" टूट जाओ, पर तुम झुको नहीं "
टूट जाओ , पर तुम झुको नहीं
लगा दाव पर सब , रुको नहीं।
देख सागर कठिन तुम डरना नहीं
आज का भास्कर ही अंतिम नहीं।
सत्ता से रहता है संघर्ष सत्य का
असत्य कभी भी यहाँ जीता नहीं।
टूट जाओ , पर तुम झुको नहीं
लगा दाव पर सब , रुको नहीं।
बज्र टूटे, पर हिम्मत तो टूटे नहीं
निहथ्ते भी, शत्रु से तो कम नहीं।
हर तरफ़ तो हो, चाहे घोर अँधेरा
तुम्हारा संकल्प,अंगद से कम नहीं।
टूट जाओ , पर तुम झुको नहीं
लगा दाव पर सब , रुको नहीं।
प्राण - पण से तुम करो प्रतिकार
असत्य के साथ तो समर्पण नहीं।
उठा भूकम्प विचारों का,टोकना नहीं
हो रहा अनय, अपने को रोकना नहीं।
टूट जाओ , पर तुम झुको नहीं
लगा दाव पर सब , रुको नहीं।
#राजकुमार इन्द्रेश
प्रधानाचार्य / साहित्यकार
जयपुर राजस्थान