नफरतों के जमी बर्फ को चाहतों के आग से पिघला दूंगा
तू पत्थर ना समझ खुद को मैं मंदिर में उसे सजा दूंगा
भरोसा खुद पर है मिट्टी की तेरी मूरत बनाऊंगा
जिन कदमों ने तूझे रौंदा है, कल सबके मस्तक झुका दूंगा
मोम नही हूं जलकर पिघल जाऊंगा,वो तीली हूं बारूद की
उल्फतो को जलाकर, रोशन तेरा शहर कर दूंगा