७. साफल्यम्
सिकंदर के लिए यह सब किसी भूकंप से कम नहीं था। वह हतप्रभ सा ओम के सामने खड़ा था। ओम सोफे पर बैठा हुआ उसकी ओर देखे जा रहा था।
" तुमने शायद रात को ही मेरे ऐनक के साथ छेड़छाड़ की होगी।" ओम ने हंसते हुए कहा, " पर अगली सुबह मेरे नाक और कानों ने दर्द कर - करके मुझे संकेत दे दिया था की ये मेरे पहले वाले ऐनक नही हैं।"
ओम की बाते सिकंदर के साथ - साथ आयशा और अनिरुद्ध को भी चौकाए जा रही थी।
" इसलिए मैंने जब गौर से देखा तो पता चला की मेरे ऐनक की temples तो पहले से नई थी। साथ ही साथ कुछ ज्यादा ही कठोर भी। " ओम की बाते सुनते हुए सिकंदर का चेहरा क्रोध से लाल हुआ जा रहा था परंतु ओम बिना उसकी चिंता किए बोलता रहा, " तो मैंने इसकी जांच की और मुझे पता चल गया की इसमें से कुछ सिग्नल कही ट्रांसमिट हो रहे है।"
कहते कहते ओम सोफे पर से खड़ा हो गया और टहलते हुए बोला, " जैसा मैने सोचा इसमें माइक्रोफोन से सिग्नल जा रहे थे , तो मैंने तुमसे, वह तिजोरी चुरवाने की योजना बनाई जिसमें पेंटिंग्स और मूर्तियां नही थी।"
ओम हंसते हुए सिकंदर की ओर मुड़ा, "और तुमने वही किया जो मैंने सोचा था, जिस तिजोरी को आदिवासियों ने चुराया उसमें ही पेंटिंग्स और मूर्तियां थी।"
ओम मुस्कुराते हुए बोला, " मूर्तियां और पेंटिंग्स लिए ट्रक अनिरुद्ध के पुस्तैनी घर पहुंच चुका है और तुम्हारी गुप्त जगह पर रखी तिजोरी खाली है।"
"हा, हा, हा।" ओम की बात पूरी होने से पहले ही सिकंदर जोर जोर से हंसने लगा था।
" पागल हो गए हो क्या?" उसे हंसते देख अनिरुद्ध स्वयं को यह सवाल पूछने से रोक नही पाया।
"नहीं, नहीं! हा, हा हा।" सिकंदर अब भी हंसे जा रहा था।
" तो क्या इसने कोई जोक मारा?" आयशा ने ओम के तरह हाथ से इशारा करते हुए सिकंदर से पूछा।
"नहीं पर जोक से कम भी नहीं।" सिकंदर ने अपनी हंसी को नियंत्रित करते हुए अनिरुद्ध की तरफ देखते हुए कहा," मानना पड़ेगा तुम्हारा दोस्त बाते बड़ी अच्छी बना लेता है।"
सिकंदर ने ओम की तरफ देखा, " यह सोचता है मैं इसकी बात मान लूंगा और हड़बड़ाते हुए अपने सीक्रेट अड्डे की दौड़ लगा दूंगा। जिससे तुम मेरा पीछा करते हुए उस अड्डे तक पहुंच जाओ।"
" अले ले ले....तुझे ऐसा लगता है।" ओम सिकंदर को उकसाने के लिए उससे इस प्रकार व्यवहार कर रहा था जैसे वह कोई बच्चा हो, "तो फिर बैठे रहो खाली तिजोरी लिए। वैसे वो खाली तिजोरी उस जमीन के नीचे है जो दुनियां की नजर में तुम्हारे पूर्वजों की कब्रगाह है। तुम्हारा निजी कब्रिस्तान।"
सिकंदर को कांटों तो खून नहीं। कब्रिस्तान का नाम सुनते ही उसकी आंखे फैलकर चौड़ी हो गई थी।
" तुम, तुम।" सिकंदर ने ओम की तरफ उंगली दिखाते हुए कुछ कहने का प्रयास किया पर उसकी जुबान लड़खड़ा रही थी।
ओम गंभीर हंसी हंसते हुए बोला, " अब मैं देखता हूं तुम कितने दिनों तक अपने गुप्त स्थान पर नही जाते हो।"
सिकंदर के पास कुछ भी बोलने को नही था। वह कुछ सेकंड के लिए यू ही खड़ा रहा और उसके बाद तेजी से दौड़ते हुए दरवाजे से बाहर निकल गया।
" बहुत बढ़िया।" आएशा ने सिकंदर के जाते ही ओम के करीब आकर कहा, " अभी हम उसका पीछा करेंगे और उसे रंगे हाथों पकड़ लेंगे।
" नही, मैं उससे सच कह रहा था।" ओम ने बात के विषय को बदलते हुए कहा, " पर आज तुम्हारी भाषा में यह बदलाव कैसे आ गया।"
अनिरुद्ध भी आयशा को देखकर मुस्कुरा रहा था।
" क्या मतलब तुम सच कह रहे थे।" आयशा ने मुद्दा बदलने नही दिया, "आदिवासियों ने जिस तिजोरी को चुराया था उसमे सच में पेंटिंग्स और मूर्तियां थी?"
" हां।"
अचानक से आयशा के चेहरे के भाव बदल चुके थे।
"तुम इतना होशियार बनने का नाटक करते हो परंतु मुझे तो लगता है तुम नीरे ही बेवकूफ हो।" आयशा गुस्से के साथ चिल्लाई ।
" अरे तुम इतनी गुस्सा क्यों हो रही हो।" ओम आयशा को हंसते हुए देख रहा था। वह लापरवाही के साथ फिर सोफे पर बैठ गया ।
उसका बेपरवाह व्यवहार आयशा को और भी गुस्सा दिला रहा था जबकि अनिरुद्ध बड़े मजे सेे चुपचाप उन दोनों की नोक झोंक देख - सुन रहा था।
" गुस्सा न होऊं।" आयशा ने जोरदार आवाज में कहा, " तुम तुक्के पर अपना प्लान चला रहे थे। ये तो कुछ घंटों में ही वो आदिवासी पकड़े गए क्योंकि सिकंदर पुलिस को इसी में उलझाए रखना चाहता था पर अगर सिकंदर उस तिजोरी को भी चुरा कर अपने अड्डे ले गया होता तो..... तब तो तुम्हारी सारी प्लानिंग धरी की धरी रह जाती न।"
" दोनों तिजोरियां चुरा ली जाने पर भी सिकंदर के हाथ कुछ नही आने वाला था।"
"क्या मतलब।"
ओम आयशा को आज झटके पर झटके दिए जा रहा था।
" मुझे तुम्हारी एक भी बात समझ में नही आ रही है।"
ओम के साथ इस बार अनिरुद्ध भी मुस्कुरा रहा था, "मेरा कहने का मतलब यह हैं की अगर वह उन तिजोरियों को न चुराता तो हमारे म्यूजियम को देखने के लिए ज्यादा लोग भी नही आते।"
" तो तुम ये सब पब्लिसिटी के लिए किए हो।" आयशा ने अजीब चेहरा बनाते हुए कहा।
" वो तो गौण बात है।" ओम ने कहा, " मुख्य बात यह है की कुछेक पेंटिंग्स और मूर्तियों से म्यूजियम नहीं बनता उसके लिए बहुत सी प्राचीन वस्तुएं चाहिए।"
" उस चीज का इस चोरी के संबंध क्या है?" आयशा ने अपना सिर पकड़ते हुए कहा , " तुम मुझे साफ साफ क्यों नहीं बताते।"
आयशा के चेहरे से ही लग रहा था की वह ओम की गोल गोल बाते सुनकर थक गई थी और ओम को देखकर लग रहा था की उसे आयशा को इस हालत में देखकर काफी मजा आ रहा था।
" अवश्य बताऊंगा।" ओम ने मजे लेते हुए कहा, " परंतु तुमने मुझसे यह नही पूछा की मुझे यह चोट कैसे लगी।" ओम ने अपने कपाल पर लगे बैंडेज पर दाहिने हाथ से छूते हुए कहा।
"ओह।" आएशा ने कुछ सोचते हुए कहा, "तुम तो अनिरुद्ध के पुस्तैनी घर पर थे, तुम्हे यह चोट किस कारण लगी।"
ओम ने कुछ नही कहा, बस मुस्कुराते हुए आयशा को देखता रहा।
" तुम उस घर में नही थे।"
"बिल्कुल नही।"
"तुम कही ओर थे।"
"बिल्कुल सही जा रही हो।"
" तुम उसके गुप्त अड्डे का पता लगा रहे थे।" आयशा की आंखों में अलग ही चमक दिखाई दे रही थी, "तुम उसके अड्डे पर थे।"
"हूं।"
"मतलब तुमने सच में उसके अड्डे का पता लगा लिया है।" आयशा ने खुशी से चीखते हुए कहा।
"बिल्कुल सही।" ओम मुस्कुराते हुए बोला।
"पर कैसे? आएशा के चेहरे पर फिर से प्रश्न तैरने लगे ," तुमने कैसे उसके सीक्रेट अड्डे का पता लगाया?"
"अब ये सही प्रश्न है।" ओम ने सोफे पर से खड़े होते हुए कहा, "पर इसके लिए तुम्हे थोड़ी प्रतीक्षा करनी पड़ेगी क्योंकि इस रहस्य को जानने के बाद तुम्हे पता चलेगा की किसी ही परिस्थिति में सिकंदर हमें हरा ही नहीं सकता था।
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दोस्तों इस कहानी के अंतिम भाग को लिखने से पहले आप सभी के सुझाव, प्रश्न और feedback आवश्यक है ताकि मैं इसका अंत इस प्रकार लिख सकूं की किसी भी प्रश्न का जवाब बाकी न रह पाए।
इसलिए सभी से request है की अधिक से अधिक comment कर अपने सुझाव दे। धन्यवाद