राकेश कुशवाहा राही
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इलाहाबाद विश्वविद्यालय इलाहाबाद से हिन्दी साहित्य से परास्नातक । वर्तमान में अध्यापन कार्य में संलग्न प्रवक्ता हिन्दी । काव्य सृजन में रूचि ।
जब तुम नही होती
"जब तुम नही होती " एक पुस्तक मात्र नही यह एक टूटे हुए मन की मनोवैज्ञानिक स्थितियों का ताना बाना है। मन का बिखरा दर्द कुछ मेरे है तो कुछ आपके भी है। " मेरे जीवन में रंजो गम की आँधियां है बस, माना कि तुम खुश हो तुम्हारा वहम है सब।"
जब तुम नही होती
"जब तुम नही होती " एक पुस्तक मात्र नही यह एक टूटे हुए मन की मनोवैज्ञानिक स्थितियों का ताना बाना है। मन का बिखरा दर्द कुछ मेरे है तो कुछ आपके भी है। " मेरे जीवन में रंजो गम की आँधियां है बस, माना कि तुम खुश हो तुम्हारा वहम है सब।"