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स्नेह सदन 2

4 सितम्बर 2021

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पहाड़ों पर बसा मनाली की सुंदरता हर किसी को अपनी ओर खींच लेता है बर्फो से घिरा ये शहर प्रकृति प्रेमियों को मन को चुरा लेने वाला है । यहां की कण - कण अपनी एक अलग विशेषता और महत्व लिए मनाली को और दिव्यता प्रदान करता है ।
स्नेह सदन से कुछ किलोमीटर की दूरी पर स्थित हिडिंबा मंदिर जो 1553 में राजा बहादुर सिंह के द्वारा पगौड़ा शैली में निर्मित किया गया था ,पर्यटकों का एक मुख्य आकर्षण केंद्र है । यह गगनचुंबी देवदार के सघन जंगल में  स्थित है ।इससे 3 किलोमीटर की दूरी पर मनु मंदिर जिसके दर्शन के लिए देश के कोने - कोने से लोग आते है क्योंकि की यह एकमात्र अकेला मंदिर है जो महराज मनु को समर्पित है इसलिए इसकी पौराणिक महत्व अधिक है।
इन दोनों मंदिरों के बीच पहाड़ों को काट कर बनाया गया रास्ते पर बना एक खूबसूरत ढाबा जो मिट्टी ,बांस और लकड़ियों से बना है,दीवारों को रंग कर उस पर तरह तरह के बनाई गई आकृतियां,रंग - बिरंगे परदो से ढाबे में किए गए छोटे - छोटे पार्टिशन ,लोगो के बैठने व खाने के लिए बारीकी से नक्कासित साफ - सुथरे  फर्नीचर तथा बाहर कई प्रकार के रंग - बिरंगे  फूल - पौधे , बड़े बड़े पेड़ो पर लगे कोई प्रकार के फल जंहा से खड़ा होकर देखने पर पर सघन जंगल , पहाड़,  दूर  बहती ब्यास नदी के मनोहर लहरे देख हर कोई मंत्र - मुग्ध हो जाए ।कहने का अर्थ यह है कि मनाली कि अप्रतिम सुंदरता जो एक पल में सब को  अपना बना ले ,तो  वहीं ये ढाबा जंहा आकर लोगो की थकान पल भर में गायब हो जाए । ढाबे के बाहर लगा बोर्ड जिस पर लिखा है -" स्नेह भोजनालय " 
बाहर पड़े बेंच पर बैठे लोग चाय का मजा ले रहे थे तो अन्दर कुछ लोग अपने नाश्ते का लुत्फ उठा रहे थे ।तभी वहां अंश और सौम्य वहां पहुंचते है वहां काम करने वाले पांचों लड़के मुस्कुराते हुए सिर झुकाकर सलाम करते है तो अंश और सौम्य भी हल्का सा मुस्कुरा देते है। अंश अंदर चला जाता है ।" कैसे हैं भाई?" वहां काम करने वाले एक लड़के ने मुस्कुराते हुए पूछा । सौम्य उसके कंधे पर हाथ रखते हुए - मै ठीक हूं  जय,,, तू बता क्या चल रहा है ? मैं भी ठीक हूं सोम भाई ......" क्या बोला तूने ?? फिर से बोल,,,"मै ठीक हूं " यही तो बोला भाई ,जय ने सफाई दी।
सौम्य - मेरा नाम ले तो फिर से,,,
जय - भाई बाहर कस्टमर खड़े है ,मै चलता हूं ,, जय बहाना बनाकर निकलना चाहता है तो सौम्य उसे रोक लेता है ,और कुर्सी पर बैठ कर अपना पैर मेज पर रख देता है।
सौम्य - कस्टमर्स को कोई और देख लेगा बेटा ,,,तू मेरा नाम बोलना सीख ।
जय आग्रह करता हुआ - भाई फिर कभी सीख लूंगा पक्का ,अभी जाने दो ना.....
सौम्य - मेरा नाम सही से ले और जा ...मै नहीं रोकूंगा ।
जय बोलने की कोशिश करता हुआ - सो..सोम ...
सौम्य खीजते हुए - सोम नहीं बेवकूफ सौम्य ,,,,,सौ.. म्य
तभी अंश की आवाज आती है - क्या कर रहा है जय तू यहां??
सौम्य - भाई इसे हिंदी व्याकरण सीखा रहा हूं।
अंश - अबे उसे कौन सा हिंदी का प्रोफेसर बनना है,,,,, जय तू जा बाहर देख ।
जय - जी भाई ,,,कहता हुआ तेजी से वहां से भागता है।
सौम्य बाहर आकर कुर्सी पर बैठ जाता है , अपना सिर पीछे  टिका कर आंखे बन्द कर लेता है। थोड़ी देर बाद अंश आता है वहीं पास पड़े कुर्सी पर बैठ जाता है।
अंश - सौम्य तू कल से कुछ परेशान लग रहा है कोई बात है क्या??
सौम्य - नहीं भाई सब ठीक है...
अंश - चलो बोलो अब ,बात क्या है??
सौम्य उसे प्लेसमेंट को लेकर उसके और रिचा के बीच हुए बात को बता देता है।  अंश चुपचाप सुनता है फिर पूछता है कि - तो तुमने क्या सोचा है मुंबई या मनाली????
सौम्य - कंफ्यूज हूं ,क्या करू समझ नहीं आ रहा है,,,मनाली को मै छोड़ना नहीं चाहता हूं ,, मैं आप सब के बिना वहां नहीं रह सकता ,,,, आज तक मै कभी मनाली से बाहर नहीं गया हूं ,,,फिर मुंबई कैसे जा सकता हूं । मैं  मनाली में ही सेटल होना चाहता हूं।
अंश उसे ध्यान से देखते हुए - तुम मुंबई इसलिए नहीं जा रहे हो क्योंकि आजतक तुम मनाली से बाहर तक नहीं गए ,,,अब तुम्हे मुंबई जाना है तो डर लग रहा है।
सौम्य हैरान होकर - भाई ऐसा नहीं......मतलब हां ,,,थोड़ा नर्वस हो जाता हूं पर सिर्फ एक यही रिजन नही है मुंबई ना जाने के लिए ...
अंश - तो फिर ???
सौम्य - भाई मै आप सब और मां को छोड़ कर कैसे जा सकता हूं ??
अंश उसकी तरफ देखते हुए - रिचा मुंबई क्यों जाना चाहती है???
सौम्य आंखे नीचे कर के - यहां सैलरी ऑनली 15000 है मुंबई में 40000....
अंश - मुझे लगता है तुझे जाना चाहिए ...
सौम्य हैरान होकर - भाई सिर्फ पैसे के वजह से सब कुछ छोड़ कर मुंबई चला जाऊं,,,
अंश किसी सोच में डूबा रहता है वो सौम्य के बातों का कोई जवाब नहीं देता है तो सौम्य उसे ही हल्का सा हिलाता है तो अंश अपने ख्यालों से बाहर आता है फिर कहता है - "सौम्य मैं तुम्हारी बातों को समझ रहा हूं , पर भाई ये मनाली सुंदरता जो तुम्हें दिख रही है ना वो भी तभी अच्छी लगती है जब पेट भरा हो,,,, वरना ये ही सुंदरता हमें मुंह चिढ़ाती है ,,,,खाली पेट तो स्वर्ग की  भी सुंदरता नहीं भाती  है,,, हाथ में पैसे ना हो तो  रिश्ते भी बोझ लगने लगते है और ये दुनिया कमजोर लोगो को नहीं देती है मेरे भाई ,,,कोई सहायता नहीं करता लेकिन उस बेबसी के मज़े सभी लेते है ,,,, " कहते कहते अंश की आंखे नम हो जाती है उसके चेहरे पर दर्द के भाव उभर आते है।सौम्य उसके हाथ पर अपना हाथ रख देता है सौम्य - भाई आप.... " मैं ठीक हूं सौम्य " कहता हुआ अंश अंदर चला जाता है। सौम्य उसे जाते देखता  रहता  है।

दो दिन बाद _

बाहर के बगीचे है में कल्याणी जी पौधों को पानी दे रही थी। वर्षा दौड़ती हुई आती है और कल्याणी जी के गले लग जाती है और प्यार जताते हुए कहती है - "आपको पता है मां , आप कितनी प्यारी है ,,,,आप जब मुस्कुराती है तो लगता है कि लाईफ में सब कुछ परफेक्ट है ,,,, पर आप जब गुस्सा होती है तो,,,तो कुछ भी अच्छा नहीं लगता है ,,, प्लीज़ आप कभी मुझसे गुस्सा मत होना,,,,,प्लीज़ मां " वर्षा बिना रुके एक सांस में सब कुछ बोलती है और कल्याणी जी उस हैरानी से देखती है कि इसे क्या हुआ है फिर वर्षा के सिर पर हाथ फेरते हुए - आज इतना प्यार क्यों लूटा रही हो तुम ?? उसे देख कर मुस्कुराते हुए -  "कोई नया मेकअप का सामान चाहिए "। तभी सलोनी और ऋद्धि भी वहां दौड़ती हुई आती हैं।सलोनी कल्याणी जी के गले से लिपटती हुई - मां मै कॉलेज में फर्स्ट आयी हूं ...... कल्याणी जी उसके माथे को चूमती हुई प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरती हैं - "बधाई हो बेटा " ,,,,ईश्वर तुम्हे आगे बढ़ाए ,,,,,तुम्हारी सारी मनोकानाएं पूर्ण हो" ।ऋद्धि भी उनसे लिपट जाती है और बड़ी मासूमियत से कहती है - "मां ,मै भी मुश्किल से ही सही पास हो गई"। कल्याणी जी उसे प्यार जताती हुए - कोई  बात नहीं बेटा तुमने मेहनत तो किया था ना , बस यही बहुत है ,,,, अगली बार और अच्छे से मेहनत करना ....तुम्हारे भी अच्छे नंबर आएंगे । "जी मां "ऋद्धि कहती हुई सलोनी के गले लगकर उसे बधाई देती है।कल्याणी जी तभी वर्षा की और देखती है जो नजरे झुकाकर किनारे खड़ी होती है फिर सलोनी से इशारे से कुछ पूछती है ।सलोनी एक लम्बी सांस लेती है और ना में सिर हिला देती है।ऋद्धि वर्षा को देखती है और कहती है - इस बार भी दो सब्जेक्ट में बैक लगा है। कल्याणी जी वर्षा के पास जाती है तभी वर्षा जलदी से अपने दोनों कान पकड़ लेती है और दोनों आंखें जोर से बन्द कर लेती है - मां प्लीज़ गुस्सा मत होना ,,,,,,मैंने ,,,,,मैने पढ़ाई की थी थोड़ी सी,,,,,,,, अपनी एक आंख खोलती है और सब पर एक नजर डालते हुए - मां प्लीज़ ,,,,,,, प्लीज़ मां ,,,, सॉरी ,,,, कल्याणी जी को उस पर दया आ जाती है उसके सिर पर हल्की सी चपत लगाती हुए - नौटंकी है पूरी की पूरी ,,,,,वर्षा जल्दी से उनके गले लग जाती है ऋद्धि और सलोनी भी भाग कर लिपट जाती है तभी सौम्य,अंश रौनक और स्वाति भी वहीं आते है ।रौनक - "ये तो बेईमानी है मां,,,,, सारा प्यार बस उन्हीं तीनों बंदरिया पर ,,,,,हम लोग भी है यहां ,,,,
कल्याणी जी उसे अपने पास बुलाती है रौनक के जाते ही उसका कान पकड़ लेती है - किधर से ये तुझे बंदरिया दिखती है ???? रौनक चिल्लाते हुए - मां दर्द हो रहा है ,,,इं बंदरियो के लिए आप मुझे सजा दे रही है मां ,,,ये गलत है ,,,कल्याणी जी उसका कान छोड़ देती है तो रौनक उनके गले लग जाता है बाकी सारे भी दौड़ कर उनसे लिपट जाते है ।आखिर मां का प्यार कौन छोड़ना चाहता है।

    क्रमशः जारी है   
       


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स्नेह सदन
4.7
यह किताब पारिवारिक रिश्तों का महत्व और समाज की कुरीतियों आओर कुप्रथाओं से एक स्त्री का संघर्ष दर्शाती है ,जो अपने बच्चों को सदैव प्रेम ,सौहार्द और नैतिकता का शिक्षा देती हुई उन्हें पालती है । इस कहानी में खून के रिश्ते नहीं बल्कि दिलों के रिश्तों का महत्व दिखाया गया है ।

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