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स्वतंत्रता संग्राम में हिंदी की भूमिका

19 सितम्बर 2022

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किसी भी देश की पहचान वहाँ की भाषा व संस्कृति से होती है I भाषाओं की दृष्टि से भारत एक समृद्ध राष्ट्र है I भाषाओं की विवधता होते भी भारत में हिंदी का एक महत्वपूर्ण स्थान है I यद्पि हमारे संविधान के निर्माताओं ने 14 सितम्बर 1950 को हिंदी को राजभाषा के रूप में स्वीकारा परन्तु, इसका प्रभाव हमारे स्वतंत्रता संग्राम में प्रारम्भ से ही परिलक्षित होता है Iउत्तर भारत में जहां हिंदी जनसम्पर्क की भाषा के रूप में लोकप्रिय हुई ,वही दक्षिण भारत में हिंदी के विद्वानों ने इसे वहां के लोगो तक पहुंचाया Iइस स्वतंत्रता के युग में कवियों और लेखकों ने भी अंग्रेजो को भगाने में अपनी भूमिका बखूबी निभाई Iक्रांतिकारियों से लेकर देश के आम लोगो तक के अंदर साहित्कारों ने जोश भरा I

मोहम्मद इकबाल के शब्दो में :-

‘कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी 

सदियों रहा है दुश्मन दौरे जहां हमारा’

महात्मा गाँधी भाषा के प्रश्न को स्वतंत्रता संग्राम में सबसे महत्वपूर्ण मानते थे, उन्होंने प्रारम्भ से ही हिंदी को  स्वतंत्रता संग्राम की भाषा बनाने के लिए अथक परिश्रम किया I जब स्वतंत्रता संग्राम में गाँधी युग का सूत्रपात हुआ तो हिंदी का प्रचार प्रसार धीरे धीरे बढ़ने लगा I गाँधीजी अपनी सभाओ के भाषण हमेशा हिंदी में देते थे, उनकी यह कोशिश थी की स्वतंत्रता संग्राम को गति देने वाले जितने भी आंदोलन हो वे हिंदी में ही जाने जाये I गाँधीजी की प्रेरणा से 1925 में कांग्रेस ने यह प्रस्ताव पारित किया कि कांग्रेस का, कांग्रेस की महासमिति का और कार्यकारिणी समिति का कामकाज आमतौर पर हिंदी में ही चलाया जायेगा I इसी का परिणाम था की सन 1925 में अखिल भारतीय हिंदी साहित्य सम्मलेन का अधिवेशन भरतपुर में हुआ, जिसकी अध्यक्षता गुरुदेव रविंद्र नाथ ठाकुर ने की और उन्होंने हिंदी में भाषण देकर हिंदी का प्रबल समर्थन किया I स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास पुरुष के रूप में विख्यात पंडित मदनमोहन मालवीय जी का नाम हिंदी प्रचारकों में बड़े आदर और सम्मान के साथ लिया जाता है वे न केवल एक महान हिंदीव्रती थे बल्कि हिंदी आंदोलन के अग्रणी नेता भी थे I 

राहुल सांकृत्यायन जी के शब्दों में “इस विशाल प्रदेश के हर भाग में शिक्षित अशिक्षित,  नागरिक और ग्रामीण सभी हिंदी को समझते है I”

इसके अतिरिक्त स्वतंत्रता संग्राम के जननायकों के भाषणों पर भी यदि हम नज़र डाले तो पाएंगे की चाहे उनकी मातृभाषा हिंदी नहीं रही परन्तु वे जनमानस तक हिंदी के माध्यम से ही अपनी बात सरलता से पहुंचाते थे I

इसी तारतम्य में यदि हम बात करे “स्वराज्य मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है और इसे में लेकर रहूँगा”  का नारा देने  वाले  महाराष्ट्र के जननायक लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक की जो कहते थे हिंदी ही एकमात्र ऐसी भाषा है जो राष्ट्रभाषा हो सकती है और जनसाधारण तक अपने विचारो को पहुंचाने के लिए केवल हिंदी ही एक सरल और सशक्त माध्यम है साथ ही तिलक ने अंग्रेजी की बजाय हिंदी में भाषण देना प्राम्भ कर अन्य नेताओ के समक्ष एक आदर्श प्रस्तुत किया I

भारत के स्वतंत्रता संग्राम में हिंदी का बड़ा महत्व रहा महात्मा गाँधी गुजराती थे राजगोपालाचारी मद्रासी थे राजा राममोहन राय, ईश्वर चंद विद्यासागर जैसे महान दार्शनिक व् क्रन्तिकारी बंगाली थे , लोकमान्य तिलक मराठी थे , ऐसे ही अलग अलग प्रांतो के क्रांतिकारियों ने स्वंत्रता संग्राम में खुद को खपा दिया I उन्होंने स्वाधीनता का सन्देश जन जन तक पहुंचाने के लिए हिंदी को चुना I

सबकी एकराय होने चाहिए ही हिंदी सभी क्षेत्रीय भाषाओ की बड़ी बहन है I हिंदी को अधिक ताकत देकर देश को अधिक ताकतवर बनाया जा सकता है I

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