शीर्षक-#नया सृजन
दिखे जो हैं अब तक उत्पात-
हो रहा था मानव का नाश,
मगर जो दृश्य दिख रहे अब-
जगी मन में इक प्यारी आस!
हो रही अभी लुप्त जो थी-
अचानक जगी नयी सी सांस,
तन मन को कर दे स्वस्थ,
सुनी नन्ही चिड़िया की हास।
प्रकृति कि ये सुन्दर सी रीत-
किया नवजीवन का आरम्भ,
रुक रहा मानव का अब नाश-
इधर सस्यांकुर का प्रारम्भ!
लदे हैं सहकारों पे आम-
बदलने को है उनका स्वाद,
गा रहे कोयल प्यारे कीर-
भर रहे इच्छा की उन्माद।
गा रहे मेढक वर्षा गीत-
बदल रहा बकुली का व्यवहार,
बनाकर कागज की सब नाव-
भेजते हैं तड़ाग के पार।
प्रकृति का यही अनोखा काज-
नाश नवजीवन का है मूल,
सृजन को देख भूलना मत-
यही तो है विनाश का फूल॥
लेखक-अरुण कुमार शुक्ल