अब तो साँसे भी मेरी मुझसे , शिकायत कर चली है ,
लगता हैं अब वो भी मुझसे , किनारा कर चली है ;
हिदायत क्या दू अब किसी और को मैं - 2
के जिस्म मेरा ज़िंदा रह कर मेरी रूह मर चली है।
जिस दौर से गुजरी थी कभी एक दफा,
वापस उस दौर में आ कर ठहर गयी हु मैं ;
जहा से समेट कर लाई थी खुद को बाहर,
वापस वही आ कर तील तील बिखर गयी हु मैं;
शिकवा उससे क्या करूँ जिसे खुदा का दर्जा मैंने ही दिया-2
लगता है शायद सजदों में कमी मेरे ही हो चली है ;
अब तो साँसे भी मेरी मुझसे शिकायत कर चली है।