सरक रहा सूरज पश्चिम की ओर,
धरती का नाप कर लम्बा सा छोर
बदल रहा नभ का है रंग,
छूट रहा धूप का भी संग
पंछी भी लौट रहे नीड़,
ऊब रहे खड़े दिन भर के चीड़
खोई है अपने में अलसाई झील,
बढ़ा अंधेरा पर्वत को लील
शाम ढली घिर आई रात,
सपने भी सोये खा मात
सरक रहा सूरज...