सविता अपने बचपन की सारी खुशीयों को अपने माँबाप के साथ नही बाँट पाई। गाँव को समझ नही पाई, चाँद तारों की छाव में उनकीठंडक को भाँप नही पाई, चन्द सवाल ही पूछ पाती कि चंदा मामा कितनीदूर है? गोरी कलाइयों में बंधे दूधिया तागे कमजोर पड़ गए थे| पैरो में पड़ी पाज़ेब की खनक छनक से अपने नानी नाना के दिल को मोहने ल
"जन्मभूमि की रोशनी" कहानीहरिया की हक़ीक़त से यूँ तो गाँव का बच्चा-बच्चा वाकिफ़ है। एक रात कोई अन्जान आदमी पूरब वाली बाग में अपनी खूबसूरत पत्नी रज्जो के साथ खुले आसमान के नीचे, घास-फूस वाली जमीन पर अपना डेरा डाल लिया है। पर क्यों, क्या उसका इस दुनियाँ में कोई ठिकाना ही नहीं है कोई नहीं जानता। सभी लोग मन