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सृजन

15 जनवरी 2022

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शीर्षक-#नया सृजन

दिखे जो हैं अब तक उत्पात-

हो रहा था मानव का नाश,

मगर जो दृश्य दिख रहे अब-

जगी मन में इक प्यारी आस!


हो रही अभी लुप्त जो थी-

अचानक जगी नयी सी सांस,

तन मन को कर दे स्वस्थ,

सुनी नन्ही चिड़िया की हास।


प्रकृति कि ये सुन्दर सी रीत-

किया नवजीवन का आरम्भ,

रुक रहा मानव का अब नाश-

 इधर सस्यांकुर का प्रारम्भ!


लदे हैं सहकारों पे आम-

बदलने को है उनका स्वाद,

गा रहे कोयल प्यारे कीर-

भर रहे इच्छा की उन्माद।


गा रहे मेढक वर्षा गीत-

बदल रहा बकुली का व्यवहार,

बनाकर कागज की सब नाव-

भेजते हैं तड़ाग के पार।


प्रकृति का यही अनोखा काज-

नाश नवजीवन का है मूल,

सृजन को देख भूलना मत-

यही तो है विनाश का फूल॥


लेखक-अरुण कुमार शुक्ल

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