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ग़ज़ल - " धुंध इश्क़ की "

21 नवम्बर 2021

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   🌺 चंद अश'आर 🌺


शीर्षक( उनवान ) - " धुंध इश्क़ की "


गहरे कोहरे सा है इश्क़ मेरा ।

तुमसे आगे कुछ दिखता नहीं ।।


क़ोशिश करना इंसानी फ़ितरत है ।

हर सीप में मोती मिलता नहीं ।।


तबस्सुम को तरसे बैठें हैं सब ।

उनके लबों पर गुलाब खिलता नहीं ।।


हमसे शुरू है आशिकों की पीढ़ी ।

ज़माना उसमें हमको गिनता नहीं ।।


ये इश्क़ है नायाब नूरानी हीरा ।

हर चौराहे पर "काज़ी" ये बिकता नहीं ।।


©डॉक्टर वासिफ़ काज़ी 

©काज़ीकीक़लम


28/3/2 , अहिल्या पल्टन ,इंदौर 

जिला-इंदौर ,मध्यप्रदेश

8085901021

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