एक कवि हूॅं, कविता मेरा काम। रचता रहता हूॅं सदा लेके हरि का नाम।
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जय माँ शारदे दुर्मिल सवैया, आठ सगण (११२) दुर्मिल सवैया, आठ सगण (११२) ========================= घनघोर घटा घिर गई वहां, चमके बिजुरी नभ बरस रहा। सब टूट गई हथकड़ी वहां,