६. असफलता
सिकंदर शाह ने दोनों तिजोरियों को चुरा लिया था।
शहर लौटते ही इंस्पेक्टर मनोज ने सिकंदर शाह को पुलिस कस्टडी में ले लिया था परंतु उसके वकील को उसे छुड़ाने में कुछ ही घंटे लगे। सिकंदर के पास पहले से ही बहाना था की वह किसी साइट सीइंग के लिए शहर से बाहर गया था, उसका अनिरुद्ध के साथ हुई घटना से कोई संबंध नहीं था। उसने इंस्पेक्टर मनोज को कोर्ट में देख लेने की धमकी भी दी थी।
इसी बीच ट्रक को ले जाने वाले पांचों आदिवासियों को पकड़ लिया गया था परंतु किसी ने भी अपना मुंह नही खोला था। उन लोगों ने केवल इतना ही कहा था की उन्होंने केवल लूट के इरादे से ही इस वारदात को अंजाम दिया परंतु सभी जानते थे की इतने योजनाबद्ध तरीके से हमला करना उनकी सोच नही हो सकती थी।
दूसरी ओर अनिरुद्ध आयशा के साथ ओम के घर पर था।
" आखिर ओम जा कहा सकता है।" अनिरुद्ध तेज कदमों से हॉल में इधर उधर टहलते हुए झल्लाया, "और उसका मोबाइल भी स्विच ऑफ बता रहा है।"
" साला वो किसी खतरे में न हो।" आयशा ने चिंतित होते हुए कहा, " चोरी की बात सुनकर कही वो अकेला ई च उसका पता लगाने तो नही निकल पड़ा । वैसे भी वो भी सटकेला ही है।"
" या फिर वो कही मुंह छुपाकर बैठा हो।"
ये सिकंदर की आवाज थी। वह हॉल के दरवाजे के दाहिने चौखटे पर हाथ टिकाए खड़ा था। अनिरुद्ध और आयशा ने चौंकते हुए उसकी और देखा।
" शायद लोगों के घर में बिन बुलाए घुस आने की आदत है तुम्हारी।" अनिरुद्ध ने गुस्से भरे चेहरे के साथ सिकंदर को घूरते हुए कहा।
" वैसे दरवाजा खुला था और तुम्हारा नौकर भी मुझे दिखा नही इसलिए मैं सीधा अंदर आ ही गया।" सिकंदर मुस्कुराते हुए हॉल में आगे बढ़ा, " मैं तुम्हे पहले ही बता चुका हूं की मुझे वक्त की बर्बादी पसंद नही है।"
" तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई यहां आने की।" अनिरुद्ध ने जोरदार आवाज में कहा, वह उससे ज्यादा बात करने के मूड में नहीं था।
"मैंने कहा था न , तुम्हे सुनाने जरूर आऊंगा तुम्हे हराने के बाद।" कहते हुए वह उसी सोफे पर उसी जगह बैठ गया जिस जगह वह कुछ दिन पहले बैठा था।
उसी समय ओम हॉल के दरवाजे के पास दिखाई दिया। उसके सिर के बाई ओर एक बैंडेज लगा हुआ था।
" ओम तुम ठीक तो हो।" आयशा उसे देखते ही उसकी ओर दौड़ पड़ी।वह उसकी चोट को बड़ी ही बैचेनी के साथ देख रही थी। अनिरुद्ध भी उसे देखकर थोड़ा शांत हो गया।
" कही अपनी हार देखकर बेहोश तो नही हो गए थे।" अनिरुद्ध ने ओम को उकसाने के लिए हंसते हुए कहा, " या तुम्हारी भाषा में बोलूं तो मूर्छित तो नही हो गए थे तुम ?"
" अपुन तेरा सर फोड़ देखी।" आयशा गुस्से के सिकंदर की ओर उसे मारने के लिए झपटी ही थी की ओम ने उसका हाथ पकड़ लिया। उसने आयशा को इस प्रकार मुस्कुराकर देखा की वह बिल्कुल शांत हो गई ओम ने उसका हाथ छोड़ दिया।
" काफिरों का साथ देने वालों को जहन्नुम की आग नसीब होगी।" सिकंदर को शायद ओम और आयशा की नजदीकियां पसंद नही आई थी।
"काफिरों का साथ देने वाले जमीन पर ही असली जन्नत बनाने है, उन्हें तुम्हारी काल्पनिक जन्नत और जहन्नुम पर रत्तीभर भरोसा नही हैं।" आयशा ने भी उसकी ओर घूरकर देखते हुए कहा जबकि ओम और अनिरुद्ध उसकी भाषा में आए बदलाव को देखकर प्रभावित हो गए थे और सिकंदर भी मन ही मन अपना गुस्सा पिए रह गया।
" अब तुम यहां क्यों आए हो, तुम अपने कार्य में सफल तो हो ही चुके हो।" ओम का चेहरा भावहीन था।
" तुम्हारे हारे हुए चेहरे देखने आया था मैं।" सिकंदर ने बनावटी मुस्कान के साथ कहा, " शायद तुम यह भी सोच रहे होंगे की मैने यह सब कैसे किया।"
ओम उसे देख मन ही मन मुस्कुरा दिया उसे समझ आ गया था की सिकंदर यहां अपनी शैखी बघारने आया है।
" मुझे तुम्हारे प्लान की एक एक बात पता थी, दोनो तिजोरियों के बारे में इसलिए मैने दोनों को ही चुरा लिया।" सिकंदर का चेहरा इतना खिला हुआ था जैसे उसे यह बताते हुए बहुत मजा आ रहा था।
" हां वो तो है।" कहते हुए ओम सिकंदर के ही दाई ओर रखे दूसरे सोफे पर जाकर बैठ गया, " मैं काफी उत्सुक हूं, देखे तुम मुझे क्या क्या बता पाते हो।" ओम का चेहरा भावरहित था जिसे देखकर उसके किसी भी संवेग के बारे में अनुमान लगाना बहुत ही दुष्कर कार्य था।
अनिरुद्ध और आएशा आश्चर्य के साथ ओम को देखे जा रहे थे। शायद इसलिए की आखिर इतना सब होने के बावजूद ओम इतना शांत कैसे हो सकता है।
" मुझे अनुमान लगाने दो।" ओम ने सिकंदर की देखते हुए कहा, " कही दूसरे ट्रक को ले जाने वाले ड्राइवर तुम तो नही थे न क्योंकि दूसरों को तो तुम अपनी मुख्य योजना में शामिल करते हो नही, है न?"
" तुम्हारे दोस्त को एक ड्राइवर की जरूरत थी और उसी दिन मैं भी भेस बदलकर काम की तलाश में उसके पास पहुंचा और मेरी तकदीर से मुझे तुम्हारे ट्रक को ही लाने का काम मिला।" सिकंदर ने इतराते हुए कहा, " अगर ऐसा न होता तो भी मैं कुछ और रास्ता निकाल ही लेता।"
" हां वो तो है।" ओम ने सहमति में सिर हिलाते हुए कहा, " और तुमने पहली तिजोरी को इसलिए चुराया ताकि सबका ध्यान उस पर रहे और तुम्हे दूसरी तिजोरी चुराने में ज्यादा परेशानी न हो।"
"बिल्कुल।" सिकंदर गर्वीले अंदाज में कहा।
उन दोनों को सामान्य होकर बाते करते देख अनिरुद्ध और आएशा काफी अचरज में थे । दोनों की ही आंखों से उनके गुस्से का अनुमान लगाया जा सकता था परंतु वे चुप थे और दोनों की बातचीत सुने जा रहे थे।
" तुम सोच रहे होंगे मैने ये सब कैसे किया? " सिकंदर ने अपना बायां हाथ लापरवाही के साथ सोफे पर फैलाते हुए कहा।
"हां, यह तो सोचने वाली बात है।" ओम का चेहरा अब भी भावशून्य था।
" इस माइक्रोफोन की सहायता से।" कहते हुए सिकंदर ने सोफे के कोने में हाथ डाल एक छोटा सा माइक्रोफोन बाहर निकाल लिया।
" पर हमने हर चीज की प्लानिंग इस हॉल में ही नहीं की थी।" पहली बार अनिरुद्ध उन दोनों के बीच में बोला था।
" ओह।" सिकंदर ने उसे चिढ़ाने जैसा मुंह बनाते हुए अपने सूट की जेब में हाथ डाला।
उसने किसी चश्मे के फ्रेम के दो temples सोफे के सामने रखी टेबल पर रख दी। ये दोनों टेंपल ओम के चश्मे की temple से हुबहू मेल खाती थी।
" तुमने ओम के चश्मे से छेड़छाड़ की।" अनिरुद्ध ने दोनों temples हाथ में लेते हुए अचरज के साथ कहा।
सिकंदर बिना बोले मुस्कुरा दिया।
"शायद तुमने temple tip में माइक्रोफोन फिट किया होगा।" ओम ने अपने चश्मे को उतार उसे गौर से& देखते हुए कहा जिस के जवाब में सिकंदर ने घमंड के साथ सहमति के रूप में अपना सिर हिला दिया।
" बड़ी अच्छी सोच है, क्योंकि पूरा ऐनक बदलने में तो काफी समय लग सकता था ।" ओम उसकी तारीफ करने लगा था, " इससे तो तुम्हे मेरी फोन पर की हुई बाते भी सुनाई दी होगी।"
" तुम इसकी तारीफ कर रहे हो।" आयशा ने अजीब सा मुंह बनाते हुए ओम की तरफ देखा।
ओम कुछ कहता उससे पहले सिकंदर बोल पड़ा, " उसके अलावा ये कर भी क्या सकता है।" वह सोफे पर से खड़ा हो चुका था। उसने आयशा की ओर देखते हुए कहा, " ये हार जो चुका है।"
"किसने कह दिया हम हार चुके है।" ओम ने शांति के साथ सोफे पर बैठे बैठे कहा।
सिकंदर ने चौंकते हुए ओम की तरफ देखा। ओम उसकी तरफ देखते मुस्कुराए जा रहा था, " तिजोरी अनिरुद्ध के पुस्तैनी घर पहुंच चुकी है उन मूर्तियों और पेंटिंग्स के साथ।"
" तुम मजाक कर रहे हो।" सिकंदर ओम को इस देख रहा था जैसे वह उसके चेहरे के भावों से उसे समझने का प्रयास कर रहा था परंतु ओम के हावभाव पूर्ण रूप से गंभीर थे।
" मैं केवल अपने स्नेहीजनों से ही मजाक करता हूं।" ओम की आवाज में दृढ़ता थी।
उसे देखकर अनिरुद्ध व आयशा की आंखों में चमक और सिकंदर की आंखों में संशय छा गया था।
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