कहीं मुझे यह वाक्य पढने को मिला था
"जिसकी जवानी उसका जमाना "
पर ऐसा सोचना मेरे नजरिए में अनुचित है। यह बात अलग है कि युवा व्यक्ति नई ऊर्जा नयी, जोश और उत्साह से भरा होता है ।उसकी नई सोच नई कल्पनाएं नई ,नई संभावनाओं को जन्म देती है ।
परंतु सामाजिक नजरिए से क्या केवल युवा किसी समाज का निर्माण कर सकता है ।एक ऐसा समाज जहां पर केवल अनुभवहीन युवा हो , बुजुर्ग नहीं ,अनुभव नहीं, सलाह नहीं ,केयरिंग नही। हमारी जिंदगी में अनेक उतार-चढ़ाव आते हैं और युवावस्था महज कुछ वर्षों की होती है ऐसे में केवल युवावस्था को सर्वोपरि माना हास्यास्पद है यदि समाज में युवाओं के मध्य रिश्तो में उत्पन्न मनमुटाव को समझौता कराने वाले भावनात्मक ह्रदय युक्त बुजुर्ग नहीं होंगे तो समाज का क्या स्वरूप होगा । हमारी गलतियों पर हमें समझाने वाला, हमारी हार पर हौसला देने वाला, हमारी तकलीफ में हमारी देखभाल करने वाला, हमारे भावनात्मक रुप से टूट जाने पर हमें भावनात्मक सहारा और अपनी ममता की छाव देने वाला बुजुर्ग समाज हमारे आसपास न मौजूद हो तो ,हमारी जिंदगी अनेक प्रकार से कष्ट दाई हो जाएगी ।युवाओं के मध्य महज शारीरिक आकर्षण से उत्पन्न होने वाला प्रेम संबंध भी पारिवारिक और सांसारिक जिम्मेदारियों के तले तितर बितर हो जाएगा। अतः जिसकी जवानी उसका जमाना जैसे वाक्य की जगह पर यह होना चाहिए.....
उम्र के किसी पड़ाव में ,हमें आजमाना।
हम से ही यह दुनिया है, हमसे है जमाना।।