जय माँ शारदे
दुर्मिल सवैया, आठ सगण (११२)
दुर्मिल सवैया, आठ सगण (११२)
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घनघोर घटा घिर गई वहां,
चमके बिजुरी नभ बरस रहा।
सब टूट गई हथकड़ी वहां,
दमके छवि श्याम अनुप रहा।
बलहीन पड़े सब रखवाले,
हथियार सभी का व्यर्थ रहा।
जनमे जग के जगदीश वहां,
तब बन्द नहीं कोई द्वार रहा।
छवि श्याम मनोहर निरखत हौं,
पितु मातु वहां बन्दी गृह में।
मुसकात लिए हरि गोद पिता,
हरषाय रहे मन ही मन में।
छन माहि सचेत हुए मन से,
भय कंस सताय गये पल में।
वसुदेव मनावत देवकी को,
ममता सुत के त्यागहु क्षन में।
सुनि बोलि अकाश सचेत हुए,
लिए श्याम को यमुना पार चले।
सब नींद लिए निज नयनों में,
लुढ़के दरबान विषाद टले।
यमुना उफनाय बढ़ी तब ही,
पद नाथ पखारि तरंग ढले।
बदरा बरसे प्रभु माथ चढ़े,
फन तान खड़े तब नाग चले।
वसुदेव लिए पहुॅंचे व्रज को,
नवजात स्वरूप निहार रहे।
बिटिया किलकार भरे नवचा,
घर नन्द यशोमति प्यार बहे।
रखि कान्ह उठाइ लिए बिटिया,
उर में अनुराग के धार बहे।
कर ले बिटिया वसुदेव चले,
नयना लखि निर्झर नीर बहे।
मदमस्त हवा मकरन्द लिए,
चहुॅंओर सुरभि बिखराइ रहे।
ऋषि ध्यान किए गुणगान करें,
मन ही मन दर्शन पाइ रहे।
परिजात खिले धरती पुलकै,
वन मोर मगन सब नाच रहे।
लखि श्याम यशोमति मातु हसें,
तब नन्द अनन्द मनाइ रहे।
घर द्वार सजाइ रहे सबहीं,
ध्वज पल्लव पुष्प लगावत हौं।
सब मागध औ जन गान करे,
कर जोरि सभी हरि ध्यावत हौं।
खुश नन्द अनन्द न छोर दिखे,
धन दौलत आज लुटावत हौं।
शिव शंकर द्वार खड़े हरि के,
छवि अद्भुत श्याम निहारत हौं।
सब गोप सजे कर भेंट लिए,
गृह नन्द दुआरि पधार रहे।
सब गावत मंगल गान जहाॅं,
सब नन्दन श्याम निहार रहे।
सिर केशर टीक लगाइ रहे,
नर-नार हिया हरषाय रहे।
मदमात चले सब मारग में,
हिय श्याम क रूप बसाइ रहे।
सब गोप अनन्द मनाइ रहे,
धन धान्य सनन्द लुटाइ रहे।
गुणगान करें सुत के सबसे,
लख गाय क दान कराइ रहे।
हरि के किलकारि क गूंज सुनी,
सुत गोद उठाइ हसाइ रहे।
फिर रूप निहार रहीं यशुदा,
नर नार खड़े बल खाइ रहे।
*कुमार@विशु*