ना वक्त को ज़रूरत तेरी है,
ना ज़रूरत वक्त को मेरी है.
वक्त तो चलता है चाल अपनी,
ज़रूरत वक्त की हम तुम को है.
वक्त के साथ जो भी चल पड़ा,
वक्त उसका, ये ज़माना उसका है.
वक्त की मुश्क से ना कोई बचा,
ना जाने शाह कितने इसमें मिल गए.
था जिन्हे नाज अपनी ताकत का
वक्त की धूल में वो जाने कहाँ खो गए. (आलिम)