - अरे शिखर का कल रात एक्सीडेंट हो गया एंड ही इस नो मोर... यह सुनकर मैं सन्न रह गई।
आज भी मानों शिखर की बातें मेरे कानों में गूंजती है उसके जाने के बाद मैंने रजनीगंधा फूलों को हाथ नहीं लगाया इसी उम्मीद में कि शायद शिखर एक बार फिर रजनीगंधा के फूलों को लेकर मेरे सामने आकर खड़ा हो जाये और कहें- "तुम्हारे जैसे फूल तुम्हारे लिए।" आज भी शिखर का इंतजार कर रही है राशि......