मन की व्यथा " एक ऐसी कहानी है जो वास्तविक घटनाओ पर अधारित है ,इस कहानी की पात्र रानी जो हमेशा अपने मन से बाते करती रहती है ,क्युकि ससुराल मे सबके होने के बावजूद भी वो अपने को हमेशा अकेला महसूस करती ,यहॉ तक उसका पति राज भी ,उससे काम तक ही बात करता ,ऐस मे रानी अपने मन को ही अपना साथी बना ली ,और हर बात को अपने मन मे ही बोलकर सन्तुष्ट हो जाती "।
"इसलिए इस "कहानी "का नाम "मन की व्यथा" रखा गया है ,!
"मेरी कहानी की रचना मेरी सहेली पर रची हुई है ,जिसका नाम रानी है "।
" ये उन दिनो की बात है ,जब मै उससे मिलने उसके घर गई ,उससे ज्यादा बात तो नही कर पायी ,क्युकि वो अपने घर के कामो मे इतना व्यस्त थी कि उसके पास मुझसे बात करने का समय ही नही मील रहा था ,मुझे अपनी सॉस के पास बैठाकर रसोई मे काम करने चली गई, और मै कितनी देर उसके सॉस के पास बैठकर बाते करती , फिर, मेने रानी की सॉस से बोली ,लगता है ऑटी रानी के पास मेरे साथ बात करने का समय नही है ,और मुझे बहुत देर हो रही है इसलिए अब मै चलती हूं ,जब मै जाने लगी तो ,पीछे से रानी आवाज दी तु अपना डायरी नही लेकर जाएगी ,फिर मेरे हाथ मे डायरी देते हुऐ कहती है ,ले डायरी कब से मेरे पास पडे हुऐ है , घर जाकर जरूर पढना देखना इस डायरी को मेने कुछ छेडछाड तो नही की ,और हॉ अब यहॉ दोबारा मत आना ,कहकर रानी अन्दर चली गई ",।
" फिर मै भी डायरी लिये हुऐ मन मे कई सारे सवाल लिए हुऐ अपने घर गई और रानी के बारे मे सोचने लगी ,आखिर वो ऐसा व्यवहार क्यु कर रही थी , और ये डाएरी मेरी तो नही है ,फिर उसने ऐसा कयु कहॉ की ये डायरी मेरी है ,और मै इसे लेकर जाऊ ",।
"फिर घर पहूंच कर मै उस डायरी को खोलकर पढना शुरू की तो आइये देखते है ,इस डायरी मे रानी क्या लिखती है ,"।
इस डायरी मे रानी अपने मन की हर बात को लिखती है"।साथ मे उन 9 औरतो के बारे मे भी लिखती है ,जिसका मन किसी ना किसी बात से परेशान रहा जिसमे कुछ औरते अपनी सॉस से परेशान थी तो कुछ अपने पतियो से ,,,, तो चलिए हम सबसे पहले रानी के बारे मे जानेगे कि रानी किस्से परेशान है ,पति से या सॉस से या फिर दोनो से "।
पार्ट = 1 "ससुराल मे पहला दिन " *_______*****______*
" ये बात उन दिनो की है ,जब मै शादी करके ससुराल आयी ,ससुराल आने मे मुझे ज्यादा समय नही लगा ,सुबह चार बजे बिदाई करके ,दस मिनट के अंदर धर्मशाला से ससुराल आ गई, । ससुराल आने के बाद मेरा पति के साथ गृहप्रवेश हुआ ,उसके बाद और भी सारे नियम कराऐ गए,क्युकि अभी सुबह के चार बज रहे थे ,इसलिए सारे मेहमान मे कुछ लोग ही मेरा स्वागत करने के लिए जगे हुए थे ,बाकी सारे लोग सो रहे थे ,सारे नियम हो जाने के बाद मुझे एक कमरे मे लाया गया ,और, वो कमरा लोगो से भरा हुआ था ,और सभीलोग सो रहे थे ,उसी कमरे के एक कोने मे थोडी सी जगह खाली थी ,मुझसे कहॉ गया कि वहॉ जाकर सो जॉव ,मै उस कोने मे जाकर बैठ गई, फिर सभीलोग मुझे उस कमरे मे छोड़कर सोने चले गए कयुकि ठंडा का मौसम था और ठंड मे सुबह पॉच बजे भी ऑधेरा ही छाया रहता है ,खैर अब मै ये सोचने लगी कि जहॉ ठीक से बैठा नही जा रहा है ,वहॉ मै सोऊ कैसे ,और ठंड भी बहुत लग रही थी , वहॉ औढने के लिए एक कंबल भी नही थी फिर मेने जो सॉल ओढ रखी थी उसी सॉल से अपने को अच्छी तरह से ढक ली ,मगर फिर भी ठंड लगी रही थी ,"।
" उस कमरे मे इतने लोग थे ,मुझे लगा इतने लोगो के सामने कैसे सो जाऊ ,और ठीक से सोने का जगह भी नही मिल रहा था ,फिर मै उस कोने मे बैठकर उजाला होने का इंतजार करने लगी , क्योंकि सुबह हो ही गयी थी ,मगर ठंडा का दिन था इसलिए सुबह के पॉच बजे भी ऑधेरा ही छाया हुआ था , और फिर मै बैठे-बैठे सोचने लगी की जिनके साथ मै शादी करके इस घर मे आयी,यानी की( राज मेरे पति का नाम है )उनका तो कुछ पता नही कहॉ जा कर सो गए ,मै सोचने लगी की क्या ससुराल मे एक बहु का स्वागत इस तरह से होता है ,क्या इस घर मे बहु के लिए एक कमरा नही है ,जो मुझे इस भीड वाले कमरे मे लाकर रख दिया गया "।
"फिर मै वही बैठे-बैठे छपकी लेने लगी ,बस जैसे ही ऑख लगी थी कि कुछ औरतो की आवाज मेरे कानो मे आने लगी ,फिर मै आवाज सुनकर ऑख खोलकर ठीक से बैठ गई ,फिर कमरे मे जितने लोग सोए हुए थे सभीलोग उठ चुके थे ,फिर, लोगो का आना-जाना कमरे मै चलता रहा ,सुबह के नौ: बज चुके थे ,मगर अभी तक किसी ने भी ये नही पूछा कि तुमेह किसी चीज की जरूरत है ,कुछ देर, के बाद मेरी मौसी सॉस की बेटी नीतु आकर मुझे एक कप चय लाकर दी और बोली ,भाभी ये लीजिए चाय, मुझे पता है कि आपको चय पीने का मन हो रहा होगा ,फिर वो मुझे चय पकडाकर चली गई ,दरअसल शादी से पहले हमेशा नीतु से बात होती रहती थी , मेरी अपनी दो नन्द थी मगर दोनो मुझसे कभी बात करना जरूरी नही समझी ,चलिए नन्द तो बात नही की ,मगर जिनसे मेरी शादी होने वाली थी कम से कम वो मुझसे बात करते ,मगर उन्होंने भी कभी मुझसे बात करना जरूरी नही समझा "।
" हमारी सगाई के एक साल चार महीना होने के बाद मेरी शादी हुई ,इतना लम्बा समय हमारे पास था एक-दुसरे को जानने के लिए लेकिन फिर भी ,राज मुझसे बात करने की कभी कोशिश नही की ,बस एक नीतु थी जिससे राज के बारे मे कुछ-कुछ पता चलता रहता था ,और अभी भी शादी हो जाने के बाद भी उनका कोई पता नही है ,कि वो कहॉ है ,क्या उनेह मुझसे एक बार भी नही आकर मिलना चाहिए था ,मगर वो अभी तक नही आऐ,"।
"फिर कुछ देर के बाद मुझे तैयार करके हॉल मे लेजाकर बैठाया गया ,क्युकि आसपास के लोग मुझे देखने के लिए आने वाली थे ,और मुझे बैठाया भी कहॉ गया जमीन पर बाकी सारे लोगो के लिए कुॅसियॉ लगाई गई ,और मेरे लिए जमीन मे एक चटाई बिछा कर उसमे बैठने के लिए बोला गया ,मै जाकर जमीन मै बैठ गई ,मै बार-बार यही सोच रही थी कि मुझे जमीन पर क्यु बैठाया गया, पर मै ये सवाल किस्से पूछती ,
फिर दिनभर लोगो का आना-जाना लगा रहा , इसीतरह करते-करते शाम के चार: बज गए ,मगर इस बिच मुझे मेरे पति नही दिखे , और ना एक बार आकर पूछना जरूरी समझे कि मुझे यहॉ कैसा लग रहा है ,बस अपने मन मे ही सवाल किये जा रही थी ,फिर थोडी देर, बाद नीतु मेरे पास आकर बैठती है ,और पूछती है कि ,तो भाभी कैसा लग रहा है ,अपको आपका ससुराल का पहला दिन ,बोलकर नीतु हंसने लगती है ,मै भी उसकी बात पर थोडा मुस्कुरा देती हूं ,मुझे तो कुछ समझ मे नही आ रहा था कि नीतु के इस सवाल का मै क्या जवाब दु"!
" रानी के साथ और क्या-क्या होता है ,देखते है अगले चैप्टर मे "!
धन्यवाद !!