वैंपायर, यानि रक्त पिपासू,
डरावनी इनकी,स्टोरी धासू।
क्या ये सच मे ,ही मौजूद है,
सबूत तो है ,फिर ,,
क्यू शक मौजूद है ?
आप कहोगे सबूत दिखाए,
तो चलिए ,कविता मे आए।
वैंपायर हर शख्स है वो जो,
जल रहा ईर्ष्या, द्वेष से है,वो,,,
और नुकसान सबको पहुंचा रहा है,
रक्त मांस सा खा रहा है,
घर मे रहती ,मा सौतेली,
द्वेष करे बच्चो से अकेली,
चिढती उनसे नफरत करती,
उसे उनकी हर बात अखरती,
घर मे पिता भी एक पिशाच है,
जो अपनी बेटी के साथ है,
रखता उस पर गलत निगाहे ,,
नर थोडे वह तो पिशाच है।
भाई कहा नही है वो ऐसा,
जिसे दिखता है बस सिर्फ ही पैसा,
उसी की खातिर, वो रोज लडे है,
जब जी चाहे वो कत्ल करे है,
औलाद भी तो वैंपायर सी है,
मात पिता को छल रही ही है,
खुद बाहर गुलछर्रे उडाते,
मा बाप को वृद्धाश्रम की,
राह दिखाते,।
क्या प्रेमी वो पिशाच नही है,
प्रेमिका से जिसे खिंचाव नही है,
वो लेता है उससे बदले,
रोज रोज ही उससे झगडे,
तन की अपनी प्यास बुझा कर,
और फिर न उसको पकडे।
हर वो स्त्री भी वैंपायर है,
घर मे करती जो रोज फायर है,
घर की जिम्मेवारियो से भाग कर,
करती प्रेम अन्यत्र ही जाकर,
रिश्तो के सब ,खून जो करके,,
दूसरो को भयाक्रांत है करते,
अपने सुख को प्रथम वो रखके,
अन्यो को है घोर दुख मे रखते,
सबके सब वो वैंपायर है,
नर नही वो पिशाच कायर है,
जो संबधो को ताक पर रख कर,
कर रहे मौज, सिर्फ आयर है,
सच मे वो सब वैंपायर है,(2)
इनकी तो हर बात ही कौड़ी,
मुझे न अच्छी लगती थोडी,
ये वैंपायर सी है लव स्टोरी,
वैंपायर की है लव स्टोरी।-(2)
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मौलिक रचनाकार ,
संदीप शर्मा ।
(देहरादून से।)