ख्वाहिशें भी अजब सितम करती है
यह कैसे-कैसे को जुदा करती है
सुना था, धरती और आकश एक ही थे कभी
दो जिस्म एक जान थे, दोनो एक दूजे के साथ थे
कर गई ख्वाहिश धरती ने चांद पाने की
आकाश उड़ चला प्रियतमा कि इच्छा पुरी करने
चांद धरती पर दिखने , अपनी शर्त कर बैठा
आगोश में आकाश को समाहित कर बैठा
भार इतना था उस चांद का
आकाश धरती पर आ ना सका
तड़प कर रह गए धरती और आकाश
दोनों एक दूजे सदा सदा के लिए जुदा हो गए
आज भी यादे उन्हें तड़पा जाती है,
इसलिए तो अश्कों की बरसात होती है
अश्कों बारिशों से धरती से मुलाकात होती है
आकाश यादों में रोता है धरती यादों को संयोती है
कुछ इस तरह दोनों की प्रेम अमर गाथा कहती है।