विष्णु शर्मा
विष्णु शर्मा लगभग दो दशक से पत्रकारिता में सक्रिय हैं। मीडिया के तीनों माध्यमों- प्रिंट, टीवी और वेब पत्रकारिता का उन्हें काफी अनुभव है। आगरा में ‘दैनिक जागरण’ के साथ अपनी पत्रकारिता की पारी शुरू करने वाले विष्णु शर्मा ने लंबे समय तक ‘अमर उजाला’, दिल्ली में काम किया। इसके बाद उन्होंने प्रिंट मीडिया से टीवी मीडिया की ओर रुख किया और 'बीएजी फिल्म्स' के न्यूज चैनल ‘न्यूज24’ के साथ लंबी पारी खेली। इस दौरान वे दो साल के लिए ‘E24’ चैनल को एस्टैबलिश करने के लिए मुंबई भी गए। 2016 से वह ‘आईटीवी ग्रुप’ के ‘इंडिया न्यूज’ चैनल से जुड़े हुए हैं। यहां हिस्ट्री और राजनीतिक विषयों पर उनके कई विडियोज मिलियंस व्यूज ले चुके हैं। बालाकोट के समय अभिनंदन पर किया एक विडियो उस समय खूब चर्चा में रहा था। उस विडियो को कुछ ही दिनों में सवा करोड़ लोगों ने देखा था। मीडिया की परंपरागत नौकरी के 15 साल बाद 2014 में उन्होंने हिस्ट्री विषय से नेट क्वालीफाई किया और उसके बाद हिस्ट्री पर ही उनकी दो किताबें आ चुकी हैं, जिनमें से एक किताब 'गुमनाम नायकों की गौरवशाली गाथाएं' हाल ही में मुंबई आईआईटी की लाइब्रेरी का हिस्सा बनी है, जबकि दूसरी किताब ‘इतिहास के वायरल सच’ अमेजॉन ने कई देशों में ऑनलाइन उपलब्ध करवाई है। उनकी तीसरी किताब 'सुनो बच्चो सर्जिकल स्ट्राइक की कहानी' भी प्रभात प्रकाशन से छपी है और बच्चों के लिए लिखी गई है। बच्चों के लिए वह पहले भी एनिमेशन फिल्म '4th इडियट पप्पू चला चांद पर' के लिए डायलॉग्स और 2 गाने लिख चुके हैं। इस एनिमेशन मूवी में फिल्म '3 इडियट्स' के चतुर यानी ओमी वैद्य ने बतौर सूत्रधार अपनी आवाज दी थी और उनका किरदार भी इस मूवी में शामिल किया गया था। प्रकाशित पुस्तके 'गुमनाम नायकों की गौरवशाली गाथाएं’ 'इतिहास के 50 वायरल सच'। 'सुनो बच्चो, सर्जिकल स्ट्राइक की कहानी' एबीपी न्यूज उन
इंदिरा फाइल्स
लेकिन इंदिरा गांधी ही क्यों? आजाद भारत में इंदिरा गांधी वंशवाद का सबसे बड़ा और पहला उदाहरण हैं। वंशवाद का एक ऐसा उत्पाद, जिसको लौह महिला भी कहा जाता है और दूसरी तरफ आपातकाल थोपने के लिए हर साल उनकी तानाशाही को श्रद्धांजलि भी दी जाती है। एक तरफ
इंदिरा फाइल्स
लेकिन इंदिरा गांधी ही क्यों? आजाद भारत में इंदिरा गांधी वंशवाद का सबसे बड़ा और पहला उदाहरण हैं। वंशवाद का एक ऐसा उत्पाद, जिसको लौह महिला भी कहा जाता है और दूसरी तरफ आपातकाल थोपने के लिए हर साल उनकी तानाशाही को श्रद्धांजलि भी दी जाती है। एक तरफ