अभी सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू की गयी है . कुल 23. 5 % की बढ़ोतरी का अनुमान बताया जा रहा है. इससे 70 साल में
सबसे कम वृद्धि बताया जा रहा है. में इससे सहमत हूँ . यह वृद्धि न्याय संगत है. क्योंकि सरकारी कर्मचारियों के रहन सहन और उनके
बड़े बड़े और शानदार घर देखकर ,उनके बेटो और बेटिओ के बड़े -2 और महंगे स्कूल और कॉलेज में पढता देखकर ,आये 1-2 महीनो
में पिकनिक मनाते हुए देखकर, उनकी औरतो पर डायमंड और जेवेलरी की शोभा देखकर ,घर के आगे एक चमचमाती कार देखकर ,
उनके घरों में नौकर चाकर देखकर ,मुझे तो लगता है की क्या वाकई में उन्हें सैलरी की जरुरत है. ?
यह तो मेने कुछ एक बाते बतायी है और भी बहुत ऐश आराम है जिन्हे बताना ठीक नहीं होगा.
अब सवाल यह उठता है यह सब सुविधाए केवल वेतन से प्राप्त की जा सकती है आप सोचिए ?क्या इनमे भ्रस्टाचार की बू नहीं आती है.
दूसरी तरफ एक प्राइवेट फर्म में काम करने वाला इंसान 10-12 घंटे की ड्यूटी कर बमुस्किल से घर चला पाता है. उसका फ्यूचर सिक्योर
नहीं है .उसे गवर्नमेंट से कोई मदद नहीं मिलती है. उसकी कभी भी छुटी हो सकती है. उसकी रोजमर्रा जीवन पर तरस आता है.
जबाबदेही भी कुछ नहीं है गवनर्मेंट के कर्मचारियों की. उनका व्वयहार तो घमंड से भरा हुवा रहता है.
मेरे कुछ सरकार को सुझाव है वो है
1. .निचली श्रेणी के कर्मचारी जो की भृष्टाचार नहीं कर पाते है उनका इन्क्रीमेंट अच्छा होना चाहिए
2. .डिपार्टमेंट वाइज जिनमे करप्शन का चांस हो जैसे आईटी. सेल्स टैक्स ,ट्रांसपोर्ट ,पुलिस आदि इनमे इन्क्रीमेंट कम करना चाहिए
3 ..महंगाई और उनके सामान समाज के अन्य वर्गों की सैलरी के अनुपात में इन्क्रीमेंट होना चाहिए .इससे आर्थिक असमानता समापत होगी
4.. कार्यसमय भी देखकर इंक्रेन्मेंट होना चाहिए .केवल हफ्ते में 5 डेज कम करके टोटल 11 -5 ( 1हॉर्स फॉर lunch) -- 6*5- 30 ऑवर
के काम के हिसाब से इन्क्रीमेंट होना चाहिए .जैसे की फैक्ट्री में होता है.
अंत में सरकार को आर्थिक असमानता दूर करने के भी आधार पर अपनी नीतियों को आगे बढ़ाना चाहिए .