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शिकायत

1 मई 2020

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अब तो साँसे भी मेरी मुझसे , शिकायत कर चली है ,

लगता हैं अब वो भी मुझसे , किनारा कर चली है ;

हिदायत क्या दू अब किसी और को मैं - 2

के जिस्म मेरा ज़िंदा रह कर मेरी रूह मर चली है।


जिस दौर से गुजरी थी कभी एक दफा,

वापस उस दौर में आ कर ठहर गयी हु मैं ;

जहा से समेट कर लाई थी खुद को बाहर,

वापस वही आ कर तील तील बिखर गयी हु मैं;


शिकवा उससे क्या करूँ जिसे खुदा का दर्जा मैंने ही दिया-2

लगता है शायद सजदों में कमी मेरे ही हो चली है ;

अब तो साँसे भी मेरी मुझसे शिकायत कर चली है।

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