मेरे नजरिये में प्रेम बहुत ही गूढ शब्द है जिसे शब्दों में बयां कर पाना अत्यंत ही मुश्किल है। यह एक अनुभूति है ,लगाव है ।प्रेम का स्वभाव एक ही है परंतु उसके रूप अनेक है ।माता पिता का अपने संतति के प्रति अगाध प्रेम दुनिया का सबसे परिष्कृत प्रेम है ।बाकी प्रेम के रिश्ते में तो एक स्वार्थ भी छिपा होता है परंतु यह प्रेम निस्वार्थ होता है ।स्त्री पुरुष के मध्य होने वाला प्रेम जो कि दैहिक लालसा से परे हो वह भी दुनिया का अद्वितीय प्रेम है। किसी की खुशी के लिए निस्वार्थ भाव से पूर्ण रूप से समर्पित हो जाना ही प्रेम है ।फिर चाहे वह प्रकृति प्रेम हो या मानव या फिर कोई अन्य प्राणी
इस पुस्तक में आपको मेरे जीवन के बारे में ,समाज के बारे में, आसपास प्रचलित मान्यताओं के बारे में, मेरे विचार पढ़ने को मिलेंगे ।
अन्याय मैं सहती नहीं
सच कहने से डरती नहीं
दुख की प्रबल धाराओं में
हार कर बहती नहीं।
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