न छेड़ो प्रकृति को आज भी हवाए अपने इशारे से बादलो को मोड़ लाती हैं। गर्म सूरज को भी पर्दे की ओट मे लाकर एक ठंडा एहसास जगाती हैं। रात की ठंड मे छुपता चाँद कोहरे की पर्त मे, उस पर्त को भी ये उड़ा ले जाती हैं। प्रकृति आज भी अपने वजूद और जज़बातो को समझती हैं हर मौसम को।पर मानव उनसे कर खेलवाड़, अपने लिए ही मु
दो घूट शराब के, दो पैक शराब के।जब दिन अच्छे थे तो, शराब को बुरा कहते थे।आज दिन बुरे है तो, शराब को अच्छा कहते है।वाह कोरोना तूने,शराबियों की जमात दिखा दी।मैख़ाने के नाम से नही, अब हमखाने से जानेंगे।शराब लोग गम में पीते थे, आज साबित हो गया।लाइन को गाली देना, गस खाकर गिर जाना, यह सब दिखावा बन गया। अब प
रूबरू जब कोई हुआ ही नहींताक़े दिल पर दिया जला ही नहींज़ुल्मतें यूं न मिट सकीं अब तककोई बस्ती में घर जला ही नहींबेजमीरों के अज़्म पुख़्ता हैंज़र्फ़दारों में हौसला ही नहींनक़्श चेहरे के पढ़ लिये उसनेदिल की तहरीर को पढ़ा ही नहींउम्र भर वह रहा तसव्वुर मेंदिल की ज़ीनत मगर बना ही नहींहमने अश्कों पर कर लिया क़ाबूग़