तन्हा हसना, तन्हा रोना, तन्हा जीना सीख लिया,
हमने खुद को बिन तेरे भी, जिंदा रखना सीख लिया ॥
गिला नहीं किस्मत से
हमको, जो मेरे तुम हो न
सके,
अपने हाथों की रेखा को, हम ने पढ़ना सीख लिया ॥
क्या हुआ जो तेरी महफिल में मेरे नाम कोई जाम नहीं,
हमने अपने प्याले को अश्क़ों से भरना सीख लिया ॥
तोड़ दिया साकी से रिश्ता, पैमानों को तोड़ दिया,
अब तो मैंने बिन पिये भी, होश मे रहना सीख लिया ॥
दिल मे कितना भी गम हो, और आखों मे कितना पानी,
पर हमने औरों की खातिर हसते रहना सीख लिया ॥
ये माना की बिखर गयी थी, ज़िंदगी तेरे जाने
के बाद,
बिखरी चीजें फिर से सजाकर, मैंने रखना सीख लिया ॥
ये दुनिया, दुनिया वाले और दुनिया के दस्तूरों को,
कुछ लोगों को मैंने भी, अब ना कहना सीख लिया ॥
माना थोड़ा सा मुश्किल है, ऐसी राहों पर चलना,
पर हमने गिरते-पड़ते ही, इन पर चलना सीख लिया ॥
कहीं मिलोगे जब तुम हम से, या बात कभी अपनी होगी,
हम तुमको बतलाएंगे फिर, हमने कितना सीख लिया ॥
© विवेक कुमार सिंह