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रामायण सार

सत्यम कुमार मिश्रा

38 अध्याय
1 लोगों ने खरीदा
3 पाठक
9 अक्टूबर 2022 को पूर्ण की गई

श्रीराम को 14 वर्ष का ही वनवास क्यूँ हुआ था ? शिवलिंग वास्तव में क्या है ? सनातन धर्म की उत्पत्ति कैसे हुई? धर्म क्या है ? हमारे धर्म के वैज्ञानिक रहस्य क्या हैं? इसे अनेकों प्रश्नों के उत्तर तथा श्रीराम जी की संक्षिप्त जीवनी आपके समक्ष उपस्थित है हम यह देख भी रहे हैं कि अभी जो समय चल रहा है , इस समय पुस्तकों का चलन बहुत कम होगया है | इस समय बच्चों के अन्दर मंदिर जाने तथा सत्संग से रूचि पूर्णतया हट गयी है , मोबाइल के आगे बालक व् बड़े किसी कि नहीं सुनते हैं , इसी बीच हमने चिंतन किया और प्रभु ने प्रेरणा दी कि क्यूँ न हम ही एक छोटा सा प्रयास करके आप सभी को उछ मर्यादा सिखाने का प्रयास करें ताकि आप सभी को देखकर आपके बालक, मित्र तथा आत्मीयजन इस सुन्दर पुस्तक का लाभ उठा सकें तथा इसको जानकार रामायण पढने की रूचि को बढ़ावा मिले ताकि उनके अन्दर भी धर्म का मार्ग प्रशस्त किया जासके | बहुत सरे मनुष्यों के अन्दर यह प्रश्न आता है कि जब भगवन इच्छा मात्र से सबकुछ कर सकते थे , मन के सोचने मात्र से रावण आदी का अंत कर सकते थे सो उन्हें अवतार लेने की क्या आवश्यकता क्या थी ? इसका सीधा सा उत्तर भगवन स्वयं देते हैं कि मेरी लीला को देखकर मानव मात्र को किस प्रकार का आचरण करना चाहिए | हमारे कर्म पथ को दिखाने के लिए ही श्रीमान नारायण ने श्रीराम का अवतार लिया ताकि जन-जन तक ज्ञान की गंगा को पहुंचा सकें एवं मानव को मोक्ष का मार्ग दिखा सकें| सरल भाषा में इस पुस्तक को बनाने का शुल्क मात्र इतना ही है कि इससे आप कुछ शिक्षा लेसकें और यदि कुछ अच्छा लगे तो और लोगों को इस पुस्तक को पढने की प्रेरणा प्रदान कर सकें |  

ramayan sar

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पुस्तक के भाग

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1- महाराज दशरथ जी का गुरुदेव से आदेश पाकर ऋषि श्रृंग मुनि के पास जाना

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इस बात प्रसंग से रामायण काल का आरंभ होता है, शिक्षा का आरंभकाल बजी भी  यहीं से आरंभ होजाता है । पुत्र की कामना से व्याकुल दशरथ जी जब गुरुदेव महर्षि वशिष्ठ से कहते हैं कि हे गुरुदेव बस पुत्रों की कमी

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2-पुत्रों को गुरुकुल भेजने के पहले महत्वपूर्ण शिक्षा देना।

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अपने चारों पुत्रों को श्रीमान गुरुदेव के यहां शिक्षा हेतु भेजने के पहले महाराज दशरथ बताते हैं कि वहां पर जाने पर गुरुदेव के सोने के बाद सोना है, उनके जागने से पहले जागना है, सभी शिष्य एक समान रहेंगे,

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3- गुरुदेव द्वारा कठोर तथा महत्वपूर्ण शिक्षा प्रदान करना

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गुरुदेवश्री वशिष्ठ जी ने अपने शिष्यों को जो दिव्य ज्ञान प्रदान किया है, उसपर चलकर हम सभी को अपने छोटे भाइयों अथवा पुत्रों पर वो संस्कार देना चाहिए। महर्षि वशिष्ठ जी सभी शिष्यों से आश्रम में झाड़ू लगवा

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4- श्रीराम तथा लक्ष्मण का विश्वामित्र मुनि के साथ जाना

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 श्रीराम तथा लक्ष्मण जी अयोध्या से विश्वामित्र मुनि के आश्रम जाते हैं, मुनि उन्हें राक्षसों के आतंक से मुक्त करवाने हेतु लेकर जाते हैं, सर्वप्रथम श्रीराम ताड़का नाम की राक्षसी जो रावण की नानी लगती थी

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5- सीता माता से विवाह के पश्चात वनगमन

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 जब जनकपुरी से सीता माता को विवाह के बंधन में बांधकर श्रीराम अयोध्या पहुंचे तो महाराज श्री दशरथ जी ने उन्हें राजा घोषित कर दिया, परंतु विधि को कुछ और ही स्वीकार था सो उन्हें 14 वर्ष का वनवास हुआ । इ

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6- निषादराज गुह से मिलन

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जब श्रीरामचन्द्रजी वनगमन को सीताजी, सुमंत्र एवं लक्ष्मणजी सहित चलती हैं तो अयोध्या की सीमा लांघने के बाद उनकी भेंट निषादराज गुह से होती है , जो श्रीराम के प्रिय भक्त, उनके आश्रम के सखा एवं निषादों (

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7- भरत प्रसंग

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मेरे प्रिय पाठकों, भरत जी का प्रसंग स्वयं में अनंत रामायण के बराबर है। जब भी में इस प्रसंग को रामायण में सुनता हूँ अथवा रामानंद सागर जी के धारावाहिकमें देखता हूँ तो अश्रुओं की अनायास ही धारा बहने ल

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7.1 – भरतजी काश्रीराम जी से मिलने हेतु प्रस्थान

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  जब श्रीराम जी को वनवास प्राप्त हुआ तो भरतजी एवं रिपुदमन (शत्रुघ्नजी) अयोध्या में संयोगवश नहीं थे, वे दोनों भाई अपने ननिहाल में कैकयीप्रदेश में गये हुए थे।   सहसा आने पर उन्हें श्रीराम एवं लक्ष्मण

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7.2- लक्ष्मण जी का भरतजी पर क्रोध

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भरतजी के आने की सूचना लक्ष्मणजी  को मिलती है कि भरत आरहा है वो भी सेना लेकर।  तब लक्ष्मण जी को अत्यंत क्रोध आजाता है। वे  रौद्र रूप धारण करके कहते हैं-   है बड़े भैया- आज में भरत को जीता हुआ नहीं छोड

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7.3- भरतजी का श्रीरामजी से मिलना

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इतने में भरतजी श्रीराम की कुटिया तक पहुंच गए , आते ही सर जमीन पर रख दिया, बोले भैया में आपकी शरण में आया हूँ भैया, मुझ दास की रक्षा करो भैया, चाहे मेरे प्राण लेलो होसके तो अपना वनवास मुझे सौंपदो भैया

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7.4- भरत, महाराज जनक, वशिष्ठजी, माताएं आदि की सभा

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इसी बीच महाराज जनक (सीता माता के धर्म पिता) अपनी रानी माता सुनयना के साथ अयोध्या पहुंचे, वहां का हाल सुनकर वे भी श्रीराम की कुटिया आ पहुंचे। भरत का उद्देश्य एवं माताओं को आया देखकर निषादराज एवं उनके

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7.5- भरतजी का पुनः आकर राजकार्य सम्हालना

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इसके बाद भरतजी श्रीराम जी से चरणपादुका मंगाकर अपने सर पर धारण करके राजकाज सम्हालने की आज्ञा पाकर अयोध्या लौट जाते हैं। इसके बाद वे नंदीग्राम में मुनिवेश धारण करके,कुटिया बनाकर, कंदमूल फल खाकर रहते है

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8- वन में सूर्पनखा का आना, खर-दूषण का मारा जाना, रावन को संदेश सुनाना

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भरतजी के जाने के बाद रघुनाथ जी चित्रकूट छोड़ देते हैं, इसके बाद श्रीराम पंचवटी में कुटी बनाकर निवास करते हैं, वहां से सूर्पनखा निकलती है और श्रीराम को देखकर कामातुर होजाती है।  नीचे आकर अपना परिचय दे

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9- सीताहरण , जटायु मरण, मारीच की सलाह

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रावण मारीच की सहायता से सीता माता को हरण कर लेता है।  करने को जाता    मारीच रावण का मामा लगता है। उसने कई प्रकार से समझाया कि  श्रीराम से बैर न मोलें, वे तीनों लोकों के स्वामी हैं,  चराचर जीवों के

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10- शबरी का प्रेम

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श्रीराम तत्पश्चात शबरी माता की तरफ चले, शबरी माता को उनके गुरुदेव श्री मतंग मुनि ने परलोक सिधारने से पहले शबरी जी को आश्वासन दिया था कि जब भगवान नारायण श्रीराम के अवतार में अपनी भार्या की खोज में

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10. 1 शबरी माता को श्रीराम द्वारा नवधा भक्ति का ज्ञान

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यह सुनकर भगवान श्रीराम ने घृदेव गुरुदेव द्वारा दी गयी गूढ़ नवधा भक्ति का ज्ञान दिया। जो आप सभी पुस्तक पढ़ने वालों के लिए अति महत्वपूर्ण एवं जीवन के लिए कल्याणकारी है।  सो आप भी इसका पाठन और आचरण में

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11- श्रीरामजी का हनुमानजी से मिलन, ऋषिमुख पर्वत पर जाना, सुग्रीव , जामवंत नल-नील से भेंट

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श्रीरामजी माता शबरी से भेंट के पश्चात अपनी ही योगाग्नि के द्वारा परमधाम को चली जाती हैं।  उसके पश्चात वे ऋषिमुख पर्वत की तरफ चलते हैं । दूतों के सुग्रीव को खबर देने पर हनुमानजी उनका ( श्रीरामचन्द्रज

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12- बाली वध, सुग्रीव को वचन याद कराना। सीता माता की खोज

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श्रीरामचन्द्रजी जब बालि के पापों को सुनते हैं तो सुग्रीव को वचन देते हैं कि उस पापी का में अवश्य वध करदूंगा।  श्रीराम सुग्रीव और बाली का युद्ध करवाते हैं और बाली को अपने तीर से मार देती हैं घायल अवस

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13- लंका में हनुमानजी व विभीषण का मिलन हनुमान-रावण संवाद

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सीता माता की खोज करते हुए हनुमान जी लंका में अति लघुरूप में विचरण करते हैं | तब उन्हें तुलसी व् स्वस्तिक के चिन्ह एक घर में बने हुए दिखाई देते हैं |   हनुमान जी समझ जाते हैं कि अवश्य यह घर किसी रामभ

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14- रावण द्वारा विभीषण को अपमानित करना

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विभीषण अपने बाल्यकाल से ही धर्म का आचरण करने वाले, सत्य पर चलने वाले सदाचारी मनुष्य हैं ।  उन्होंने रावण को बोला कि हे लंकेश्वर, कृपा करके माता सीता की तरफ से अपना ध्यान हटालें ।   जिसे आप साधारण म

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15- शिवजी का श्रीरामचन्द्रजी के द्वारा पूजन, समुद्र पर श्रीरामजी का क्रोध

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यह प्रसंग अत्यंत शिक्षाप्रद है। विभीषण जी के माध्यम से समुद्र से रास्ता मांगने का सुझाव दिया गया। लक्ष्मण जी ने कहा कि यह उचित है, परंतु में मांगने से सहमत नहीं हूं, मांगने से भला कोई कुछ देता है? 

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16- मंदोदरी द्वारा रावण को समझाना

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मंदोदरी रावण की परम पतिव्रता पत्नी है, इनकी गिनती पांच महा कन्यायों में भी की जाती है, जिनका नाम लेना परम शुभ और धर्ममयी माना जाता है ।  वह रावण को कई प्रकार से समझाती है कि हे नाथ हठ छोड़ दें, सीता

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17- अंगद का श्रीरामजी का दूत बनकर लंका में जाना

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जब श्रीरामचन्द्रजी लंकापुरी पहुंच गए तो युद्ध के आरम्भ होने से पहले उन्होंने जामवंत आदि वीरों से कहा कि इसके पहले कि हमारे योद्धा इस परम सुंदर लंकापुरी को उजाड़ दें, क्यों न एक बार रावण को अवसर देना

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18- युद्ध आरम्भ

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 जब रावण किसी की सलाह नहीं माना तो श्रीराम जी ने अपनी अपार व् अनंत सेना सहित लंका पर चढ़ाई करदी | अनेकानेक सेनापति व् सैनिक श्रीराम की सेना की आगे ढेर होगये | तब मकराक्ष नामक महा बलवान रक्षम जो रावण

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19- मेघनाद द्वारा श्रीराम व लक्ष्मणजी को नागपाश में बांधना

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श्रीरामचन्द्रजी के आदेश पर लक्ष्मणजी मेघनाद से युद्ध करते हैं, लक्ष्मणजी मेघनाद द्वारा छोड़े गए हर अश्त्र का समुचित उत्तर देते हैं, जब मेघनाद के पास कोई अश्त्र नहीं बचता है जिससे वह लक्ष्मणजी का पर

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20-मेघनाद द्वारा लक्ष्मणजी को वीरघातिनि शक्ति का प्रहार करना

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दूबारा फिर मेघनाद युद्धक्षेत्र में उतरा । पुनः कई प्रयासों के बाद भी जब मेघनाद के पास कोई मार्ग शेष न बचा तो वह फिर बादलों में छिप गया ।  कई अस्त्र-शस्त्र चलाने से भी जब वह लक्ष्मणजी का कोई पार नहीं

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21- मेघनाद वध

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जब लक्ष्मणजी के सकुशल होने की सूचना लंका पहुंची तो रावण और मेघनाद शोकमग्न होगये । मेघनाद ने अपने पिता को समझते हुए कहा कि कल में वो प्रयोग करूँगा जो आज दिन तक मैंने इसलिए नहीं किया क्योंकि उसका प्रयो

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22- रावण द्वारा कुम्भकरण को जगाना, कुम्भकरण का युद्ध में जाना, कुम्भकरण उद्धार

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जब रावण श्रीरामचन्द्रजी से युद्ध में कोई पर न पासका तो अपने नाना माल्यवान के परामर्श से उसे अपने भाई कुम्भकरण का ध्यान आया । उसने एक सेनानायक को भेज कुम्भकरण को जगाने का प्रयत्न किया । कुम्भकरण जागते

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23- विभीषण को श्रीरामजी के द्वारा दिव्य ज्ञान प्रदान करना

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रावण युद्ध के लिए बची हुई सेना को साथ में लेकर चलता है । अत्यंत वेग में एवं क्रोध में लाल होकर ( कुम्भकरण और मेघनाद के वध के कारणवश ) वह युद्ध भूमि में पहुँचता है ।  इधर विभीषण के मन में प्रश्न आता ह

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24- रावण वध

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तत्पश्चात श्रीराम रावण युद्ध आरम्भ होजाता है | ब्रह्मा जी के आदेश पर देवराज इंद्र द्वारा अपना दिव्य रथ भेजा जाता है | उसी रथ पर सवार होकर श्रीराम रावण से युद्ध करते हैं | तीनों लोक इस युद्ध को देखते

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25 अयोध्या आगमन, श्रीराम का राज्याभिषेक, माता सीता से विरह

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तत्पश्चात श्रीराम की आज्ञानुसार लक्ष्मणजी ने विभीषण को लंका का राजा बनादिया । जामवंत, हनुमान, सुग्रीव, अंगद आदि के साथ पुष्पक विमान में बैठकर श्रीराम अयोध्या पहुंचे । (जिस दिन वे अयोध्या पहुंचे उसी

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26- लवकुश जन्म एवं शत्रुघ्न का मधुरा प्रस्थान

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 जो घटनाक्रम श्रीराम के लवकुश कांड में बने, उनका संजोग बनाना साधारण मानव की सोच से लाखों गुना ऊपर है ।  संजोग से उसी दिन् शत्रुघ्न वल्मिकि आश्रम पधारते हैं, वे लवण नामक दैत्य का वध करने हेतु जारहे थ

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27- लवकुश का अयोध्या से युद्ध

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इधर लवकुश आश्रम की रक्षा करते हैं तभी आश्रम के समीप अश्वमेघ का घोड़ा दिखाई देता है जिसको लेकर श्रीराम की आज्ञा से शत्रुघन भ्रमण हेतु आये थे । अश्वमेघ यज्ञ की रीति होती है कि घोड़े को चारों ओर भ्रमण क

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28- श्रीराम तथा लक्ष्मण महाप्रस्थान

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अयोध्या में सभी तरफ संतुष्टि तथा धन धान्य की कोई कमी नहीं थी ।  सभी अपने राजा महाराज श्रीरामचन्द्रजी से खुश एवं संतुष्ट थे ।  उन्होनें लगभग 5 हजार वर्ष तक शासन किया ।   तत्पश्चात एक अतिबल नामक महात

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सनातन धर्म पर गर्व क्यों ?

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  ROCKET SCIENCE देने वाले विदेशी verner नामक एक जर्मनी वैज्ञानिक थे । उनके एक गुरु थे जिनका नाम था hermann obarth । ये hermann नामक जर्मनी वैज्ञानिक वेदों को पढ़ते और प्रेरणा स्त्रोत मानते थे जिससे

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धर्म क्या है, धर्म की उत्पत्ति |

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  धर्म का अर्थ  किसी को सुख देना, असहाय की सहायता करना , किसी की निंदा न करना धर्म की श्रेणी में आता है ।धर्म के मूलतः चार चरण होते हैं ।  दया, सौच, दान, और सत्य प्रमुख चरण होते हैं । जिनके अतिरिक्त

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शिव रहस्य – शिवलिंग शब्द का सही अर्थ

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 महेश - महेश शब्द 2 शब्दों से मिलकर बना हुआ है   महा और ईश जिसका अर्थ होता है देवताओं का देवता अर्थात महादेव ।  श्री नारायण तथा ब्रह्मदेव द्वारा पूज्यनीय भगवान शिव संहारकर्ता कहलाते हैं ।  शिवलिंग

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हमें रामायण में किस पात्र से क्या शिक्षा मिलती है ?

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 1- दशरथजी से शिक्षा  नीति तथा नियम के लिए सर्वस्व समर्पितकरदेना ।  यह जानते हुए भी कि श्रीरामचन्द्रजी नारायण के अवतार हैं, उन्होनें सत्य और धर्म का मार्ग चुना । अपने प्राण अर्पण कर दिए परंतु वचन झू

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