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सहयोग आप के द्वार

28 जनवरी 2015

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मित्रों नमस्कार #Sahayog “सहयोग“ आप के द्वार कार्यक्रम के तहत “कम्बल भेंट“ के इस पड़ाव को विराम देने के साथ मैं वो सब कुछ आप से शेयर करना चाहता हुँ जिसमें मुझे इस प्रवृति को प्रारम्भ करने हेतु जागृत किया। मित्रों इस सर्दियों के प्रारम्भिक दिन थे और एकदम से आई हुई कड़ाके की सर्दी थी पाँच कपड़ों (गंजी,थर्माकोट,सर्ट,स्वेटर,कोट) के उपर शाल लपेटकर रेलवे स्टेशन गया हुआ था, बर्फीली ठंड का अनुभव अन्दर हाड़ो तक को कंपकपा रहा था दाँत ठण्ड से किटकीटा रहे थे,सामने देखा एक आदमी केवल एक सर्ट मे बैठा था , मन में विचार आया की जरूर ये पागल होगा जो ऐसी ठण्ड में इस स्थिति में बैठा है, कौतुहल वश वहीं खड़ा हो गया और उसे बात करने की शुरूआत की, खुद को आश्र्चय से लबरेज पाया, वो ठण्ड से ठिठुरता व्यक्ति सुधबुध वाला था, उसे ठण्ड के अहसास पर पुछने से झरझराती आँखो व कम्पकपाती आवाज मे कहा “बैटा ठण्ड तो लग रही है पर ओढाने को कहाँ लाऊँ“ इन शब्दों को सुनने के साथ मेरा हाथ खुद-ब-खुद अपनी शाल को उतार कर उस व्यक्ति को ओढाने पर मजबुर हो गया, वो शायद उस स्नेह की उष्मा पाकर झरझराती आँखो से अपनी गरीबी के दुख को बहाने लगा उसकी सुबकती रोती आँखो से बहता पानी अपने दिल से उतरता हुआ महसुस कर रहा था, मित्रों, आँसुओं की बेचेनी ने सारी रात नहीं सोने दिया, अपने इन बन्धुओं के लिए क्या करूं कैसे करू कब करू जैसे सवालों के मकड़जाल मे छटपटा रहा था सुबह उठकर बैचेन सा निरूदेश्य घर से बाहर निकल पड़ा,शायद अपने अन्दर एक उद्देश्य पैदा होने से पहले की प्रक्रिया में खुद को अन्दर से बेहद बैचेन महसुस कर रहा था,इस बैचेन निरूदेश्य घुमता हुआ अपने मित्र पाटनी जी ( राज पाटनी )दुकान तक जा पहुँचा उन्होनें मुझे इस तरह अजीब स्थिति में देखकर पुछने पर पिछली रात का घटीत घटनाक्रम बताते हुए अपने दिल की सारी कैफियत उनके सामने बयां कर दी इन जज्बातों का समाधान तो था परन्तु वो समाधान भी हमारें लिये समस्या थी। “अर्थ“ जितने गर्म कपड़े हमें अपने बंधुओ तक पहुचाना चाहते थे उसके लिये बहुत धन की आवश्यकता थी और हमारी एक सीमा थी तब पाटनी जी ने कहां "जहाँ चाह वहाँ राह" हमें अपने और मित्रों को इस मुहीम में जोड़ना चाहीए, इसके लिये जो हमारें पास है उसका सबसे बेहतर उपयोग करें। हमारें पास अपने मित्रों तक अपनी भावना पहुचानें का सबसे बेहतर माध्यम था हमारा फेसबुक मित्रों एक संकल्प के साथ में पाटनी जी की दुकान से खड़ा हुआ अगली कड़ी में घटनाक्रम का वो हिस्सा जो केवल सपनों में होता है हमने हकीकत का जामा पहनाया.

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