८. पुस्तैनी बंगला भाग 1
आयशा के लिए ओम की हर बात समझ से बाहर थी। उसका चेहरा आश्चर्य से भरा हुआ था और ओम तथा अनिरुद्ध उसे मुस्कुराते हुए देख रहे थे।
" साला अपुन को......."
आयशा झुंझलाहट में अपने पुराने ढंग में लौट ही रही थी की अनिरुद्ध की टेढ़ी नजर से वह पुनः संभल गई।
" मेरा मतलब है तुम मुझे साफ साफ शुरुआत से सब कुछ क्यों नहीं बता देते।" आयशा ने अपना सिर खुजाते हुए कहा, "और ये अनिरुद्ध के पुस्तैनी बंगले का क्या मैटर है, वो भी।" आयशा सब कुछ जानने को इच्छुक थी।
"अच्छी बात है।" ओम ने अनिरुद्ध की तरफ देखते हुए पूछा, "अनिरुद्ध तुम्हारी डायरी इसे दे दो, यह तुम्हारे पुस्तैनी बंगले में जान लेगी उसके बाद में मैं इसे बाकी बाते बता दूंगा।"
कहते हुए ओम बिना अनिरुद्ध की प्रतिक्रिया को देखे पास की सीढ़ियों से अपने कमरे की तरफ चल पड़ा।
" तब तक मैं नहा भी लूंगा।" कहते हुए ओम ऊपरी मंजिल पर अपने कमरे में चला गया। आएशा बस उसे देखते ही रह गई।
दूसरी तरफ अनिरुद्ध ने हॉल के एक कोने में रखे ड्रावर में से अपनी दो डायरी निकाल कर आयशा के सामने खौल दी।
"इन्हे यहां से पढ़ लो..." अनिरुद्ध ने अपनी दोनों डायरियां एक विशेष जगह से खोल कर आयशा के हाथों में दे दी।
" पर यह सब तुम खुद कह भी सकते हो..." आयशा अपनी बात पूरी नहीं कर पाई क्योंकि अनिरुद्ध बीच में ही बोल पड़ा।
८ डायरी के पन्ने
"हां पर मुझे ओम से आगे क्या करना है बारे में मसवर करना हैं। तुम इसे पढ़ लो ज्यादा कुछ नहीं है, तुम्हे इसमें कोई परेशानी नहीं होगी।"
कहते हुए अनिरुद्ध भी तेजी के साथ ओम के कमरे की ओर दौड़ पड़ा।
अब आयशा हॉल में अकेली थी ।
उसने गुस्से में अपना दाहिना पैर पटका और फिर पूरे जोर से सोफे पर बैठते हुए अनिरुद्ध की पहली डायरी को पढ़ना शुरू कर दिया।
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(जिन्होंने पुस्तैनी बंगला भाग १ पढ़ लिया है वो यहां से आगे skip कर सकते हैं। धन्यवाद )
अनिरूद्ध की डायरी १ ........
वो हमारा पुस्तैनी मकान था। मकान नही उसे बंगला कहना ही ठीक रहेगा क्योंकि वो था ही इतना बड़ा। मेरे दादाजी आज से 60 साल पहले अमेरिका बिजनेस के लिए गए थे और वही के होकर रह गए। वे जब तक जिन्दा रहे हर 2 साल बाद यहाँ आते और कुछ दिन इसी बंगले में बिताते थे। पर उनके जाने के बाद पिताजी को अपने बिजनेस की व्यस्तताओं के कारण एक बार भी यहाँ आने का मौका नही मिला था। करीब 20 साल बाद यह बंगला अपने किसी वारिस को देख रहा था। इतने साल बीतने के बावजूद ये बंगला काफी अच्छी स्थिति में था। मेरे यहाँ आने से पहले इस बंगले की अच्छे से सफाई भी करवा दी गयी थी।
पर जब मैं इस गांव में आया, गांव के सभी लोग मुझे ही घूरे जा रहे थे। पहले तो मुझे लगा की दादाजी के बाद कोई पहली बार इस बंगले में आया है इसलिए लोग मुझे घूर रहे है पर बाद मे पता चला की बात तो कुछ और ही थी।
रमेश नाम के उस आदमी (रमेश को पिताजी ने हमारे बंगले का ध्यान रखने के लिए रखा था और उसका घर हमारे बंगले के पीछे वाले जंगल के पास था) ने मुझे बताया की मै जिस बंगले में रहने वाला हूँ वो भूतिया है और रात को उसमे चुड़ैलें घूमती है।
"क्या बकवास कर रहे हो तुम"
सीधी सी बात है कोई पढ़ा लिखा आदमी भुत और चुड़ैलों पर विश्वास थोड़ी न करेगा और मैने भी नही किया।
"नही सच में।" रमेश फिर दृढ़ता के साथ कहा।
"इस घर में रात को चुड़ैलें आती है तभी तो मै भी इस बंगले में नही रहता। देखना आज रात को भी चुड़ैलें बंगले के पीछे वाले जंगलों से आएगी।पूरा गांव जानता है इस बात को।"
"अच्छा! तो आज रात को देख लेंगे।" मैने उसकी बात पर कुछ खास ध्यान नही दिया और उस बंगले में वापस आ गया।
मैने शाम को जल्दी खाना खा लिया और अपने कमरे की तरफ चल पड़ा।रमेश ने मेरा कमरा पहले से तैयार करवा रखा था और मै भी आराम करना चाहता था इसलिए मै बिस्तर पर सो गया। पता ही नही चला की मेरी आँख कब लग गयी और जब मै जागा तो रात के 12 बज रहे थे। तभी अचानक मुझे मेरे कमरे की खिड़की के खुलने की आवाज आई। मैने देखा तो कोई बड़ा सा साया खिड़की से कमरे में घुस रहा था।उसकी आँखे सुर्ख लाल थी और अँधेरे में भी बिलकुल साफ़ दिखाई दे रही थी। उसे देखते ही मेरे पूरे शरीर में कंपकंपी शुरू हो गयी क्योंकि उसके दो ऊपर के दाँत और दो नीचे के दाँत बाहर निकले हुए थे जिसमें से शायद खून भी टपक रहा था । मुझे अब विश्वास हो गया की रमेश सच बोल रहा था।
मुझे कुछ नही सूझ रहा था की मै क्या करू। मैने जैसे तैसे खुद को संभाला और अपने पलंग से उतर कर दरवाजे की तरफ दौड़ पड़ा।
"ईईई..............या......."
उस साये या फिर कहे तो चुड़ैल की आवाज इतनी जोरदार थी की मेरे पाव अचानक से जैसे जमीन से ही चिपक गए। मैने पीछे मुड़ कर देखा तो पाया एक और चुड़ैल भी खिड़की से कमरे में आ चुकी थी।
अब मुझे यकीन हो चला था की अगर में यही रुका रहा तो मौत पक्की है । मैने अपनी सारी शक्ति लगा कर दौड़ लगा दी। दोनों चुड़ैलें भी जोरदार चित्कार करते हुए मेरे पीछे दौड़ पड़ी।
बंगला बहुत बड़ा था इसलिए मुझे बंगले से बाहर निकलने में ही काफी समय हो गया पर चुड़ैलें अब भी मेरा पीछा कर रही थी। बंगले से बाहर निकलते निकलते मेरी साँस फूलने लगी थी पर मैं फिर भी दौड़ता रहा। मुझे पता नही मै किस दिशा में दौड़ रहा था , किधर जा रहा था फिर अचानक से मुझे ऐसा लगा की मेरा खुद पर से सारा नियंत्रण छूट रहा है और अगले ही पल मै दौड़ते दौड़ते गिर पड़ा।
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जब मेरी आँख खुली तो मैने पाया की सूर्योदय हो रहा था और मै अपने बंगले के सामने वाले बगीचे में था। मै जहाँ था वहाँ से बंगले का मुख्य दरवाजा करीब 100 कदम की दुरी पर था। मैंने उठते ही सीधे अपने कमरे की तरफ दौड़ लगा दी ।
मै एक भी पल गवाए बिना इस गांव से निकल जाना चाहता था इसलिए कमरे में पहुचते ही मैंने अपना बैग पैक करना शुरू कर दिया। इस समय करीब 6 बज रहे थे। तभी मेरी नज़र उस खिड़की की तरफ चली गयी जहाँ से रात को वे दोनों चुड़ैलें आई थी। मैंने देखा की वहां फर्श पर कुछ पैरो के निशान थे और खिड़की भी खुली हुई ही थी। फिर वही हुआ मेरे साथ जो अक्सर मेरे साथ होता है। मेरा दिमाग कह रहा था की आखिर भुत- चुड़ैलों के पैरों के निशान पैसे पड़ सकते है वे तो आत्मा होती है, अगर वो होती है तो। एक और बात भुत और चुड़ैलों को खिड़की खोल कर आने की क्या जरूरत है वो तो सीधे ही आ सकते है। मैंने जब थोडा पास से उन निशानों को देखा तो पाया की यहाँ पर चार प्रकार के निशान थे। दो प्रकार के निशान खिड़की से आने वाले और दो प्रकार के निशान खिड़की से बाहर जाने वाले।
मैंने सोचा की एक बार पता करना चाहिए की ये निशान कहाँ तक जाते है। मै उस खिड़की से बाहर की तरफ निकल पड़ा। वे निशान जंगल में काफी दूर तक जा रहे थे। कुछ देर चलने के बाद मुझे जंगल में कुछ आवाजे सुनाई दी मै धीरे से छुपते हुए उन आवाजों की तरफ बढा।
जब मै उन आवाजों के काफी पास पहुँच गया तो मैंने पाया की वहाँ रमेश और एक आदमी आपस में बाते कर रहे थे। मुझे उनकी आवाज बिलकुल साफ़ सुनाई दे रही थी और मै चुपचाप उनकी आवाज सुनने लगा।
"कल हमने उसे अच्छे से डरा दिया। आज तो वो अपना बोरिया- बिस्तरा लेकर वापस अमेरिका भाग जायेगा।" रमेश ने बड़े ही उत्साह के साथ कहाँ।
"और वो रुक गया तो?" दूसरे आदमी ने पूछा।
"तो आज रात हम फिर जायेंगे।" रमेश ने निश्चिन्तता के साथ कहा,"कितने दिन टिक पायेगा वो, आखिर में उसे भागना ही पड़ेगा । जिस चीज की तलाश में वो आया है वो सिर्फ मुझे ही मिलेगा किसी और को नहीं।"
रमेश की बात सुनकर में काफी चौक गया । आखिर उसे कैसे पता चला की मै अमेरिका से वापस इस गांव में क्यों आया हूँ। मुझे उस पर गुस्सा भी आ रहा था की उसने मुझे डराने के लिए चुड़ैल बनने का नाटक किया।
कुछ देर बात करने के बाद रमेश और वो आदमी वहां से चले गए। मै भी धीरे से वहाँ से निकल पड़ा। मैंने निश्चय कर लिया था की मै आज रात इस बंगले में जरूर रुकुंगा। जंगल से आते हुए मुझे एक अच्छा सा डण्डा भी मिल गया जिससे में उन दोनों की हड्डियां बहुत बढ़िया तरीके से चटका सकता था।
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आज करीब 10 बजेे रमेश मुझसे मिला।उसने मुझसे पूछा की रात को कुछ हुआ तो नहीं पर मैने उसकी बात टाल दी। वह झूठ-मूठ का चिंतित होने का नाटक कर रहा था पर मैंने उस पर कुछ ख़ास ध्यान नहीं दिया। मैने उसे इतना विश्वास जरूर दिला दिया था की मै कही नहीं जाने वाला।
आज शाम भी मै जल्दी खाना खाकर सो गया(सच कहूँ तो मै सोने का नाटक कर रहा था)। मै वो डण्डा लेकर ही सो रहा था।
आज रात 12 बज गए फिर भी कोई हलचल नही हुई थी। मेरा पूरा ध्यान खिड़की की तरफ था। मुझे पता ही नही चला की कब 1 बज गया और तभी मुझे लगा की कोई खिड़की खोल रहा था।
खिड़की से एक साया अचानक से कमरे में प्रविष्ट हुआ। उसके कल रात की तरह ही लाल लाल आँखे थी जो अंधेरे में भी चमक रही थी। उसके दो ऊपर के और दो नीचे के दाँत काफी लंबे थे और बाहर निकले हुए थे। वो चुड़ैल कमरे में आते ही मेरे पलंग की तरफ बढ़ी। मै पलंग पर पड़ा रहा तथा उसके थोडा और पास आने का इंतजार करने लगा। मैंने अपने डंडे को काफी मजबूती से पकड़ रखा था। वो चुड़ैल जैसे ही मेरे पलंग के बहुत पास आ गयी तो मै एक ही झटके में खड़ा हो गया । मेरी इस हरकत से वो चुड़ैल भी चौक गयी।
उसने एक जोरदार चीख निकाली,
"ईईईई..........या..…........"
लेकिन अबकी बार मै उसकी चीख से बिलकुल ही नही डरा क्योंकि मै जानता था की वहाँ चुड़ैल के भेष में कोई और ही था।
उसके चीखते ही मैंने उसकी छाती पर डंडे का जोरदार प्रहार किया।
"ईई ईई.…..…......या.….…....." डण्डा पड़ते ही उसने और जोर से चीख लगाईं।
इस पर मैने भी और जोर से डंडे का प्रहार किया।
इस बार जोरदार चित्कार करते हुए वो चुड़ैल ही भाग खड़ी हुई पर मै उसे यूँ ही जाने नही देना चाहता था। मै भी डण्डा लिए उसके पीछे दौड़ पड़ा लेकिन वो चुड़ैल मुझसे काफी तेज थी आखिर वो बंगले से बाहर निकलते हुए जंगल में कही गायब हो गयी।
मैंने स्वयं ही अपनी पीठ थपथपाई और वापस अपने कमरे में आकर सो गया।
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सुबह में जल्दी उठ गया और फिर से जंगल में उसी जगह पहुँच गया जहाँ कल सुबह रमेश और वो दूसरा आदमी मिले थे।
रमेश और वो दूसरा आदमी पहले से वही मौजूद थे। मै फिर चुपके से उनकी बातचीत सुनने लगा।
"माफ़ करना , कल रात को मै नही आया पर तुम्हे भी पता चल ही गया होगा की मै क्यों नहीं आया।" उस दूसरे आदमी ने कहा।
'यानी कल रात को मैंने रमेंश की धुनाई की थी।' मैंने मन ही मन सोचा।
"कोई बात नहीं। मुझे भी बाद में याद आया की कल 13 तारीख थी और तुम भी जानते ही हो की 13 तारीख को उस बंगले में वास्तव में भुत और चुडैल आते है इसलिए मै उस बंगले में गया ही नही।"
रमेश के शब्दों ने मेरे दिमाग पर हथोड़े की तरह प्रहार किया।
'तो फिर कल रात मैने किसे दौड़ा-दौड़ाकर पीटा था?'
इस यक्ष-प्रश्न का जवाब मेरे शरीर में फिर से सनसनी पैदा कर रहा था।
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