Sahil Raza
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पावन प्रेम
तू वीर है या वीणा सह जाती है सब पीड़ा करुण तरंगों को सहना है क्या तेरे लिए क्रीडा ? नर देता बांध तुझ पर करुणा के डोर को तू शाह समझ लेती क्यों इस चोर को इस नर को क्यों सुनाती करुणा रूपी गान को जो जरा भी ना देता तरजीह तेरे आन को त
पावन प्रेम
तू वीर है या वीणा सह जाती है सब पीड़ा करुण तरंगों को सहना है क्या तेरे लिए क्रीडा ? नर देता बांध तुझ पर करुणा के डोर को तू शाह समझ लेती क्यों इस चोर को इस नर को क्यों सुनाती करुणा रूपी गान को जो जरा भी ना देता तरजीह तेरे आन को त
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