"जन्मभूमि की रोशनी" कहानी
हरिया की हक़ीक़त से यूँ तो गाँव का बच्चा-बच्चा वाकिफ़ है। एक रात कोई अन्जान आदमी पूरब वाली बाग में अपनी खूबसूरत पत्नी रज्जो के साथ खुले आसमान के नीचे, घास-फूस वाली जमीन पर अपना डेरा डाल लिया है। पर क्यों, क्या उसका इस दुनियाँ में कोई ठिकाना ही नहीं है कोई नहीं जानता। सभी लोग मनगढ़ंत कहानी दुहराते हैं, विचारा भला आदमी है, मेहनत मजदूरी करके अपना पेट पाल रहा है। बहुत ईमानदार हैं खैरात के किसी वस्तु को हाथ नहीं लगाता और किसी का एक गिलास पानी भी मुफ्त में नही पीता, वगैरह वगैरह।
पराई जमीन में मिट्टी की दीवाल और उसपर सलीके से बिछाई हुई मंडई उसकी पहचान हो गई है। रज्जो बड़ी ही कुशलता से अपने आशियाने को सजाकर रखती थी और दोनों बहुत खुश भी रहते हैं, अक्सर उनकी खिलखिलाती हँसी कइयों ने सुनी भी है जिसका राज क्या है वह तो वहीँ दोनों जानते हैं। कुछ दिन गुजरा और गई दीपावली पर रज्जो अपने घर को लीप रही थी ताकि लक्ष्मी पूजन और दीपावली का त्यौहार में कोई कमी न रहे कि अचानक उसके पेट में दर्द उठा और सूनसान बगिया बच्चे की किलकारी से गूँज उठी। हरिया एक स्वस्थ और सुंदर बच्चे का बाप बनकर खुशी से नाचने लगा। उसकी मंडई रोशनी से भर गई और हरिया गाँव में घूम- घूम कर मोतीचूर के लड्डू बॉटने लगा।
लोगों को आश्चर्य हुआ जब दीपावली के दिन बाग में एक साथ दो-दो मॅहगी गाड़ियों का प्रवेश हुआ और रज्जो को पुचकारने वाले रिश्तों की भीड़ लग गई। गाँव में मजदूरी की जगह पर हरिया को इसकी सूचना मिली कि गाड़ी वाले लोग उससे मिलना चाहते हैं। हरिया अपने काम को छोड़कर उनसे मिलने न गया पर उसकी रौनक उतर गई जब उसने अपने सगे संबंधियों को अपने पास आते देखा। उसने किसी से बात न की और अपने कुटिया की डगर पर बढ़ गया। आगे- आगे हरिया, पीछे-पीछे उसके बारे में जानकारी करने वाली उत्सुकता और अपराध ग्रस्त रिश्ते मूक बन कदम बढ़ाए जा रहे थे। अपनी मंडई पर पहुँचकर हरिया अपनी माँ के आँचल से लिपट गया और सबसे विनम्र भाव से कह दिया कि मैं यहाँ बहुत खुश हूँ आप सभी लोग दौलत के साथ भी बैचैन क्यों हैं?। कुछ नहीं चाहिए मुझे, हो सके तो मेरी माँ को कुछ दिन के लिए यहाँ छोड़ दीजिए ताकि मुन्ना दादी के सुख से बंचित न हो। लौटकर आप सभी के पास आने का अब कोई विकल्प शेष नही है अगर होता तो मैं यहाँ न होता। उसकी माँ भी हरिया को छोड़कर न जा सकी और उसकी बिरान मंडई में दीपावली का दीप जगमगाने लगा। रोशनी बढ़ती गई और हरिया आज उसी गाँव में रहकर अपनी कमाई से बगल में आलीशान मकान और थोड़ी सीजमीन के साथ अपनी माँ के आँचल को पकड़ कर कहता है माँ यह तुम्हारे नाती की जन्मभूमि है और तुम मेरी प्यारी जननी, किसे मिलेगी ऐसी रोशनी!
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी