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Kuch phool aur kuch kaante (कुछ फूल और कुछ कांटे)

Kuch phool aur kuch kaante (कुछ फूल और कुछ कांटे)

हर पुरुष जीवन भर कहीं बच्चा ही बना रहता है और हर नारी चाहे बच्ची ही क्यों न हो हमेशा माँ बनी रहती है।नारियों को सम्मानित करने के लिए यह कहना ही पर्याप्त है कि उनका शरीर वह महान मूमि है जो अव्यक्त आत्मा को भौतिक शरीर के माध्यम से व्यक्त करने का महान क

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Kuch phool aur kuch kaante (कुछ फूल और कुछ कांटे)

Kuch phool aur kuch kaante (कुछ फूल और कुछ कांटे)

हर पुरुष जीवन भर कहीं बच्चा ही बना रहता है और हर नारी चाहे बच्ची ही क्यों न हो हमेशा माँ बनी रहती है।नारियों को सम्मानित करने के लिए यह कहना ही पर्याप्त है कि उनका शरीर वह महान मूमि है जो अव्यक्त आत्मा को भौतिक शरीर के माध्यम से व्यक्त करने का महान क

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