१.चुनौती
" Sir, कोई आपसे मिलने आया है।" एक बड़े हॉल में प्रवेश करते ही नौकर ने कहा, इसी के साथ उसने हॉल के बीच में ही रखी एक छोटी सी टेबल से खाली चाय के कप ट्रे में रख लिए।
उस हॉल में बाई ओर की खिड़की के पास रखी बड़ी सी टेबल के पास दो आदमी खड़े थे जिसमें से एक सूट पहने हुए था जबकि दूसरा फॉर्मल पेंट शर्ट और मोटी काली फ्रेम के चश्मे पहने हुए था। दोनों की उम्र 25 वर्ष से ज्यादा नहीं लग रही थी।
" क्या नाम बताया उसने अपना?" सूट पहने हुए आदमी ने नौकर की तरफ मुड़ते हुए पूछा।
"सिकंदर शाह।" कहते हुए सामने के दरवाजे से एक आदमी ने हॉल में प्रवेश किया।
हॉल में मौजूद तीनों की नजरे उसकी तरफ ही घूम गई।
" मैने सोचा हमे जब मिलना ही है तो समय की बर्बादी क्यों की जाए।" सिकंदर मुस्कुराते हुए आगे बढ़ा," वैसे मुझे और भी कई काम हैं, इसलिए मैं बिना वक्त गवाएं यहां आ गया।" कहते हुए वह हॉल के बीच में ही रखी टेबल के पास पड़े सोफे पर बैठ गया।
तीनों अब भी उसे अजीब नज़रों से घूरे जा रहे थे।
" तुम्हारा नाम अनिरुद्ध है, और तुम्हारे उस कानों में रिंग पहने हुए दोस्त का नाम ओम है, तुम्हारे नौकर का नाम भीमा है।" सिकंदर ने मुस्कुराते हुए बड़ी ही लापरवाही के साथ कहा, "परिचय हो गया, चलो काम की बात करते है।" उसने यह सब एक ही सांस में बोल दिया।
" तुम यहां क्यों आए हो, क्या चाहते हो?" अनिरुद्ध ने उसकी तरफ बढ़कर प्रश्नभरी नज़रों से देखते हुए कहा जबकि उसके दोस्त ओम ने मुस्कुराते हुए अपने मोबाइल को निकाल कर उसमें कुछ सर्च करना शुरू कर दिया।
" चलो कुछ साल पीछे जाते है जब तुम्हे अपने पुस्तैनी बंगले में कुछ पुरानी चीजे मिली।" सिकंदर के चेहरे पर कुटिल मुस्कान स्पष्ट दिखाई दे रही थी।
" तुम, तुम्हे......" अनिरुद्ध के चेहरे पर आश्चर्य के भाव प्रकट हो गए थे परंतु उसने अपने शब्दों को रोकते हुए भीमा की तरफ मुड़ते हुए कहा," तुम जा सकते हो भीमा।"
" तुम क्या जानते हो इस बारे में?" भीमा के जाते ही अनिरुद्ध ने सिकंदर की तरफ मुड़ते हुए पूछा।
"शुरू से बताऊं क्या?" सिकंदर ने अपने पैर पर पैर चढ़ाते हुए कहा, " चलो तुम्हारी याददास्त ताजा कर ही देता हुं।" वह जारी रहा," तो, लगभग एक साल पहले तुम्हे अपने गांव के पुस्तैनी बंगले में कुछ मूर्तियां, पेंटिंग्स और बहुत सी सोने चांदी की चीजे मिली थी।"**
(** अनिरुद्ध के पुस्तैनी बंगले के बारे में जानने के लिए pritilipi app पर पढ़े पुस्तैनी बंगला भाग 1 एवं पुस्तैनी बंगला भाग 2)
सिकंदर के एक - एक शब्द के साथ अनिरुद्ध के माथे पर चिंता की लकीरें बढ़ती जा रही थी परंतु वह बिना कुछ बोले ही उसकी बाते सुनता जा रहा था।
"तुमने सोचा इस पर तो सरकार का कब्जा हो जायेगा , तो तुमने उन पेंटिंग्स और मूर्तियों को किसी तरह से विदेश - स्मगल करवा दिया, फिर इंडिया में एक ट्रस्ट और म्यूजियम बनाकर अपने विदेशी दोस्तों से उन प्राचीन चीजों को अपने म्यूजियम को दान करवा दिया।"
" तुम ये सब बता कर ,करना क्या चाहते हो?"अनिरुद्ध ने गंभीर चेहरा बनाते हुए कहा।
ओम अब भी अपने मोबाइल में कुछ ढूंढे जा रहा था ।
" देखो दस - बारह पेंटिंग्स और इतनी ही मूर्तियों से कोई म्यूजियम नही बन जाता है।"
" तो?"
" तो तुम उसे मुझे दे दो।" सिकंदर दबी हंसी हसते हुए बोला, " मैं तुम्हे उसकी अच्छी कीमत दे सकता हूं।"
" वो वस्तुएं इतिहास से जुड़ी हुई है।" इस बार ओम ने उसकी तरफ कुछ कदम बढ़ाते हुए कहा, " और मुझे ऐसी कोई जानकारी नहीं मिल रही है कि तुम किसी संग्रहालय के स्वामी हो।" कहते हुए ओम ने दाहिने हाथ में अपने मोबाइल हो हिलाया।
" ह.. ह संग्रहालय ! तुम्हारी हिंदी अजीब है।" सिकंदर हंस पड़ा।
" मेरी हिंदी शुद्ध है।" ओम गंभीरता के साथ कहा।
" जो भी हो।" कहते हुए सिकंदर ने अपना चेहरा फिर अनिरुद्ध की तरफ घुमाया, "देखो मुझे शौक है ऐसी चीजे इक्कठा करने का, केवल अपने लिए और जो मुझे चाहिए , उसे मैं पाकर ही दम लेता हूं।"
" चाहे चुरा कर ही क्यों न।" कहते हुए ओम इस बार अनिरुद्ध के बाई ओर आकर खड़ा हो गया।
" तो तुम इतनी देर मोबाइल में मेरी जानकारी निकाल रहे थे, ह... ह।मुझे ही पूछ लेते मैं ही बता देता।" सिकंदर ने आगे कहा, " चलो तुम मेरी जानकारी निकाल ही ली है तो यह भी जान लिया होगा की मैने अब तक क्या क्या कारनामे किए है।"
" मुझे नहीं जानना तुम्हारे कारनामों के बारे में और मुझे कोई चीज नहीं बेचनी।" अनिरुद्ध ने टका सा जवाब दे दिया था।
" नुकसान में रहोगे।" सिकंदर ने सोफे पर अपना बायां हाथ फेरते हुए कहा," क्योंकि जो मैं चाहता हूं , वो मैं पा लेता हूं by hook or by crook."
" बहुत हो गया, अब तुम जा सकते हो।" अनिरुद्ध ने ऊंची आवाज के साथ कहा।
" अच्छी बात है, अपनी सिक्योरिटी टाइट कर लेना।" सिकंदर एक ही झटके में सोफे पर से खड़ा हो गया और ओम के बालों के तरफ खोजी नजरो से देख मुस्कराते हुए बोला, " क्योंकि मुझे नही लगता ये तुम्हारा चोटी वाला सिक्योरिटी एडवाइजर तुम्हारी संपत्ति की रक्षा कर पाएगा।"
उसका इरादा उकसाने का था परंतु ओम पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा।
" ऐसा प्रतीत होता है तुम हिंदू विरोधी बॉलीवुडिया चल-चित्र अधिक देखते हो, शायद इसीलिए तुम शिखा वालों को कमतर आंक रहे हो। तुम्हे स्मरण रखना चाहिए की कई शिखाधारी चाणक्य के प्रशंसक भी हो सकते है।"
" ह ह ह, ये अच्छा है।" सिकंदर चिढ़ाने वाली हंसी हंसते हुए बोला," पर ये बात अपने जेहन में रखना की मैने हर उस को हराया है जो मुझसे टकराया हैं और मैं तुम्हे भी हरा दूंगा। मेरा नाम भी तो सिकंदर ही है, जो कभी नहीं हारा"
" तुम भविष्यवक्ता हो क्या?" ओम मुस्कुराते हुए उसके करीब आ गया।
"तुम हमें हराने का प्रयास करना और हम तुम पर विजय पाने का प्रयत्न करेंगे।" कहते हुए ओम ने अपनी शिखा का छोर अपनी तर्जनी अंगुली और अंगूठे से पकड़कर उसे अपने सिर पर वृताकार रूप से घुमाते हुए अपनी अंगुली पर लपेटना शुरू कर दिया और अंत में अपने अंगूठे और अंगुली को इस प्रकार घुमाया की उसमें गांठ लग गई, " वैसे सिकंदर ,महाराज पर्वतक से हारने के पश्चात् बहुत की कठिनता से अपने प्राणों की रक्षा कर पाया था।"
सिकंदर ने अचरज से भरे भावों के साथ कहां, "सिकंदर ने पोरस को हराया था!"
"हां।" ओम ने उसे चिढ़ाते हुए कहा, " पाश्चात्य इतिहासकारों की परी - कथाओं में । मैने इतिहास में सिकंदर से अन्य ऐसा कोई विजेता नही देखा जो जितने के पश्चात पुनः लौट जाए। वैसे भी सिकंदर की विजय के कोई प्रमाण नहीं है परंतु उसके समय के कई रोमन इतिहासकारों ने सिकंदर की पराजय के बारे में लिखा है।"
ओम की विद्वता के विरुद्ध सिकंदर के पास कोई तर्क नहीं था, वह चुप था।
" और कुछ सुनना है तुम्हे?" अनिरुद्ध ने सिकंदर की ओर तीखी नजरों से देखते हुए कहा।
"ना ना।" सिकंदर हॉल के दरवाजे की तरफ चल पड़ा, " पर तुम्हे सुनाने जरूर आऊंगा, तुम्हे हराने के बाद।" कहते हुए वह दरवाजे से बाहर निकल गया।
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