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शर्मीला चाँद

13 नवम्बर 2021

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शीर्षक -    " शर्मीला चाँद "



मेरा चांद बहुत शर्मीला है ,


  चांद रातों को भी दीदार नहीं होते ।


जो आ जाता तू एक बार आसमां में,


    हर शब हम यूं बीमार नहीं होते ।।



 तेरे इश्क की चांदनी में डूबे हैं,


  अंधियारी रात के शिकार नहीं होते।


 लुका छिपी तेरी आदत बन गई है,


   तेरे इस खेल के हिस्सेदार नहीं होते  ।।



अदाओं से करता है वार मुझ पर,


   पास मेरे हथियार नहीं होते ।


 लिपटना चाहता है जब वो हमसे,


   उस वक्त मग़र हम तैयार नहीं होते।



  रचनाकार -© डॉ वासिफ क़ाज़ी 

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<p>शीर्षक - " शर्मीला चाँद "</p> <p><br> </p> <p><br> </p> <p>मेरा चांद बहुत शर्मीला है

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