Poet ,Lyricist and column writer
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डूबा रंज ओ ग़म में ऐसा ,शादमानी भूल गया है. ज़माना क्यूँ मुहब्बत की , कहानी भूल गया है... ©डॉक्टर वासिफ़ काज़ी ,इंदौर ©काज़ीकीक़लम
<p>ग़मों को अपने छुपाऊं कैसे ।</p> <p>सबको ये सच बताऊं कैसे ।।</p> <p><br></p> <p>ऐतबार नहीं जब उनको
<p>मिरी तलाश ख़त्म हो गई अब ।</p> <p>अपने वजूद से मिल चुका हूँ मैं ।।</p> <p><br></p> <p>©डॉक्टर वासि
<p> 🌺 चंद अश'आर 🌺</p> <p><br></p> <p>शीर्षक( उनवान ) - " धुंध इश्क़ की "</p> <p><b
<p>ग़मों का पिटारा अब खोलेंगे हम ।</p> <p>बिछड़ कर उनसे बस रोलेंगे हम ।।</p> <p><br></p> <p>©डॉक्टर वा
<p>इश्क़ करने का बहाना चाहिए ।</p> <p>उन्हें एक आशिक़ दीवाना चाहिए ।।</p> <p><br></p> <p>जहां कद्र हो
<p>🌺 मतला और एक शे'र 🌺</p> <p><br></p> <p>ये कैसी उलझन में पड़ गया हूँ मैं ।</p> <p>हिज्र से अकेले
<p> मेरी हसरत " -</p> <p><br> </p> <p><br> </p> <p>क़ायनात के हर ज़र्रे से प्यार है ।</p> <p>चमन
<p>शीर्षक - " शर्मीला चाँद "</p> <p><br> </p> <p><br> </p> <p>मेरा चांद बहुत शर्मीला है