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उपेन्द्र नाथ ‘अश्क’/ जीवन परिचय

12 अप्रैल 2016

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उपेन्द्र नाथ अश्क जी का जन्म पंजाब प्रान्त के जालंधर नामक नगर में 14 दिसम्बर, 1910 को एक मध्यमवर्गीय ब्राह्मण परिवार में हुआ था। अश्क जी छ: भाइयों में दूसरे हैं। इनके पिता पण्डित माधोराम स्टेशन मास्टर थे। जालंधर से मैट्रिक और फिर वहीं से डी. ए. वी. कॉलेज से इन्होंने 1931 में बी.ए. की परीक्षा पास की। बचपन से ही अश्क अध्यापक बननेलेखक और सम्पादक बननेवक्ता और वकील बनने,अभिनेता और डायरेक्टर बनने और थियेटर अथवा फ़िल्म में जाने के अनेक सपने देखा करते थे।


जालन्धर में प्रारम्भिक शिक्षा लेते समय ११ वर्ष की आयु से ही वे पंजाबी में तुकबंदियाँ करने लगे थे। कला स्नातक होने के बाद उन्होंने अध्यापन का कार्य शुरू किया तथा विधि की परीक्षा विशेष योग्यता के साथ पास की। बी.ए. पास करते ही उपेन्द्रनाथ अश्क जी अपने ही स्कूल में अध्यापक हो गये। पर 1933 में उसे छोड़ दिया और जीविकोपार्जन हेतु साप्ताहिक पत्र 'भूचालका सम्पादन किया और एक अन्य साप्ताहिक'गुरु घण्टालके लिए प्रति सप्ताह एक रुपये में एक कहानी लिखकर दी। 1934 में अचानक सब छोड़ लॉ कॉलेज में प्रवेश ले लिया और 1936 में लॉ पास किया। उसी वर्ष लम्बी बीमारी और प्रथम पत्नी के देहान्त के बाद इनके जीवन में एक अपूर्व मोड़ आया। 1936 के बाद अश्क के लेखक व्यक्तित्व का अति उर्वर युग प्रारम्भ हुआ। 1941 में अश्क जी ने दूसरा विवाह किया। उसी वर्ष ऑल इण्डिया रेडियों में नौकरी की।1945 के दिसम्बर में बम्बई के फ़िल्म जगत के निमंत्रण को स्वीकार कर वहाँ फ़िल्मों में लेखन का कार्य करने लगे। 1947-1948 में अश्क जी निरन्तर अस्वस्थ रहे। पर यह उनके साहित्यिक सर्जन की उर्वरता का स्वर्ण-समय था। 1948 से 1953 तक अश्क जी दम्पत्ति (पत्नी कौशल्या अश्क) के जीवन में संघर्ष के वर्ष रहे। पर इन्हीं दिनों अश्क यक्ष्मा के चंगुल से बचकर इलाहाबाद आयेइन्होंने नीलाभ प्रकाशन गृह की व्यवस्था कीजिससे उनके सम्पूर्ण साहित्यिक व्यक्तित्व को रचना और प्रकाशन दोनों दृष्टि से सहज पथ मिला। अश्क जी ने अपनी कहानीउपन्यासनिबन्धलेखसंस्मरणआलोचनानाटकएकांकीकविता आदि के क्षेत्रों में कार्य किया है। अश्क जी ने अपना साहित्यिक जीवन उर्दू लेखक के रूप में शुरू किया था किन्तु बाद में वे हिन्दी के लेखक के रूप में ही जाने गए। १९३२ में मुंशी प्रेमचन्द्र की सलाह पर उन्होंने हिन्दी में लिखना आरम्भ किया। १९३३ में उनका दूसरा कहानी संग्रह 'औरत की फितरतप्रकाशित हुआ जिसकी भूमिका मुंशी प्रेमचन्द ने लिखी। उनका पहला काव्य संग्रह 'प्रातः प्रदीप१९३८ में प्रकाशित हुआ। बम्बई प्रवास में आपने फ़िल्मों की कहानियाँ,पटकथाएँसम्वाद और गीत लिखेतीन फ़िल्मों में काम भी किया किन्तु चमक-दमक वाली ज़िन्दगी उन्हे रास नही आई। १९ जनवरी १९९६ को अश्क जी चिर निद्रा में लीन हो गए। उनको १९७२ के 'सोवियत लैन्ड नेहरू पुरस्कारसे भी सम्मानित किया गया।


उपेंद्रनाथ अश्क ने साहित्य की प्राय: सभी विधाओं में लिखा हैलेकिन उनकी मुख्य पहचान एक कथाकार के रुप में ही है। काव्यनाटकसंस्मरणउपन्यासकहानीआलोचना आदि क्षेत्रों में वे खूब सक्रिय रहे। इनमें से प्राय: हर विधा में उनकी एक-दो महत्वपूर्ण एवं उल्लेखनीय रचनाएं होने पर भी वे मुख्यत: कथाकार हैं। उन्होंने पंजाबी में भी लिखा हैहिंदी-उर्दू में प्रेमचंदोत्तर कथा-साहित्य में उनका विशिष्ट योगदान है। जैसे साहित्य की किसी एक विधा से वे बंधकर नहीं रहे उसी तरह किसी विधा में एक ही रंग की रचनाएं भी उन्होंने नहीं की। समाजवादी परंपरा का जो रूप अश्क के उपन्यासों में दृश्यमान होता है वह उन चरित्रों के द्वारा उत्पन्न होता है जिन्हें उन्होंने अपनी अनुभव दृष्टि और अद्भुत वर्णन-शैली द्वारा प्रस्तुत किया है। अश्क के व्यक्ति चिंतन के पक्ष को देखकर यही सुर निकलता है कि उन्होंने अपने चरित्रों को शिल्पी की बारीक दृष्टि से तराशा हैजिसकी एक-एक रेखाओं से उसकी संघर्षशीलता का प्रमाण दृष्टिगोचर होता है।


प्रकाशित रचनाएँ

अश्क ने इससे पहले भी बहुत कुछ लिखा था। उर्दू में 'नव-रत्नऔर 'औरत की फ़ितरतउनके दो कहानी संग्रह प्रकाशित हो चुके थे। प्रथम हिन्दी संग्रह 'जुदाई की शाम का गीत' (1933) की अधिकांश कहानियाँ उर्दू में छप चुकी थीं। जैसा कि अश्क जी ने स्वंय लिखा है, 1936 के पहले की ये कृतियाँ उतनी अच्छी नहीं बनी। अनुभूति का स्पर्श उन्हें कम मिला था। 1936 के बाद अश्क जी की कृतियों में सुख-दु:खमय जीवन के व्यक्तिगत अनुभव से अदभुत रंग भर गया। 'उर्दू काव्य की एक नई धारा' (आलोचक ग्रन्थ), 'जय पराजय' (ऐतिहासिक नाटक), 'पापी', 'वेश्या', 'अधिकार का रक्षक', 'लक्ष्मी का स्वागत', 'जोंक', 'पहेलीऔर'आपस का समझौता' (एकांकी), 'स्वर्ग की झलक' (सामाजिक नाटक): कहानी संग्रह 'पिंजराकी सभी कहानियाँ, 'छींटेंकी कुछ कहानियाँ और 'प्रात प्रदीप' (कविता संग्रह) की सभी कविताएँ उनकी पत्नी की मृत्यु (1936) के दो ढाई साल के ही अल्प समय में लिखी गई। नाटक के क्षेत्र में 1937 से लेकर उन्होंने जितनी कृतियाँ सम्पूर्ण नाटक और एकांकी के रूप में लिखी हैंसब प्राय: अपने लेखनकाल के उपरान्त उसी वर्ष क्रम से प्रकाशित हुई हैं। उपेन्द्रनाथ अश्क के नाटक सन कृति 1937 जय पराजय 1938 एकांकी-'पापी1938 वेश्या 1938 लक्ष्मी का स्वागत 1938 अधिकार का रक्षक 1939 स्वर्ग की झलक 1939 जोंक 1939आपस का समझौता 1939 पहेली 1939 देवताओं की छाया में 1940 विवाह के दिन 1940 छठा बेटा 1941नया पुराना 1941 चमत्कार 1941 खिड़की 1941 सूखी डाली 1942 बहनें 1942 कामदा 1942 मेमूना1942 चिलमन 1942 चुम्बक 1943 तौलिये 1944 पक्का गाना 1946 कइसा साब कइसी आया 1947तूफ़ान से पहले 1948 चरवाहे 1950 आदि मार्ग 1950 बतसिया 1950 कस्बे क क्रिकेट क्लब का उदघाटन1950 क़ैद और उड़ान 1951 मस्केबाज़ों का स्वर्ग 1951 पर्दा उठाओ पर्दा गिराओ 1953 पैंतरे 1954अलग-अलग रास्ते 1954 आदर्श और यथार्थ 1955 अंजोदीदी 1956 अन्धी गली के आठ एकांकी 1961भँवर कहानियाँ| अंकुरनासुरचट्टानडाचीपिंजरागोखरूबैगन का पौधामेमनेदालियेकाले साहब,बच्चेउबालकेप्टन रशीद आदि अश्क जी की प्रतिनिधि कहानियों के नमूने सहित कुल डेढ़-दो सौ कहानियों में अश्क जी का कहानीकार व्यक्तित्व सफलता से व्यक्त हुआ है। काव्य ग्रन्थ: 'दीप जलेगा' (1950),'चाँदनी रात और अजगर' (1952),'बरगर की बेटी' (1949) | संस्मरण:'मण्टो मेरा दुश्मन' (1956),'निबन्ध,लेखपत्रडायरी और विचार ग्रन्थ-'ज़्यादा अपनी कम परायी' (1959)'रेखाएँ और चित्र' (1955)। उपन्यास:1940 सितारों के खेल,1945 बड़ी-बड़ी आँखें,1947 गिरती दीवार,1952 गर्म राख,1957 पत्थर अलपत्थर,1963 शहर में घूमता आईना,1969 एक नन्हीं किंदील| अन्य उपन्यास : गिरती दीवारेशहर में घूमता आइनागर्मराखसितारो के खेलआदि| कहानी संग्रह : सत्तर श्रेष्ठ कहानियांजुदाई की शाम के गीतकाले साहबपिंजराअआड।


मृत्यु

उपेन्द्रनाथ अश्क जी का 19 जनवरीसन् 1996 ई. में निधन हो गया था।

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रचनाएँ
upendranathashq
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