कलम हमारी
कौन सुने अब व्यथा हमारी, आज अकेली कलम हमारी,जो थी कभी पहचान हमारी, आज अकेली कलम हमारी।हाथों के स्पर्श मात्र से, पढ़ लेती थी हृदय की बाते,नैनों के कोरे पन्नों को, बतलाती थी मेरी यादें।कभी साथ जो देती थी, तम में, गम में, शरद शीत में,आज वही अनजान खड़ी है, इंतजार के मधुर प्रीत में।अभी शांत हू, व्याकुल भ