जब ज़मीर मर जाता है तो झूठ में सच दिखता है. सच और झूठ में कोई फ़र्क नहीं होता, फ़र्क बस इतना है कि सच ज़मीर के साथ बोला जाता है और झूठ बिना ज़मीर के. जिनका ज़मीर मर चुका हो उनसे सच बोलने की उम्मीद करना बेवकूफी है. जब पौधे में कीड़े लग जाते है तो उस पर दवाई डालने से काम नहीं चलता उन कीड़े लगे पत्तों को नए आने वाले पत्तों से दूर कर दिया जाता है, कीड़े लगे का इलाज़ नहीं है लेकिन नए उगते पत्तों को बचाया जा सकता है. इसलिए उन झूठो पर वार करने से कोई फायदा नहीं है, दूसरे लोगों को उनसे बचाना ज़रूरी है. मच्छर अँधेरे में निकलते है सूरज के निकलते ही वो किसी कोने में मुँह छिपा लेते है. सच की रौशनी को इतना तेज़ कर दो की इन झूठो को भी किसी कोने में मुँह छिपाना पड़ जाए. (आलिम)